पंजाब में हिन्दू समाज को अल्पसंख्यक दर्जा क्यों नहीं

punjabkesari.in Thursday, Dec 09, 2021 - 04:35 AM (IST)

पिछले कुछ वर्षों में मुझे कई बार इस प्रश्न का सामना करना पड़ा कि पंजाब में अल्पसंख्यक होते हुए भी हिन्दू समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा क्यों नहीं है? केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अल्पसंख्यकों को दी जानेे वाली सुविधाओं और योजनाओं का लाभ पंजाब में हिन्दू समाज को क्यों नहीं मिलता? इन प्रश्नों का उत्तर तलाशने के लिए मैंने बहुत चिंतन, अध्ययन और विमर्श किया। अपने निष्कर्ष को पाठकों के समक्ष रखने से पहले मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि यह  लेख राजनीतिक दल के कार्यकत्र्ता के नाते नहीं, बल्कि एक पंजाबी हिन्दू के नाते लिख रहा हूं। 

सबसे पहले 2 प्रश्नों पर चर्चा करते हैं कि आखिर भारत में अल्पसंख्यक कौन हैं? इसको निर्धारित करने के मापदंड क्या हैं? संविधान के आॢटकल 29 और 30 में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा की बात की गई है, पर इन दोनों प्रश्नों के बारे में कोई जिक्र नहीं है। भारत में पहली बार ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट 1992’ के  सैक्शन 2(सी) में यह कहा गया कि केंद्र सरकार तय करेगी कि देश में अल्पसंख्यक कौन होंगे। 

इसी एक्ट के अंतर्गत 1993 में एक अधिसूचना के माध्यम से देश में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया। 2014 में जैन समाज को भी अल्पसंख्यकों की सूची में शामिल कर लिया गया । आज देश में अल्पसंख्यकों के लिए जितनी भी सुविधाएं और योजनाएं चल रही हैं, उनका लाभ इन वर्गों को मिल रहा है। 

परन्तु इस एक्ट में सबसे बड़ी खामी यह है कि अल्पसंख्यक को निर्धारित करने के लिए राज्य की जनसंख्या की बजाय पूरे देश की जनसंख्या को आधार बनाया गया, जिसका नतीजा यह हुआ कि देश के 8 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों मणिपुर, नागालैंड, मेघालय, गोवा, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, अरुणाचल प्रदेश और पंजाब में हिन्दू समाज को अल्पसंख्यक होते हुए भी अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिला। 

इन राज्यों में अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सुविधाएं भी वहां के बहुसंख्यक समाज को मिल रही हैं। इस विषय पर विचार करते हुए उच्च न्यायालय ने टी.एम.ए. पाई फाऊंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य सरकार केस में बहुत स्पष्टता से कहा है कि जिस प्रकार भाषाई अल्पसंख्यक प्रदेश की जनसंख्या को आधार बना कर निर्धारित किए जाते हैं उसी प्रकार धार्मिक अल्पसंख्यक भी प्रदेश की जनसंख्या के आंकड़ों को आधार बना कर निर्धारित किए जाने चाहिएं। पंजाब में हिन्दू समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा क्यों मिलना चाहिए, इसके 5 महत्वपूर्ण कारणों को  पाठकों के समक्ष रखना चाहता हूं : 

1. 18 सितम्बर, 1966 में संसद में ‘द पंजाब रीआर्गेनाइजेशन एक्ट’ पारित होने के बाद वर्तमान पंजाब राज्य अस्तित्व में आया। इस नए बने राज्य में हिन्दू अल्पसंख्यक थे। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भी पंजाब में हिन्दू 38.49 प्रतिशत हैं। हालांकि 2020-21 की जनगणना के आंकड़े अभी नहीं आए हैं, परन्तु स्थिति कमोबेश यही रहेगी। प्रदेश में जनसंख्या को आधार मानें तो हिन्दू समाज निश्चित रूप से अल्पसंख्यक है। 

