जातीय जनगणना पर सियासत क्यों

Tuesday, Feb 06, 2024 - 05:40 AM (IST)

बजट भाषण में जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने के लिए कमेटी गठित करने का ऐलान हुआ है। इस पर मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में अमल होने की संभावना है। इसके पहले लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 वर्ष करने के बारे में सरकार ने लोकसभा में विधेयक पेश किया था लेकिन अधिकांश सांसदों की असहमति के बाद उस बिल को स्टैंडिंग कमेटी के हवाले करके ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। भारत में दुनिया की कुल भूमि के 2.4 फीसदी हिस्से में 18 फीसदी आबादी रहती है।

यू.एन. के अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक बढ़ती आबादी की जरूरत को पूरा करने के लिए भारत को अढ़ाई गुना संसाधन चाहिए होंगे। आबादी की वजह से गरीबी, अशिक्षा, बाल मृत्यु, प्रदूषण और बेरोजगारी का वायरस बढ़ता जा रहा है। पी.एम. मोदी ने भी लाल किले से कहा था कि जनसंख्या विस्फोट आने वाली पीढ़ी के लिए संकट पैदा करता है। उन्होंने छोटे परिवार की परिकल्पना को देशभक्ति से जोड़ा था, लेकिन कोई कानून बनाने की बात नहीं की। 

संघ परिवार की चिंता-चीन को पीछे छोड़कर भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का देश बन गया है। जनसंख्या पर काबू पाने के लिए कई उपाय करने वाले चीन में अब 2 और ज्यादा बच्चों को पैदा करने पर जोर दिया जा रहा है। चीन में प्रजनन दर को बढ़ावा देने के लिए सिंगल और अविवाहित महिलाओं को एग फ्रीजिंग व आई.वी.एफ. उपचार की सहूलियत दी जा रही है। भारत में भी अगले 10 सालों में काम करने वाले युवाओं की संख्या में भारी कमी के साथ बूढ़े लोगों की तादाद बढ़ जाएगी। तस्वीर इतनी साफ है तो फिर जनसंख्या नियंत्रण पर नए सिरे से बहस क्यों हो रही है? 

इसे समझने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयानों पर गौर करने की जरूरत है। उनके अनुसार अवैध प्रवासी, धर्मांतरण,बहुविवाह और ज्यादा बच्चों की वजह से कुछ समुदायों की आबादी बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इससे सामाजिक और धार्मिक संतुलन बिगडऩे के साथ कई और खतरे बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता के तहत और असम में बहुविवाह को रोकने के लिए कानून बन रहे हैं। कानून बनने से पहले उनसे बचने के लिए भारत में कानूनी सुरंग बनाने का रिवाज है। इसलिए बहुविवाह को रोकने के लिए लिव-इन, गोद लेने और सिंगल पेरैंट के बारे में भी केंद्र और राज्यों को स्पष्ट कानून बनाने होंगे। अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए नए कानून की बजाय सीमा पर सख्त सुरक्षा की जरूरत है। धर्मांतरण रोकने के लिए कुछ राज्यों ने पहले से ही कानून बनाए हैं। 

1976 में इंदिरा सरकार ने 42वें संविधान संशोधन से परिवार नियोजन को संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत समवर्ती सूची में शामिल किया। नरसिम्हाराव सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए संविधान के अनुच्छेद 47 और 51्र में संशोधन का बिल पेश किया था, जो चार दशकों से ठंडे बस्ते में पड़ा है। अनेक राज्यों में 2 से ज्यादा बच्चों वाले लोगों को सरकारी नौकरी, पंचायती चुनाव और सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित करने के प्रावधान हैं। करुणाकरण कमेटी ने जनप्रतिनिधियों के लिए 2 बच्चों की शर्त का प्रस्ताव दिया था, जो लागू नहीं हो सका। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में नियुक्त जस्टिस वेंकटचलैया आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कई सिफारिशें की थीं। 

जनसंख्या नियंत्रण के बारे में कांग्रेस, भाजपा, सपा, राजद, शिव सेना और तृणमूल कांग्रेस समेत अनेक पाॢटयों के नेता, संसद में 36 निजी विधेयक पेश कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब सांसद थे तो ऑनलाइन पोल करवा कर उन्होंने मोदी सरकार से जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की मांग की थी। इस लम्बी कहानी के बावजूद, मोदी सरकार ने संसद में बयान दिया था कि दो बच्चों के मानदंड को लागू करने या कानून बनाने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। दक्षिण भारत में विवाद जी.डी.पी. यानी गवर्नैंस, डिवैल्पमैंट और परफॉर्मैंस के प्रदर्शन को लेकर है। लेकिन ज्यादा आबादी वाले राज्यों को केंद्र से ज्यादा मदद मिलती है। इसकी वजह से दक्षिण भारत के अनेक विकसित राज्यों में गुस्सा भी है। दक्षिण के राज्यों का संघ बनाने के बारे में कांग्रेसी सांसद सुरेश के बयान पर विवाद हो रहे हैं। 

नई जनगणना के बाद आबादी के अनुसार राज्यों में लोकसभा की सीटें बढेंग़ी। इसके अलावा जातीय जनगणना पर भी सियासत हो रही है। विवादों से बचने के लिए सरकार जनगणना से दूर भाग रही है। जनगणना और एन.पी.आर. को अपडेट करने में लगभग 12000 करोड़ रुपए खर्च का अनुमान है, लेकिन अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने इसके लिए केवल 1277 करोड़ रुपए आबंटित किए हैं। इसलिए 2024 के चुनावी साल में जनगणना होने की उम्मीद नहीं है। 

साल 2020 में केंद्र सरकार ने अदालत में दिए गए हलफनामे में कहा था कि परिवार नियोजन का दबावपूर्ण कार्यक्रम 1994 की काहिरा संधि का उल्लंघन होगा। अगर यह तर्क सही है तो फिर यू.पी. और असम जैसे राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण का कानून बनाने की होड़ क्यों मची है? जो पेरैंट्स बच्चों को भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य नहीं दे सकते, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय संधि के तहत 2 बच्चों से ज्यादा पैदा करने का हक नहीं मिल जाता।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 

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