पंजाब भाजपा ‘मोदी की लोकप्रियता’ का लाभ क्यों नहीं उठा सकी

Friday, Mar 17, 2017 - 11:58 PM (IST)

एग्जिट पोल वाले तो माना व्यापारी हैं, आकलन में भूल कर गए पर स. सुखबीर सिंह बादल तो चुनावी टैक्नोलॉजी में माहिर थे मात क्यों खा गए? स. प्रकाश सिंह बादल तो राजनीति के पितामह थे वह क्यों जनता का मूड न भांप सके? एग्जिट पोल वाले तो कह सकते हैं कि कांग्रेस और आप को 54-54 सीटें आएंगी पर बादल साहिब तो समझ सकते थे समय रहते कि पंजाब की जनता उनके खिलाफ है? मोदी साहब ने प्रधानमंत्री होते हुए भी यू.पी., में चुनाव जीतने के लिए डेरे डाल लिए। 

स. सुखबीर सिंह बादल और स. प्रकाश सिंह बादल ए.सी. कारों से बाहर क्यों नहीं आए? चुनावों की धूल क्यों नहीं छांकी? जहां एग्जिट पोल ने पंजाब की जनता को भ्रमित किया, वहीं शिरोमणि अकाली दल भी समय रहते पंजाब की जनता के मनों के गुस्से को न समझ सका। एग्जिट पोल वालों के पास तो वैज्ञानिक आधार नहीं था परन्तु स. प्रकाश सिंह केपास तो सारे जीवन का राजनीतिक अनुभव था। क्यों चूक गए? पंजाब के लिए मोदी क्यों न बन सके? लोकतंत्र की विशेषता है कि मतदाता पोलिंग बूथ पर जाएगा, मत गिराएगा और घर आकर अपने काम में लग जाएगा। उसका पिता भी पूछे कि वोट किसकोडाला, नहीं बताएगा। यही तो है गुप्त मतदान। यही तो है लोकतंत्र की शान, पर अनुभवी स. प्रकाश सिंह को क्या पता नहीं था कि पंजाब की जनता किस ओर जा रही है? 

पता था उन्हें। स. प्रकाश सिंह बादल को पता था रेत की ट्राली जो 300 रुपए में जनता को उपलब्ध होती थी, उन्हीं के राज में 3500 की हो गई। उन्हें पता था कि सारा पंजाब अवैध खनन की चपेट में है। नदियों-नालों के अवैध खनन ने नदियों को भूतहा शक्ल प्रदान कर दी। एम.एल.एज तो स. प्रकाश सिंह बादल के थे, उन्हें रोका जा सकता था। मां-बाप पंजाब में असहाय हो गए कि उनके नौजवान बेटे-बेटियां नशे की लत में डूब रहे हैं। कहीं हशीश, कहीं हैरोइन, कहीं भुक्की के दरिया में पंजाब की जवानी गर्क हो गई। शिरोमणि अकाली सरकार को इसका जिम्मेदार ठहरा रहे थे लोग। 

सरकार यही कहती जा रही थी नशा सीमा पार से आ रहा है। पुलिस सरकार की, बी.एस.एफ., सीमा सुरक्षा बल सरकार का और सरकार नशा न रोक सकी? जनता खून के घूंट पी कर रह गई। जनता ने गुस्सा पोङ्क्षलग बूथ पर निकाला। सरकार का मैं स्वयं भी एक अदना-सा भागीदार था। लुट गया। व्यापारी, दुकानदार, मजदूर और पंजाब का युवा वर्ग सरकार से मार्गदर्शन चाह रहा था। न मिला। सब ने पोङ्क्षलग बूथ का सहारा लिया। थाने-कचहरियों में धक्केशाही, भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और बेकसूरों पर पर्चों पर पर्चे सरकार को ले बैठे। दूसरे शिरोमणि-अकाली सरकार को लगातार 10 साल राज करते भीहो गए थे, सरकार के विरुद्ध इन 10 सालों में गुस्सा उभर आना स्वाभाविक भी है। यह गुस्सा वोटों में एंटीइंकम्बैंसी कहलाता है। इस हार को जनता के सामने सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। आत्म-समीक्षा करनी चाहिए। 

