‘क्यों जानलेवा साबित हो रही है लोन व्यवस्था’

Wednesday, Feb 10, 2021 - 04:29 AM (IST)

बैंक कर्ज या साहुकारों से मिलने वाले ऋण के सिलसिले में आमतौर पर किसानों और मजदूरों की बदहाली पर चर्चा मौजूदा वक्त में कोई नई बात नहीं रह गई है। टी.वी. डिबेट्स और सैमीनारों में आए दिन इस पर व्यापक बहस देखने को मिलती है। लेकिन, इन बहसों के शोर में बैंक कर्ज के चलते उत्पीडऩ झेल रही मध्यम वर्ग की पुकारें कहीं दबती हुई दिख रही हैं। बैंकों के इस उत्पीडऩ की गंभीरता का पता इसी से लगाया जा सकता है कि दहशत में आकर लोग आत्महत्या तक करने को मजबूर हैं। लेकिन आत्महत्या की ये खबरें कहीं अनसुनी कहानी बन कर गुम होती मालूम पड़ती हैं।

अभी सबसे ताजा मामला बिहार के भागलपुर के एक जाने-माने शिक्षक का है जिन्होंने बैंक अधिकारियों द्वारा परेशान करने के चलते आत्महत्या कर ली। चंद्र भूषण नामक यह शिक्षक लॉकडाऊन में कोचिंग के बंद हो जाने की वजह से कर्ज की किस्त भरने में असमर्थ थे। ऐसे में बैंक अधिकारी उन्हें सरेआम बेइज्जत करते थे। शिक्षक बैंक अधिकारियों की इस हरकत से परेशान हो गए। लिहाजा, मौत को गले लगाना उन्हें ज्यादा सहज लगा। कहने की जरूरत नहीं कि कोरोना काल में सरकार ने शिक्षण संस्थानों को बंद रखने का ऐलान किया था। अब जनवरी में अलग-अलग राज्यों में इन संस्थानों को पुन:संचालित करने की अनुमति दी गई है। बिहार में भी इसी माह के पहले हफ्ते से स्कूल-कोङ्क्षचग को खोला गया है। लेकिन, शिक्षक की वाजिब परेशानी को बैंक अधिकरियों ने नजरअंदाज कर दिया। 

खुदकुशी की एक और घटना मध्य प्रदेश के इंदौर निवासी बजे सिंह की है। आर्थिक स्थिति खराब होने से वह 2018 से किस्त नहीं चुका पा रहे थे। बैंक मैनेजर पिछले एक साल से कर्ज चुकाने के लिए दबाव बना रहा था। इतना ही नहीं, कर्ज नहीं चुकाने पर मैनेजर गांव में जुलूस निकालने की भी धमकी दे रहा था। लिहाजा, परेशान होकर बजे सिंह ने जहर खा लिया।

ऐसे ही केरल के तिरुवनंतपुरम में 44 वर्षीय लेखा नामक एक महिला ने सुसाइड कर लिया। 5 लाख हाऊसिंग लोन लेने वाली लेखा पर बैंक अधिकारी लगातार दबाव बना रहे थे। लोन को चुकाने के लिए लेखा ने अपनी किसी प्रॉपर्टी को बेचने की तैयारी कर ली थी। लेकिन, इसको लेकर परिवार में ही विवाद पैदा हो गया। लिहाजा, लेखा ने अपनी एक बेटी के साथ खुदकुशी कर ली। ये कुछ घटनाएं तो मात्र उदाहरण भर हैं। पिछले दो सालों में कर्ज से परेशान मध्यम वर्ग के लोगों में खुदकुशी की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। 

दरअसल, कर्जदारों को बैंकर्स द्वारा हतोत्साहित और परेशान करना एक आम बात हो गई है। किस्त के भुगतान के लिए ग्राहकों को याद दिलाना एक अलग बात है। लेकिन, किस्त भुगतान में देरी होने पर सरेआम बेइज्जत करना कितना दुरुस्त है? इतना ही नहीं, रिकवरी एजैंट अब दूसरे तरीके भी अपनाने लगे हैं। पैसे वापस पाने के लिए ग्राहकों के रिश्तेदारों को कॉल करने लगे हैं। इसका मकसद रिश्तेदारों के बीच ग्राहकों को शॄमदा करना है। बात यहां तक ही होती तो ठीक था। लेकिन, रिकवरी एजैंट्स ने हदें पार करते हुए ग्राहकों को किस्त भुगतान न करने की स्थिति में धमकी भी देना शुरू कर दिया है। जाहिर है, ऐसी स्थिति में समाज में सम्मानपूर्वक जीवन-यापन करने वाले परिवारों के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता है। 

कर्जदारों के प्रति फाइनांस कम्पनियों का रवैया किस कदर आपत्तिजनक है, इसकी एकबानगी आर.बी.आई. की एक हालिया कार्रवाई में देखी जा सकती है। जनवरी माह में ही भारतीय रिजर्व बैंक ने बजाज फाइनांस को यह सुनिश्चित करने में विफल पाया कि उसके रिकवरी एजैंट्स वसूली के दौरान ग्राहकों को परेशान नहीं करेंगे या डराने की रणनीति का उपयोग नहीं करेंगे। लिहाजा, बजाज फाइनांस पर अढ़ाई करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया। आर.बी.आई. ने यह संज्ञान तब लिया, जब बजाज फाइनांस के एजैंट्स द्वारा रिकवरी के दौरान ग्राहकों को परेशान करने वाली कई शिकायतें उसके पास गईं। 

यह भी हैरान करने वाली बात है कि लोन रिकवरी को लेकर सरकार ने नियम बना रखे हैं। लेकिन, फाइनांस कम्पनियां सभी नियमों को ताक पर रख कर अपनी मनमानी करने पर उतारू हैं। लिहाजा, सरकार और प्रशासन को लोन रिकवरी में मनमानी करने वालों के खिलाफ नकेल कसने के लिए नए सिरे से तैयारी करने की जरूरत है।-रिजवान अंसारी
 

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