बढ़ती महंगाई काबू में क्यों नहीं आ रही

punjabkesari.in Sunday, Nov 28, 2021 - 05:06 AM (IST)

महंगाई का बढऩा आम लोगों के लिए एक ऐसे बुरे सपने की तरह होता है, जिससे पीछा छुड़वाना आसान काम नहीं होता। आज बढ़ती महंगाई ने गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों को झकझोर कर रख दिया है। महंगाई के लिए आंतरिक और वैश्विक दोनों प्रकार के कारण जिम्मेदार होते हैं। कोई व्यक्ति किसी वस्तु को तभी खरीदता है जब उसके पास खरीदने की क्षमता होती है। 

भारत में उदारीकरण से हमारी जी.डी.पी. में वृद्धि तो अवश्य हुई मगर प्रशासन, राजनीतिज्ञों और समाज के गठबंधन से आर्थिक भ्रष्टाचार के कई रास्ते भी खुलते चले गए। इसी तरह धनाढ्य वर्ग की देखा-देखी सामान्य लोगों का खर्च भी बढऩे लगता है मगर बाद में उनकी बचत नगण्य तथा वस्तुएं खरीदने की उनकी शक्ति कम हो जाती है। कोरोना काल में आर्थिक गतिविधियां लगभग शिथिल हो चुकी थीं। लोगों की हर वस्तु के लिए मांग कम होती गई तथा कीमतें बढ़ गईं। 

भारत में बढ़ती महंगाई के कई कारण हैं :
*सरकार को हर वर्ष अपने वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए विदेशी व स्वदेशी उधार उठाना पड़ता है या फिर विभिन्न प्रकार के करों में वृद्धि करनी पड़ती है। इस वर्ष मार्च के अंत में भारत का विदेशी ऋण 570 बिलियन अमरीकी डालर था। इतना बड़ा ऋण चुकाने में भारत के आर्थिक विकास पर निश्चित तौर पर बुरा प्रभाव पड़ता आया है। याद रहे कि वर्ष 2020-21 में वित्तीय घाटा जी.डी.पी. का 9.3 प्रतिशत रहा है।

*यह ठीक है कि पैट्रोल व डीजल की कीमतों के बढऩे का मुख्य कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल उत्पादक देशों द्वारा इनकी कीमतों में वृद्धि करना है, मगर सरकार के आय के साधन सीमित होने लगते हैं। तब ऐसे पदार्थ, जिन्हें आमतौर पर अमीर लोग ही प्रयोग में लाते हैं, उन पर अतिरिक्त कर लगाना सरकार की मजबूरी हो जाती है। तेल कंपनियों के कर्ज चुकाने के लिए आयॅल बांड्स जारी कर दिए जाते हैं जिनकी अवधि 15 से 20 वर्ष तक होती है। कम्पनियों का सारा उधार चुकाने के लिए सरकार को भारी भरकम राशि खर्च करनी पड़ रही है। तेल की कीमतें बढऩे से गाडिय़ों की खपत भी कम होती चली गई तथा जब ऑटोमोबाइल क्षेत्र मंदी में चला गया तब बेरोजगारी व अन्य पदार्थों की कीमतें भी बढ़ती चली गईं। 

*जन कल्याण के लिए सरकार को कई प्रकार की स्कीमें चलानी पड़ती हैं। गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों के लिए सस्ता राशन, मुुुफ्त गैस कनैक्शन व चूल्हे, बिजली-पानी की कम दरें निश्चित तौर पर सरकार को अन्य वस्तुओं पर टैक्स लगाने के लिए मजबूर करती हैं। कई भ्रष्ट लोग गरीबों के लिए चलाई गई स्कीमों का फायदा खुद भी उठाने लगते हैं। उदाहरण के लिए, मनरेगा के अंतर्गत जाली मस्ट्रोल तैयार किए जाते हैं तथा सरकारी धन को चूना लगाया जाता है। 

