नदियों में अपार जल भंडार होने के बावजूद भारत में पानी का संकट क्यों

Saturday, Feb 24, 2018 - 03:05 AM (IST)

‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून, पानी गए न उबरे, मोती, मानुस चून।’ 
रहीमदास जी ने जब इन पंक्तियों की रचना की होगी तो उन्हें यह बिल्कुल आभास नहीं रहा होगा कि आज की सबसे बड़ी समस्या पर उनका यह दोहा सटीक बैठेगा। ‘जल ही जीवन है, जल है तो कल है’, ऐसे ही कई जुमले आए दिन हम सुनते और पढ़ते हैं। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि पानी के बगैर जीवन की कल्पना करना बेहद मुश्किल है लेकिन शायद मानते नहीं वरना देश में पानी का संकट यूं जंगल की आग की तरह न फैलता। पानी का प्रयोग आमतौर पर खाने-पीने, कृषि और औद्योगिक कार्यों में किया जाता है। पानी हमें दो प्रकार से प्राप्त होता है एक तो धरती के ऊपर और दूसरा-धरती के नीचे लेकिन अब प्रश्र यह उठता है कि जिस देश में नदियों का अपार भंडार है वहां पर पानी का इतना भीषण संकट आखिर क्यों? 

धरती का लगभग तीन-चौथाई भाग पानी से घिरा होने के बावजूद भारत और दुनिया के दूसरे देशों में पानी की समस्या है। महासागर के खारे  पानी से भरे होने और कुछ भाग बर्फ की परत तथा ग्लेशियर के रूप में जमा हुआ होने से केवल एक प्रतिशत जल ही उपयोग लायक बचता है। विडम्बना यह है कि एक प्रतिशत जल भी उद्योगों से निकलने वाले कचरे, कैमिकल, खेती में इस्तेमाल होने वाली खाद एवं रसायन तथा घरेलू मल-मूत्र के कारण दूषित हो रहा है जिससे लाखों लोग भयंकर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।अन्य देशों की बात करें तो मैक्सिको जैसा शहर जो झीलों की नगरी हुआ करता था लेकिन आज शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण यहां की झीलें लुप्त-सी हो गई हैं। भू-जल के अत्यधिक प्रयोग से न्यूयार्क में वैटलैंड्स का हनन हुआ है जिसके कारण वहां आए दिन बाढ़ और सूखे का खतरा बना रहता है। 

भारत में पानी की समस्या गंभीर रूप से बढ़ रही है। कुएं, तालाब, जलाशय सूख रहे हैं और नदियों में पानी का स्तर कम हो रहा है। इस समस्या से निपटने और भूजल के संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार ने 6000 करोड़ रुपए की ‘अटल भू-जल योजना’ शुरू की है। इसका उद्देश्य जल के उपलब्ध स्रोतों का प्रबंधन करना और लोगों को इससे जोड़कर जागरूक करना है। इसके तहत भूजल के पुनर्भरण की प्रक्रिया को बेहतर करने का काम किया जाएगा। गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिए यह योजना प्रस्तावित की गई है, साथ ही इन प्रदेशों के 78 जिलों, 193 ब्लॉकों और 8350 ग्राम पंचायतों को भी इसमें शामिल किया गया है। 

जल संरक्षण और तकनीक
आधुनिक तकनीक जैसे धीमे फ्लश वाले शौचालय, एक्स-रे फिल्म प्रोसैसर रिसाइक्लिंग सिस्टम, जल-संचयक वाष्प स्टेरलाइजर्स प्रणाली से जल को संरक्षित किया जा सकता है। इतना ही नहीं, लेजर लैंड लैवलर के द्वारा धान और गेहूं के खेतों में 10-20 प्रतिशत तक पानी बचाया जा सकता है। ड्रिप सिंचाई में ड्रिपर द्वारा पानी बूंद-बूंद कर पौधों की जड़ों में दिया जाता है। यह पद्धति फलों एवं सब्जियों की फसलों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है। ड्रिप सिंचाई से जल की 40 से 50 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है। 

पुराने तालाबों की खुदाई और नवीनीकरण द्वारा बरसात के व्यर्थ बह जाने वाले पानी को संरक्षित किया जा सकता है। ऐसी प्रक्रिया भू-जल स्तर को सुधारने में भी सहायक है। उदाहरण है पश्चिमी राजस्थान और मिजोरम का, जहां घरों में ही जमीन के अंदर गोल बड़ी-बड़ी टंकियां बनाई गई हैं। घरों की ढलानदार छतों से वर्षा का पानी पाइपों के द्वारा इन टंकियों में भरता है। पानी ठंडा रखने के लिए इन टंकियों को टाइलों से ढकते हैं और पानी की कमी होने पर इसका इस्तेमाल करते हैं।

ऐसा ही उदाहरण है गुजरात के बिचियावाड़ा नामक गांव का, जहां के लोगों ने मिलकर 12 चौक बांध बनाए हैं। इन बांधों से वे 3000 एकड़ भूमि की आसानी से सिंचाई कर सकते हैं। इसी तरह भावनगर जिले के खोपाला गांव के लोगों ने 210 छोटे-छोटे बांध बनाए हैं जिसका परिणाम यह हुआ कि कम वर्षा होने पर भी यहां की नहरें पानी से भरी रहती हैं। सिंचाई, औद्योगिक और घरेलू जल वितरण प्रणालियों में संचालन और मुरम्मत सही रूप से नहीं होने के कारण बड़ी मात्रा में जल का नुक्सान होता है जो दिन-प्रतिदिन विकराल रूप लेता जा रहा है। जल मनुष्य की बुनियादी जरूरत है इसलिए इस समस्या को दूर करना बेहद आवश्यक है।-पूरन चंद सरीन

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