कांग्रेस से क्यों कुपित है माया

Sunday, Apr 07, 2019 - 03:56 AM (IST)

आखिर मायावती कांग्रेस से इतनी नाराज क्यों हैं और नाराजगी भी इस कदर कि वह राहुल-सोनिया के खिलाफ भी चुनावी मैदान में उम्मीदवार उतारने की हद तक चली गईं। वैसे उन्होंने पिछले चुनाव में भी अमेठी से अपना उम्मीदवार उतारा था जिसे मात्र 57 हजार वोटों से ही संतोष करना पड़ा था। वहीं कुमार विश्वास की ‘आप’ की उम्मीदवारी अमेठी में मात्र 25,527 वोट ही बटोर पाई थी।

पर कहते हैं माया की कांग्रेस से असली नाराजगी की वजह पी.एल. पुनिया और नसीमुद्दीन सिद्दीकी हैं जो कभी माया के खास सिपहसालारों में शुमार होते थे और आज कांग्रेस कैंप की शोभा बढ़ा रहे हैं। सिद्दीकी को लेकर बहनजी की नाराजगी की ठोस वजह है क्योंकि वह सिद्दीकी ही थे जो बसपा के पैसों का हिसाब-किताब रखते थे, वह क्या गए अपने साथ बहनजी का चैन भी ले गए। कांग्रेस ने न सिर्फ सिद्दीकी को पार्टी में जगह दी, बल्कि उन्हें चुनाव में पार्टी का टिकट भी दे दिया।

जम्मू-कश्मीर में तीन राज्य
अगर दिल्ली के निजाम पर एकबारगी पुन: मोदी सरकार काबिज हुई तो ऐसे में मोदी कई बड़े फैसले ले सकते हैं। इसमें से एक है जम्मू-कश्मीर राज्य को अलग-अलग तीन राज्यों में बांटना। सूत्रों की मानें तो स्वयं मोदी को ऐसा लगता है कि महज धारा 370 हटा देने से कश्मीर समस्या का निदान नहीं होने वाला। अत: मोदी के प्लान में जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीन अलग राज्यों का गठन है, यह आइडिया कहते हैं संघ की कोख में पनपा है और मोदी को यह बेतरह रास आया है। 

तिवारी की नाराजगी
दिल्ली पुलिस से रिटायर होने वाले आई.पी.एस. अधिकारी दीपक मिश्रा की भाजपा से नजदीकियां किसी से छुपी हुई नहीं हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा हाईकमान इस दफे उन्हें पश्चिमी दिल्ली से चुनावी मैदान में उतारने पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रही थी। कहते हैं मिश्रा ने भी अपनी टिकट के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रखा था कि ऐन वक्त दिल्ली भाजपा प्रमुख मनोज तिवारी की नाराजगी सामने आ गई। तिवारी वैसे भी भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ की पार्टी में एंट्री से नाराज बताए जाते हैं, भाजपा से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि वैसे भी दिल्ली में भगवा पार्टी दो ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में उतारने का रिस्क नहीं लेना चाहती है। अत: तिवारी को समझाया गया है कि वह दिल्ली में भाजपा की ओर से सबसे बड़े पूर्वांचली चेहरे के तौर पर प्रोजैक्ट किए जाते रहेंगे, पर वह भी दिल्ली में कमल खिलाने की मुहिम में दिलो-जान से जुटें। 

कितनी हिंदू हैं प्रियंका
काशी के अति प्रतिष्ठित बाबा विश्वनाथ के मंदिर में प्रियंका गांधी वाड्रा के दर्शन को लेकर खासा बवाल मचा हुआ है और कई ङ्क्षहदूवादी संगठन उनके ङ्क्षहदू होने का हलफनामा देने की मांग कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस की ओर से यह तर्क आ रहा है कि प्रियंका के ङ्क्षहदू होने पर सवाल उठाना ठीक नहीं है। इनका कहना है कि जब प्रियंका गांधी का विवाह रॉबर्ट वाड्रा से हुआ तब इन दोनों का विवाह दिल्ली के सीताराम बाजार के एक पुराने कश्मीरी पंडित ने करवाया, जिनका गांधी परिवार में कई वर्षों से आना-जाना था। यहां तक कि इस विवाह की तमाम रस्में कश्मीरी ङ्क्षहदू रीति-रिवाज से सम्पन्न हुईं। विवाह से पहले प्रियंका को बाकायदा ‘डेजारू’ पहनाया गया। जब भाई राहुल को अपनी बहन को विदा करना था तब उन्होंने जनेऊ धारण नहीं कर रखा था। फिर पंडित ने राहुल को जनेऊ धारण करवाया ताकि वह कश्मीरी ङ्क्षहदू रीति से अपनी बहन को विदा कर सकें। विवाह कराने वाले पंडित को भी गांधी परिवार की ओर से तोहफे में एक कश्मीरी शाल भेंट की गई थी। सो, गांधी परिवार से ताल्लुकात रखने वाले इन कांग्रेसियों का पक्के तौर पर मानना है कि प्रियंका और राहुल को अपने ङ्क्षहदू होने के प्रमाण देने की कोई आवश्यकता नहीं। 

