इस बार का ‘गणतंत्र दिवस’ क्यों खास है

Sunday, Jan 26, 2020 - 01:02 AM (IST)

आज का गणतंत्र दिवस कोई साधारण नहीं है। हम अपने संविधान की इस वर्ष 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। 1950 में कइयों ने यह सवाल उठाया कि आखिर यह कब तक कायम रह सकेगा। यहां पर मात्र कुछ ही संविधान हैं जो लम्बे समय तक चले हों और यकीनी तौर पर तीसरी दुनिया में ऐसा कोई भी संविधान नहीं। ऐसा क्यों हुआ, यह अहम सवाल है। मगर मैं भारतीय संविधान की गहराइयों को मापना चाहता हूं। इसके बचने की चुनौती के बारे में तब ही बात की जा सकती है।

हमारे संविधान का सच में ही एक सच्चा विलक्षण गुण है 
कोलंबिया तथा अशोका यूनिवर्सिटीज में प्रो. माधव खोसला द्वारा हाल ही में संविधान पर किए गए शोध में खुलासा किया गया है कि हमारे संविधान का सच में ही एक सच्चा विलक्षण गुण है। यह ऐसी चीज है जिसको हम में से कइयों ने कभी भी नहीं सराहा। हमारे संविधान का सबसे बड़ा विचार यह है कि यह अपने आप में तथा भारत के लोगों के बीच एक संबंध स्थापित करता है। माधव खोसला तर्क देते हैं कि यह दो रास्तों वाला नाजुक रिश्ता है। मात्र यह बात नहीं कि संविधान का निर्माण भारतीय लोगों ने किया या फिर संवैधानिक असैम्बली में लोगों के प्रतिनिधियों के माध्यम से इस पर कार्य किया गया है बल्कि संविधान तो एक ऐसी कला थी जिसके द्वारा भारतीय लोगों को एक ही सांचे में ढालने का सावधानी से प्रयास किया गया है। इन्हीं विचारों से इसका निर्माण किया गया। दूसरे शब्दों में, 70 वर्षों बाद हम आज जो भी हैं वह संविधान के कारण ही हैं। इसी ने हमें आकार दिया है। 

जैसा कि खोसला बयां करते हैं कि संविधान के निर्माताओं ने लोकतांत्रिक राजनीति के माध्यम से लोकतांत्रिक नागरिकों को बनाया। यह तभी स्पष्ट होगा कि जब आप संविधान को भारत में बनाने तथा पश्चिम में बनाने के बीच भेद जान लोगे। पश्चिम के लिए खोसला लिखते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय मतदाता एक उचित औसतन आय के स्तर को पाने के बाद ही अस्तित्व में आया तथा राज्य प्रशासनिक प्रणाली अपेक्षाकृत स्थापित की गई। भारत में इसे अर्पित इसलिए किया गया क्योंकि देश गरीब और अनपढ़ था तथा जाति, धर्म तथा भाषा के आधार पर बंटा हुआ था। साथ ही साथ सदियों पुरानी परम्पराओं के बोझ तले दबा हुआ था। इसलिए हमारे संविधान निर्माता सदियों तक कायम रहे समय की धारणा के अनुसार बंट गए।

लोगों को शिक्षित करना था तथा उन्हें आर्थिक तौर पर उस बिन्दू तक ले जाना था जहां पर वे अंतर्राष्ट्रीय मतदाता के लिए सही साबित हो सकें। संविधान निर्माण एक प्रमुख दरार थी। खोसला भारतीय संविधान को एक विशेष रोशनी में देखते हैं। भारतीय लोकतंत्र का अनुभव न सिर्फ एक राष्ट्र का अनुभव है बल्कि यह अपने आप में लोकतंत्र का अनुभव है। वह मानते हैं कि आधुनिक युग में लोकतंत्र की संरचना एक नई मिसाल कायम करना थी। 

हमारा संविधान आखिर क्यों बच पाया तथा इसके प्रति निष्ठा कैसे बढ़ गई
हम अपने गणराज्य को प्रतिबिम्बित करते हैं तथा संविधान तथा लोकतंत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हैं। हमें दो और सवाल भी करने हैं। एक यह कि हमारा संविधान आखिर क्यों बच पाया तथा इसके प्रति निष्ठा कैसे बढ़ गई। जबकि सीमापार पाकिस्तान में लोगों ने अलग तौर पर अपनी किस्मत को झेला। इसके लिए खोसला का जवाब कठोर तथा साधारण है। वह कहते हैं कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को संविधान के साथ दिक्कतें थीं, तब इसी कारण उन्होंने संवैधानिक तरीकों द्वारा इनमें संशोधन करने का मन बनाया। उन्होंने न तो गतिरोध उत्पन्न किया, न ही इसे उखाड़ फैंका। दूसरा प्रश्र बेहद समकालीन है। हाल ही के दो संवैधानिक विवाद हमें हमारे संविधान के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को बताते हैं। 

यहां पर मैं नागरिकता संशोधन कानून तथा अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय करने की बात कर रहा हूं। इसके साथ-साथ मैं जम्मू-कश्मीर को बांटने तथा इसके पदावनति की बात भी कर रहा हूं। इन्होंने संविधान तथा इसके सिद्धांतों को कमजोर किया है और हम पर अलोकतांत्रिक तथा पलटे जाने का खतरा मंडरा रहा है। इन कार्रवाइयों के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शन एक संकेत हैं कि संविधान के प्रति हमारी प्रतिबद्धता क्या इतनी सुदृढ़ है जितनी कि यह हुआ करती थी? खोसला का कहना है कि आप इसका जवाब समानांतर तौर पर बलपूर्वक दे सकते हैं। मेरा मानना है कि इसका मतलब यह है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या आप एक आशावादी हो या फिर निराशावादी। मेरा विचार तो पूरी तरह शीशे जैसा साफ है। जिन प्रदर्शनों को हम देख रहे हैं वे बेहद सकारात्मक हैं तथा संविधान के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को जताते हैं। यही कारण है कि इस बार का गणतंत्र दिवस विशेष है।-करण थापर
 

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