क्यों घुसना चाहता है वर्ल्ड बैंक हमारे ‘धर्म क्षेत्रों’ में

Monday, Apr 24, 2017 - 12:16 AM (IST)

ईसाइयों के विश्व गुरु पोप जब भारत आए थे, तो भारत सरकार ने उनका भव्य स्वागत किया था परन्तु पोप ने इसका उत्तर शिष्टाचार और कृतज्ञता के भाव से नहीं दिया बल्कि भारत के बहुसंख्यकों का अपमान एवं तिरस्कार करते हुए खुलेआम घोषणा की कि हम 21वीं सदी में समस्त भारत को ईसाई बना डालेंगे।

बहुसंख्यकों के धर्म को नष्ट कर डालने की खुलेआम घोषणा करना हमारी धार्मिक भावनाओं पर खुली चोट करना था, जो कानून की नजर में अपराध है पर सरकार ने कुछ नहीं किया। सरकार की उस कमजोरी का लाभ उठाकर विश्व बैंक व ऐसी अन्य संस्थाओं के ईसाई पदाधिकारी, पोप की उसी घोषणा को क्रियान्वित करने के लिए हर हथकंडे अपना रहे हैं।

इसी में से एक है ‘गरीब-परस्त पर्यटन’ (प्रो-पूअर टूरिज्म) के नाम पर हमारे पवित्र तीर्थों  जैसे  ब्रज या बौद्ध तीर्थ कुशीनगर आदि में पिछले दरवाजे से साजिशन ईसाई हस्तक्षेप। इसी क्रम में ब्रज के कुंडों के जीर्णोद्धार और श्रीवृंदावन धाम में श्रीबांकेबिहारी मंदिर की गलियों के सौंदर्यीकरण के नाम पर एक कार्य योजना बनवाकर विश्व बैंक चार लक्ष्य साधने जा रहा है।

पहला : विश्व में यह प्रचार करना कि भारत गरीबों का देश है और हम ईसाई लोग उनके भले के लिए काम कर रहे हैं। इस प्रकार उभरती आॢथक महाशक्ति के रूप में भारत की छवि को खराब करना। दूसरा : हिन्दुओं को नाकारा बताकर यह प्रचारित करना कि हिन्दू अपने धर्मस्थलों की भी देखभाल नहीं कर सकते, उन्हें भी हम ईसाई लोग ही संभाल सकते हैं। जैसे कि भारत को संभालने का दावा करके अंग्रेज हकूमत ने 190 वर्षों में सोने की चिडिय़ा भारत को जमकर लूटा।

उसके बावजूद भारत आज भी वैभव में पूरे यूरोप से कई गुणा आगे है जबकि उनके पास तो पेट भरने को अन्न भी नहीं है। इसलिए ‘वल्र्ड बैंक’ जैसी संस्थाओं को सामने खड़ा कर हमारे मंदिरों और धर्मक्षेत्रों को लूटने के नए-नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। तीसरा : इस प्रक्रिया में हमारे धर्मक्षेत्रों में अपने गुप्तचरों का जाल बिछाना जिससे वे सारी सूचनाएं एकत्र की जा सकें, जिनका भविष्य में प्रयोग कर हमारे धर्म को नष्ट किया जा सके।

एक छोटा उदाहरण काफी होगा। ईसाई धर्म में पादरी होता है, पुजारी नहीं। चर्च होता है, मंदिर नहीं। ईसा मसीह प्रभु के पुत्र माने जाते हैं, ईश्वर नहीं। इनके पादरी सदियों से सफेद वस्त्र पहनते हैं, केसरिया नहीं। अब इनकी साजिश देखिए: आप बिहार, झारखंड, ओडिशा जैसे राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों में यह देखकर हैरान रह जाएंगे कि भोली जनता को मूर्ख बनाने के लिए ईसाई धर्म प्रचारक अब भगवा वस्त्र पहनते हैं। स्वयं को पादरी नहीं, पुजारी कहलवाते हैं।