2. हिन्दू धर्म का आधार वेद और उपनिषद हैं। विश्व के सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद की रचना तो पंजाब की धरती पर ही हुई है। भगवान वाल्मीकि और महॢष वेदव्यास ने रामायण और महाभारत की रचना भी इसी धरती पर की थी। हिन्दू धर्म के महान पवित्र ग्रन्थ और उनको रचने वाली देव भाषा संस्कृत आज पंजाब से लगभग लुप्त हो चुकी है। हमारे स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से धीरे-धीरे इसे गायब कर दिया गया। स्कूलों और कॉलेजों में संस्कृत के अध्यापक नाममात्र ही बचे हैं। 

3. विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक सरस्वती-सिंधु घाटी सभ्यता पंजाब में ही फली-फूली। 5000 साल का भव्य और गौरवमयी इतिहास है, जिसमें महान योद्धा पोरस, विश्व के पहले व्याकरण रचयिता पाणिनि, तक्षशिला विश्वविद्यालय, नाथ सम्प्रदाय और विशाल ब्राह्मणी साम्राज्य जैसे अनेकों स्वर्णिम अध्याय हैं। दुर्भाग्य से यह सारा इतिहास आज पंजाब की स्मृतियों से लुप्त  हो गया है या योजनाबद्ध तरीके से लुप्त कर दिया गया है। 

4. पंजाब में हिन्दू समाज अपनी रोजी-रोटी के लिए नौकरी, व्यापार और उद्योगों पर ही निर्भर है। हालांकि कुछ संख्या में किसान भी हैं। पिछले कई दशकों से समय की सरकारों ने हमेशा व्यापार और उद्योगों से भेदभाव किया है। सरकारी और निजी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी कम होते जा रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि पंजाब में हिन्दू समाज लगातार आर्थिक रूप से भी कमजोर होता जा रहा है। 

5. पंजाब में हिन्दू समाज की जनसंख्या लगभग 39 प्रतिशत होने के बावजूद भी सत्ता में भागीदारी बहुत कम है। इस समय पंजाब के 13 सांसदों में सिर्फ 2 हिन्दू हैं, जबकि 5 होने चाहिएं। पंजाब विधानसभा में भी कुल 117 विधायकों में सिर्फ 30 हिन्दू हैं। यही हाल नगर निगमों, जिला परिषदों और पंचायतों में भी है। सिर्फ राजनीतिक सत्ता ही नहीं, अफसरशाही में भी अहम पदों पर हिन्दू अपनी संख्या की तुलना में बहुत कम हैं। 

हिन्दू समाज राजनीतिक रूप से किस प्रकार कमजोर हो चुका है, इसका उदाहरण हाल ही में मिला जब ज्यादातर विधायकों का समर्थन होने के बावजूद भी सुनील जाखड़ को इसलिए मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया क्योंकि वह हिन्दू हैं। इस कमजोर राजनीतिक हैसियत का ही परिणाम है कि आतंकवाद पीड़ित हजारों हिन्दू परिवारों को न तो इन्साफ मिला न उचित मुआवजा मिल सका। इतना ही नहीं, पंजाब में हिन्दू धर्म, परम्पराओं और मान्यताओं का मजाक उड़ाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। 

इन 5 बड़े कारणों से यह जरूरी हो गया है कि पंजाब में हिन्दू समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा मिले। इससे हिन्दू समाज को अपने धार्मिक ग्रंथों, संस्कृत भाषा और इतिहास को सुरक्षित रखने में सहायता मिलेगी। अल्पसंख्यकों को मिलने वाली कई प्रकार की सुविधाओं और योजनाओं का लाभ मिलने से वे आॢथक रूप से भी मजबूत होंगे। अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आखिर यह होगा कैसे? मेरा मानना है कि पंजाब सरकार को इस बारे में पहल करनी चाहिए। 

अभी हाल ही में राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा के एक प्रश्न के उत्तर में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने संसद में जवाब दिया कि किसी समाज को अपने राज्य में अल्पसंख्यक निर्धारित करना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र का विषय है। इस उत्तर से स्पष्ट है कि पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी इस विषय पर विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर कानून बना सकते हैं। 

पंजाब के हिन्दू समाज को उनका बनता हक देने से पंजाब का हिन्दू-सिख भाईचारा और अधिक मजबूत होगा। यह विषय राजनीतिक स्वार्थों की बलि न चढ़े और सब दलों तथा वर्गों के लोग मिल कर इसके न्यायोचित हल के लिए प्रयास करें।-डा. सुभाष शर्मा (पूर्व सीनेटर, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़)


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