प्रसाद-सिन्हा की सिर फुटौव्वल
केन्द्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने जब से पटना की धरती पर कदम रखा है, पार्टी के दो गुटों में सिर फुटौव्वल कम होने का नाम ही नहीं ले रही। भाजपा हाईकमान के बीच-बचाव के प्रयासों के बावजूद आर.के. सिन्हा गुट का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा। कहते हैं सिन्हा गुट का पक्का भरोसा था कि अगर इस दफे पटना साहिब से शॉटगन यानी शत्रुघ्न सिन्हा का टिकट काटा जाता है तो उनकी जगह आर.के. सिन्हा के बेटे रितुराज सिन्हा को मैदान में उतारा जाना चाहिए था। पर सियासी शह-मात के खेल के उस्ताद बाजीगर रवि शंकर प्रसाद ने मीडिया में यह खबर उड़वा दी कि आर. के. सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा के बीच रिश्तेदारी है। यह भी कहा जाता है कि सिन्हा के देहरादून स्थित स्कूल में बतौर चीफ गैस्ट के तौर पर शॉटगन की पत्नी पूनम सिन्हा या फिर उनकी पुत्री सोनाक्षी सिन्हा को आमंत्रित किया जाता रहा है और ये दोनों भी बड़े शौक से सिन्हा के प्रस्ताव को शिरोधार्य करती रही हैं। 

बिमान से खफा येचुरी
सी.पी.एम. महासचिव सीताराम येचुरी के लाख चाहने के बावजूद इस दफे के चुनाव में कांग्रेस के साथ लाल पार्टी का गठबंधन नहीं हो पाया। इसकी मुख्य वजह सी.पी.एम. नेता बिमान बोस को बताया जा रहा है। बिमान खुले तौर पर कांग्रेस के साथ किसी चुनाव पूर्व गठबंधन की मुखालफत कर रहे थे। बिमान का कहना था कि विधानसभा चुनाव में हम कांग्रेस के साथ गठबंधन की कीमत पहले ही अदा कर चुके हैं। अब माकपा का एक वर्ग जोर-शोर से यह बात उछाल रहा है कि चूंकि बिमान के ममता दीदी से बहुत अच्छे निजी ताल्लुकात हैं, सो, वह ममता की भावनाओं को उड़ान दे रहे थे, जो नहीं चाहती थीं कि राज्य में किसी कीमत पर माकपा और कांग्रेस का गठबंधन हों। 

हुसैन का दर्द
शाहनवाज हुसैन इन दिनों अपनी ही पार्टी से भरे बैठे हैं। जब से जद (यू) से गठबंधन के चलते भागलपुर से उनका टिकट कट गया है उनके तेवर में भी किंचित तल्खी आ गई है। सूत्रों की मानें तो मोदी-शाह की उनसे नाराजगी इस बात को लेकर ज्यादा थी कि हुसैन की कांग्रेस नेता अहमद पटेल से गहरी छनती है, यह बात भाजपा हाईकमान को बेहद नागवार गुजर रही थी। अब शाहनवाज कैम्प यह कहता घूम रहा है कि उनके नेता 6 बार चुनावी मैदान में उतरे जिनमें से 3 बार वे विजयी रहे, पिछली बार वे भागलपुर से हारे भी तो मात्र कुछ वोटों से। शाहनवाज कैम्प कह रहा है कि मुख्तार अब्बास नकवी पर पार्टी हाईकमान की इतनी विशेष कृपा क्यों है, जो मात्र एक बार ही लोकसभा चुनाव जीत पाए हैं, पर 4 दफे राज्यसभा में आ चुके हैं और इसमें से तीन बार केन्द्र में मंत्री भी रह चुके हैं। 

...और अंत में 
भाजपा से जुड़े सूत्रों के दावों पर अगर यकीन किया जाए तो भाजपा हाईकमान इस दफे अपने तीन मौजूदा सांसदों मीनाक्षी लेखी, महेश गिरि और उदित राज के टिकट काटने का इरादा रखती है। महेश गिरि को लेकर श्री श्री रविशंकर पहले ही मोदी दरबार में खासी पैरवी कर चुके हैं कि उन्हें गुजरात से टिकट दे दिया जाए। श्री श्री ने गुजरात की एक खास सीट भी चिन्हित कर रखी है जहां उनके भक्तों की एक बड़ी तादाद है। पर कहते हैं मोदी ने इस दफे गेंद अमित शाह के पाले में सरका दी है, जिनके लिए गुजरात उनकी प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है और वह यहां टिकट बंटवारे में कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं।-मिर्च-मसाला त्रिदीब रमण
 

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