हां, भारतीय जनता पार्टी जो अकाली सरकार में सम स्तर की भागीदार है, उसे हार में गमगीन नहीं होना चाहिए। उनके लिए हार नई नहीं। हम तो हमेशा हारों से ही गुजरे हैं। सत्ता तो पिछले 10 सालों से ही मिलने लगी है। हम तो कई बार डूबे, कई बार उभरे। पर एक बात निश्चित रही है, हमारा कार्यकत्र्ता नाराज रहा तो हम चुनाव हार गए। हमारा कार्यकत्र्ता खुशी-खुशी चुनाव में हमारा बस्ता उठा ले तो हम चुनाव जीत गए। मीटिंगों में कार्यकत्र्ता प्रश्र करने लगे तो समझो खतरा। हमारा तो कार्यकत्र्ता ही हमारी पूंजी है। यू.पी. में, उत्तराखंड में कार्यकत्र्ता जोश में था, हम चुनाव जीत गए। 

पंजाब में कार्यकत्र्ता अपनी लीडरशिप से, अपने मंत्रियों, अपने विधायकों से नाराज था अत: उनकी नाराजगी चुनावों में फूट गई। हमारी सम्पत्ति हमारा कार्यकत्र्ता अपनी सरकार से खफा। अपने कार्यकत्र्ता की हाॢदक इच्छा थी कि भले ही भाजपा कोई सीट न जीते, 117 सीटों पर चुनाव जरूर लड़े। अपना अस्तित्व बनाए। हरियाणा जैसे प्रांत में जहां हम शुरू से 4 या 6 सीटों से आगे नहीं बढ़े, स्वतंत्र होकर चुनाव लड़ा तो अपनी सरकार बना गए।

नवजोत सिंह ने चेताया भी कि भाजपा अकेले चुनाव लड़े पर हमारी परिस्थितियां ऐसी रहीं कि हम अकेले चुनाव न लड़ सके। कार्यकत्र्ता पहले ही नाराज था जब उसकी भावना का सम्मान न हुआ, वह एक अनुशासित सिपाही की तरह चुप तो रहा पर पोङ्क्षलग बूथ पर अपने अधिकार का प्रयोग कर आया। उस पर हमने नवजोत सिद्धू को दुश्मन को थमा दिया। नुक्सान तो होना ही था। एक वक्त आया हमने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा, 19 पर जीता। समय आया हम 12 पर आ गए। मैंने तब भी कहा था आत्ममंथन होना चाहिए पर पार्टी तब सत्ता के जश्र में डूब गई। 

परिणाम यह हुआ कि 2017 आते-आते हम 3 पर सिमट गए। विचार तो करना है न? यह भी क्या हुआ कि पिता ने दुकान डाली, सौदा डाला और जब दुकान चल निकली तो पिता को उठा कर सड़क पर पटक दिया। यह तो पारिवारिक धर्म नहीं, यह तो राजनीति नहीं। पार्टी सबको मिला कर बनती है। इसमें दरी बिछाने वाले, केवल भाषण देने वाले, पैसा बटोरने वाले और यहां तक कि गाली देने वाले का भी योगदान हमेशा बना रहता है। पार्टी चलाने वाले लाइकिंग-डिसलाइकिंग पर नहीं चलते, धड़ेबंदी नहीं करते। मोदी का नारा अपनाते हैं-सबका साथ-सबका विकास। अत: शिरोमणि-अकाली दल अपनी दरी पर, भारतीय जनता पार्टी अपनी दरी पर, कार्यकत्र्ताओं को सुने। भविष्य किसी कांग्रेस या भाजपा की डोर से नहीं बंधा जिस पार्टी का कार्यकत्र्ता खुश रहेगा, जो सरकार लोकहित में होगी, वही पार्टी राज करेगी।

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