गिरजे को प्रभु यीशु का मंदिर कहते हैं। 2000 वर्षों से जिन ईसा मसीह को ईश्वर का पुत्र बताते आए थे, उन्हें अब भारत में  ईश्वर बताने लगे हैं क्योंकि हमारे भगवान तो श्रीकृष्ण व श्रीराम हैं। भगवान श्रीराम के पुत्र तो लव और कुश हैं। हिन्दू समाज भगवान राम की पूजा करता है, लव और कुश का केवल सम्मान करता है। अगर ईसा मसीह को ईश्वर का पुत्र बताएंगे तो भारतीय जनता उन्हें लव-कुश के समान समझेगी, भगवान नहीं मानेगी। चौथा: हमारे धर्मक्षेत्रों की गरीबी दूर करने के नाम पर जो कर्ज ये देने जा रहे हैं, उसमें से बड़ी मोटी रकम  अंर्तराष्ट्रीय  सलाहकारों को फीस के रूप में दिलवा रहे हैं।

ऐसी योजनाएं बनाने के लिए दी जाने वाली करोड़ों रुपए फीस के पीछे हमारी प्रशासनिक व्यवस्था को भ्रष्ट करने के लिए मोटा कमीशन देना और उन्हें विदेश घुमाने का खर्चा शामिल होता है जबकि इस सब खर्चे का भार भी उत्तर प्रदेश की जनता पर कर्ज के रूप में ही डाला जाएगा। पिछले कई वर्षों से अखबारों में आ रहा है कि विश्व बैंक ब्रज की गरीबी दूर करने के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं बना रहा है। शुरू में खबर आई कि वृंदावन में 100 करोड़ रुपए खर्च करके एक बगीचा बनाया जाएगा और एक-एक कुंड के जीर्णोद्धार पर 10-10 करोड़ रुपए खर्च करके 9 कुंडों का जीर्णोद्धार किया जाएगा।

2002 से ब्रज को सजाने में व कुंडों के जीर्णोद्धार में जुटी ब्रज फाऊंडेशन की टीम को यह बात गले नहीं उतरी क्योंकि कूड़े के ढेर पड़े, वृंदावन के ब्रह्मकुंड को ब्रज फाऊंडेशन ने मात्र 88 लाख रुपए में सजा-संवाकर, सभी का हृदय जीत लिया। गोवर्धन परिक्रमा पर भी इसी तरह दशाब्दियों से मलबे का ढेर बने रूद्र कुंड को मात्र अढ़ाई करोड़ रुपए में इतना सुंदर बना दिया कि उसका उद्घाटन करने आए उ.प्र. के मुख्यमंत्री को सार्वजनिक मंच पर कहना पड़ा कि ‘रुपया तो हमारी सरकार भी बहुत खर्च करती है, पर इतना सुंदर कार्य क्यों नहीं कर पाती, जितना ब्रज फाऊंडेशन करती है।’ ब्रज फाऊंडेशन ने विरोध किया तो 2015 में विश्व बैंक को यह योजनाएं निरस्त करनी पड़ीं। अब जो नई योजनाएं बनाई हैं वे भी इसी तरह बे-सिर पैर की हैं। ‘कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना’।

हमारे मंदिरों, तीर्थस्थलों,  लीलास्थलियों और आश्रमों के संरक्षण, संवर्धन या सौंदर्यीकरण का दायित्व हिन्दू धर्मावलम्बियों का है। ईसाई या मुसलमान हमारे धर्मक्षेत्रों में कैसे दखल दे सकते हैं? क्या वे हमें अपने वैटिकन या मक्का मदीने में ऐसा हस्तक्षेप करने देंगे? हमारे धर्मक्षेत्रों में क्या हो, इसका निर्णय, हमारे धर्माचार्य और हम सब भक्तगण करेंगे। ब्रज में इस विनाशकारी हस्तक्षेप के विरुद्ध आवाज  उठ  रही है। देखना है योगी सरकार क्या निर्णय लेगी।    

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