*सरकार को देश की आंतरिक व बाहरी सुरक्षा के लिए पर्याप्त मात्रा में धन खर्चना पड़ता है। सेनाओं की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ आधुनिक उपकरणों पर भी काफी धन व्यय करना होता है। ऐसा खर्चा उत्पादन में प्रत्यक्ष रूप से कोई वृद्धि नहीं करता, जिसकी खपत लोगों द्वारा की जानी हो। 

*प्राकृतिक कारणों से फसलें कम होने से अनाज की कमी आ जाती है। ऐसी आपात स्थितियों से निपटने के लिए सरकार के आरक्षित भंडार होते हैं। कुप्रबंधन व भ्रष्टाचार के कारण बहुत से उत्पाद, जैसे गेहूं व चावल आदि का उचित भंडारण नहीं होता या उचित वितरण नहीं किया जाता। 

*महंगाई बढऩे के लिए व्यापारी वर्ग भी कहीं न कहीं जिम्मेदार होता है। कालाबाजारी व टैक्स चोरी आम बात है। उदाहरण के लिए, सरकार ने जी.एस.टी. के माध्यम से टैक्सों का सरलीकरण तो आवश्यक तौर पर किया है, मगर उद्योगपति अब भी बिना जी.एस.टी. अदा किए काफी मात्रा में अपनी वस्तुएं तैयार कर रहे हैं। यह सारा कार्य संबंधित अधिकारियों की उदासीनता या मिलीभगत से ही संभव हो रहा है। 

*कई बार केन्द्र व प्रांतीय सरकारें कुछ ऐसे विभागों का सृजन कर देती हैं, जिनकी कोई विशेष उपयोगिता नहीं होती तथा सरकार को अधिकारियों व कर्मचारियों की फौज पर बहुत धन खर्चना पड़ता है। उदाहरणस्वरूप, कुछ प्रदेशों में मानवाधिकार आयोग व लोकायुक्त जैसी संस्थाओं पर लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं, जबकि इनके पास शायद ही ऐसे शिकायत पत्र आते हों, जिनका निपटारा इनके द्वारा किया गया हो। 

वैसे भी राज्यों में विजीलैंस विभाग कार्य कर ही रहा है तथा इक्का-दुक्का शिकायतों की जांच इस विभाग द्वारा आसानी से की जा सकती है। इसके अतिरिक्त कई अधिकारियों व कर्मचारियों को सेवानिवृति के बाद भी सेवा विस्तार दिया जाता है तथा ऐसा करने से एक तरफ रोजगार कम होता है तथा दूसरी तरफ बूढ़े हो चुके तथा चले हुए कारतूसों पर सरकार को अत्यधिक धन खर्चना पड़ता है। 

*सरकार की फिजूलखर्ची महंगाई बढ़ाने में सबसे अधिक योगदान देती है। विभिन्न आयोजनों पर चायपान व सजावट व महंगे तोहफों की व्यवस्था पर काफी खर्च किया जाता है। सरकारी गाडिय़ों का दुरुपयोग व बिना किसी औचित्य के सुरक्षा कर्मियों पर किया गया खर्च सरकारी खजाने पर बोझ डालता रहता है। 

उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सरकार को महंगाई पर नियंत्रण पाने के लिए ठोस प्रयास करने तथा अपनी फिजूलखर्ची पर लगाम लगानी चाहिए। लोगों को सरकारी धन पर आश्रित नहीं बनना चाहिए नहीं तो इनकी हालत उन परिंदों की तरह हो जाएगी जो पिजरों में डाले हुए दानों पर पलते हैं तथा बाद में निकम्मे हो जाने पर पिंजरों से बाहर निकाल कर उड़ा दिए जाते हैं। मगर उस समय तक वे उडऩा भी भूल चुके होते हैं तथा जल्द ही मौत के शिकार हो जाते हैं।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी.(रिटायर्ड)
 


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