अजान और लाऊडस्पीकर के मामले में तल्ख बयानी क्यों

Friday, Apr 28, 2017 - 11:13 PM (IST)

इन दिनों अजान के मुद्दे पर देश भर में चर्चाओं का दौर जारी है। बात नमाज के लिए आमंत्रण देने वाली अजान से कहीं आगे बढ़कर धार्मिक भेदभाव तक पहुंच गई, जिसके केन्द्र में मोहरा बना है लाऊडस्पीकर। पूरे प्रकरण पर मोटे तौर पर देखा जाए तो तीन तरह की विचारधाराओं ने लोगों को अपने-अपने तरीके से प्रभावित करने की कोशिश की। पहला तबका बुरी तरह से आहत होकर सोनू निगम पर नाराज होकर उनके खिलाफ खड़ा हुआ। वर्तमान दौर ध्रुवीकरण से प्रभावित है सो पहले तबके के  खिलाफ एक दूसरा तबका खड़ा हो गया जिसेसोनू समर्थक कम, सोनू विरोधियों का विरोधी अधिक कहा जा सकता है। उसने भी गैर जिम्मेदाराना बयान देते हुए सोनू के बहाने मुसलमानों पर जमकर निशाना साधा। 

एक तीसरा तबका जिसे इन दोनों से कोई वास्ता नहीं, वह यही चाहता रहा कि इस मामले में छिपे कानूनी पहलू पर ध्यान केन्द्रित किया जाए न कि इसे धार्मिक मुद्दा बनाया जाए। शायद तीसरा तबका लोगों को कम प्रभावित कर पाया। वैसे सोनू ने कई कव्वालियों और नात शरीफ सहित अनेकों इस्लामी कलाम गाए हैं। यह कहने में भी हर्ज नहीं कि सोनू निगम की पहचान ही स्वर सम्राट स्वर्गीय मोहम्मद रफी के गाने गाकर हुई है जिन्हें वह अपना आध्यात्मिक पिता मानते हैं। सोनू निगम ने जगराते गा-गाकर ही पहले-पहल अपनी पहचान बनाई थी वह भी लाऊडस्पीकर के साथ। नींद में खलल तो बहाना था, दरअसल हाशिए पर चल रहे सोनू को चर्चा में आना था। 

अजान के लिए उपयुक्त भावार्थ पर नजर डालें तो ज्ञात होगा कि उसमें अल्लाह की बड़ाई है। अजान मुसलमानों के लिए फर्ज नमाजों से पहले बुलंद आवाज से आमंत्रित करने की एक जरूरी प्रक्रिया है जिसे मस्जिद से मुअज्जिन पांच वक्त की हर नमाज से पहले ब-आवाज-ए-बुलंद पढ़ता है। बमुश्किल यह प्रक्रिया दो-तीन मिनट में पूरी हो जाती है। इस्लाम के स्थापना काल से ही यह प्रक्रिया विश्व भर में प्रचलित है। जहां तक ताजा विवाद है वह अजान से अधिक लाऊडस्पीकर को लेकर है। सोनू ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के हवाले से तर्क दिया है कि उनके काल में लाऊडस्पीकर नहीं था तो अब उसका उपयोग क्यों? सोनू से यही सवाल पलट कर किया जाए कि आखिर वह क्यों स्पीकर का उपयोग अपने व्यावसायिक कार्यक्रमों में करते रहे?

लेकिन ऐसे सवाल-जवाब बजाय सद्भाव के तल्खियों को बढ़ाएंगे और समय की मांग है कि गंगा-जमुनी तहजीब और सर्वधर्म समभाव वाले हमारे हिंदुस्तान में तल्ख बयानी से बचा जाए। तब आखिर इस मसले का हल क्या है? अव्वल तो इस मामले में माननीय न्यायालय के निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। दूसरे, चूंकि कोर्ट ने रात्रि 10 बजे से प्रात: 6 बजे तक लाऊडस्पीकर के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है इसलिए अगर इस मामले में सभी मिलकर किसी कानून को बनवाना चाहते हैं तो विधायिका का सहारा लेने के लिए स्वतंत्र हैं बशर्ते सरकार इस मामले में साथ दे। 

दरअसल नई मुम्बई के एक आर.टी.आई. कार्यकत्र्ता ने एक याचिका दायर कर कई धार्मिक स्थलों पर गैर-कानूनी तरीके से लाऊडस्पीकर इस्तेमाल किए जाने की बात कही थी। उस याचिका का जोर इस बात पर था कि लाऊडस्पीकर ध्वनि प्रदूषण बढ़ाने का कारण बन रहे हैं। चूंकि इन धार्मिक स्थलों को लाऊडस्पीकर लगाने की अनुमति नहीं है इसलिए मुम्बई हाईकोर्ट में न्यायाधीश वी.एम. कनाडे और  पी.डी. कोड़े की पीठ ने मस्जिदों व मंदिरों से सभी गैर-कानूनी लाऊडस्पीकरों को हटाए जाने का आदेश दे दिया। 

ऐसा नहीं है कि लाऊडस्पीकर बहुत जरूरी है क्योंकि इसी मुम्बई शहर में डोंगरी के पास ‘खड़कवाली मस्जिद’ में इतनी आधुनिकता आने के बाद भी पिछले 40-45 वर्षों से कभी लाऊडस्पीकर का उपयोग नहीं किया गया। ऐसी अनेक मस्जिदों की लम्बी सूची है। मुम्बई शहर में ही कई मुस्लिम समाजसेवी घूम-घूम कर लोगों को लाऊडस्पीकर न इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं लेकिन सोनू का तरीका सही नहीं कहा जा सकता। अजान, आरती, गुरबाणी को शोर और गुंडागर्दी बताना कैसे जायज हो सकता है? फिर प्रियंका चोपड़ा या कंगना राणावत की बात क्यों नमानी जाए कि उन्हें अजान की आवाज सुकून देती है? हर सवाल का जवाब है पर जो सवाल-जवाब समाज में दूरियां बढ़ाएं उन्हें खुद से दूर रखने में ही भलाई है। 

सोनू के खिलाफ फरमान (फतवा नहीं, क्योंकि वह कोई सनद याफ्ता मुफ्ती नहीं है जिसे फतवा देने का हक हो) देने वाले मौलवी के खिलाफ फतवा देना चाहिए कि उन्हें किसी को बेइज्जत करने का हक इस्लाम के किस अध्याय से मिला। सोनू निगम एक भारतीय नागरिक हैं सो उनकी बात सुनकर उस पर चिंतन हो सकता है लेकिन उसके खिलाफ फतवा-फरमान सही नहीं ठहराया जा सकता। मुस्लिम समाज से एक निवेदन जरूर है कि कानून किसी भी हाल में न तोड़ें। इसी में समाज की भलाई है वर्ना जगहंसाई का औजार तो आप बने ही हुए हैं।     

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