क्यों है ‘मिग’ को ढोते रहना वायु सेना की मजबूरी

Sunday, Sep 29, 2019 - 03:25 AM (IST)

एक ओर जहां स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान ‘तेजस’ और हवा से हवा में मार करने वाली स्वदेश निर्मित ‘अस्त्र’ मिसाइल तथा फ्रांस से मिलने वाले अत्याधुनिक ‘राफेल’ विमान वायुसेना के बेड़े में शामिल होकर भारतीय वायुसेना को और मजबूत तथा अत्याधुनिक बनाने की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले हैं, वहीं पिछले दिनों वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी.एस. धनोआ ने जिस प्रकार वायुसेना के बेड़े में शामिल 44 साल पुराने मिग लड़ाकू विमानों को लेकर चिंता जाहिर की, उससे वायुसेना में लड़ाकू विमानों की कमी और वायुसेना की जरूरतों का स्पष्ट अहसास हो जाता है। 

दरअसल वायुसेना को करीब 200 अत्याधुनिक विमानों की आवश्यकता है और राफेल तथा स्वदेशी विमानों के वायुसेना के बेड़े में शामिल होने के बाद भी इस कमी को पूरा करना संभव नहीं दिखता। हालांकि वायुसेना के आधुनिकीकरण और सशक्तिकरण की दिशा में पिछले कुछ वर्षों में सशक्त कदम उठाए गए हैं लेकिन अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। 

पिछले दिनों धनोआ ने कहा था कि हमारी वायुसेना जितने पुराने मिग विमानों को उड़ा रही है, उतनी पुरानी तो कोई कार भी नहीं चलाता। उक्त कथन वायुसेना प्रमुख ने दिल्ली में ‘भारतीय वायुसेना का स्वदेशीकरण और आधुनिकीकरण योजना’ विषय पर आयोजित एक सैमीनार में व्यक्त किए थे। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में उनका कहना था कि भारतीय वायुसेना की स्थिति लड़ाकू विमानों के बिना बिल्कुल वैसी ही है, जैसे बिना फोर्स की हवा। 

धनोआ का दो टूक लहजे में यही कहना था कि दुनिया को अपनी हवाई ताकत दिखाने के लिए हमें अभी और अधिक आधुनिक लड़ाकू विमानों की आवश्यकता है। उनके मुताबिक मिग विमानों का निर्माता देश रूस भी अब मिग-21 विमानों का उपयोग नहीं कर रहा है लेकिन भारत इन विमानों को अभी तक उड़ा रहा है क्योंकि हमारे यहां इनके कलपुर्जे बदलने और मुरम्मत की सुविधा है। हालांकि उनकी इस टिप्पणी को अगर बहुत पुरानी कारों का इस्तेमाल न किए जाने से जोड़कर देखें तो उसका सीधा-सा अर्थ है कि जब कलपुर्जे बदलकर मुरम्मत के सहारे इतनी पुरानी कार को चलाना ही किसी भी दृष्टि से किफायती या उचित नहीं माना जाता तो मिग-21 विमानों को कैसे माना जा सकता है? 

बेड़े से बाहर होंगे मिग विमान
उल्लेखनीय है कि भारत का सोवियत संघ के साथ वर्ष 1961 में मिग-21 विमानों के लिए ऐतिहासिक सौदा हुआ था और भारतीय वायुसेना को 1964 में पहला सुपरसोनिक मिग-21 विमान प्राप्त हुआ था। भारत ने रूस से 872 मिग विमान खरीदे थे, जिनमें से अधिकांश क्रैश हो चुके हैं। हालांकि इन विमानों ने 1971 की लड़ाई से लेकर कारगिल युद्ध सहित कई विपरीत परिस्थितियों में अपना लोहा मनवाया और बहुत पुराने होने के बावजूद इसी साल फरवरी माह में पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमान को मार गिराकर इसने अपनी सफलता की कहानियों में एक और अध्याय जोड़ दिया था। मिग-21 हल्का सिंगल पायलट लड़ाकू विमान है, जो अधिकतम 2230 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से करीब 18 हजार मीटर की ऊंचाई तक उड़ सकता है। 

लम्बे अर्से तक मिग-21 लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना की शान रहे हैं किन्तु ये विमान अब इतने पुराने हो चुके हैं कि आंकड़े देखें तो पिछले 4 दशकों में हम 872 में से आधे से भी ज्यादा मिग-21 विमान दुर्घटनाओं में गंवा चुके हैं। यही कारण रहे हैं कि 4 दशक से ज्यादा पुराने इन मिग विमानों को बदलने की मांग लम्बे समय से हो रही है किन्तु वायुसेना के लिए लड़ाकू विमानों की कमी के चलते इनकी सेवाएं लेते रहना उसकी मजबूरी रही है। हालांकि अब निर्णय लिया जा चुका है कि मिग-21 विमानों को इसी साल दिसम्बर में वायुसेना के लड़ाकू विमानों के बेड़े से बाहर कर दिया जाए। वायुसेना का कहना है कि मिग बाइसन विमानों को छोड़कर 2030 तक चरणबद्ध तरीके से अन्य सभी मिग विमानों को भी हटाया जाएगा। 

मिग विमानों की 482 दुर्घटनाएं
अगर पिछले कुछ दशकों में हुए मिग हादसों और उससे वायुसेना को हुए भारी-भरकम नुक्सान की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1971 से 2012 के बीच 482 मिग विमानों की दुर्घटना में 171 फाइटर पायलट, 39 आम नागरिक, 8 सैन्यकर्मी तथा विमान चालक दल के एक सदस्य की मौत हुई। केन्द्र सरकार द्वारा मार्च 2016 में संसद में जानकारी दी गई थी कि वर्ष 2012 से 2016 के बीच भारतीय वायुसेना के कुल 28 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए, जिनमें एक-चौथाई अर्थात 8 मिग-21 विमान थे और इनमें से भी 6 मिग-21 विमान ऐसे थे, जिन्हें अपग्रेड कर ‘मिग-21 बाइसन’ का दर्जा दिया गया था। इसी वर्ष अब तक कई मिग विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। फिलहाल वायुसेना के बेड़े में करीब 38 मिग-21 विमान ही शेष बचे हैं। 

मिग-21 के अलावा वायुसेना के पास इस समय 100 से भी ज्यादा मिग-23, मिग-27 और मिग-29 विमान हैं जबकि करीब 112 मिग बाइसन हैं। मिग बाइसन चूंकि अपग्रेड किए हुए मिग विमान हैं, इसलिए उनका इस्तेमाल जारी रहेगा लेकिन बाकी सभी मिग विमानों को चरणबद्ध तरीके से वायुसेना से बाहर किया जाएगा। करीब एक दशक पहले मिग विमानों को बाइसन मानकों के अनुरूप अपग्रेड करना शुरू कर उनमें राडार, दिशासूचक क्षमता इत्यादि बेहतर की गई किन्तु अपग्रेडेशन के बावजूद वास्तविकता यही है कि मिग विमानों की उम्र बहुत पहले ही पूरी हो चुकी है। 

आज के समय में ऐसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की जरूरत है जो छिपकर दुश्मन को चकमा देने, सटीक निशाना साधने, उच्च क्षमता वाले राडार, बेहतरीन हथियार, ज्यादा वजन उठाने की क्षमता इत्यादि सुविधाओं से लैस हों जबकि मिग का न तो इंजन विश्वसनीय है और न ही इनसे सटीक निशाना साधने वाले उन्नत हथियार संचालित हो सकते हैं। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो मिग विमान 1960 व 1970 के दशक की टैक्नोलॉजी के आधार पर निर्मित हुए थे जबकि अब हम 21वीं सदी के भी करीब 2 दशक पार कर चुके हैं। 

हवा में उडऩे वाला ताबूत 
हालांकि मिग अपने समय के उच्चकोटि के लड़ाकू विमान रहे हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ही मिग विमानों की इतनी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं कि अब इन्हें ‘हवा में उडऩे वाला ताबूत’ भी कहा जाता है। इन विमानों के निरन्तर दुर्घटनाग्रस्त होते जाने का प्रमुख कारण यही बताया जाता रहा है कि ये विमान रूस की पुरानी तकनीक से निर्मित हैं और अब इनके असली पुर्जे नहीं मिल पाते। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो सही मायनों में मिग विमानों को 1990 के दशक में ही सैन्य उपयोग से बाहर कर दिया जाना चाहिए था क्योंकि हर लड़ाकू विमान की एक उम्र मानी जाती है और मिग विमानों की उम्र करीब 20 साल पहले ही पूरी हो चुकी है लेकिन हम इन्हें अपग्रेड कर इनकी उम्र बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं और तमाम ऐसी कोशिशों के बावजूद इनकी कार्यप्रणाली प्राय: धोखा देती रही है, जिसका नतीजा मिग विमानों की अक्सर होती दुर्घटनाओं के रूप में बार-बार देखा भी जाता रहा है। 

बहरहाल अच्छी खबर यह है कि फ्रांस से अत्याधुनिक तकनीक से निर्मि त राफेल विमानों की आर्पूति शुरू होते ही वायुसेना के बेड़े से मिग विमान हटने शुरू हो जाएंगे लेकिन फिलहाल भारत को अगले 3 वर्षों के भीतर कुल 36 राफेल विमान ही मिलने हैं जबकि भारतीय वायुसेना को इस समय अपने बेड़े में करीब 200 अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की आवश्यकता है। 

चरणबद्ध तरीके से मिग विमानों की विदाई होते जाने के बाद वायुसेना की जरूरतों की पूर्ति करने के लिए सुखोई विमानों के अलावा तेजस विमान भी मिग का स्थान लेंगे किन्तु इनके वायुसेना के बेड़े में शामिल होने के बाद भी वायुसेना को बड़े पैमाने पर आधुनिक लड़ाकू विमानों की जरूरत रहेगी, इसलिए संभावना है कि आने वाले समय में आधुनिक विमानों की खरीद के कुछ और बड़े सौदे हो सकते हैं। इसके अलावा जिस प्रकार रक्षामंत्री द्वारा विदेशी निर्माताओं पर निर्भरता कम करने की बातें कही जा रही हैं, उससे संभव है कि तेजस जैसे ही कुछ और स्वदेशी लड़ाकू विमानों के निर्माण की दिशा में तेजी देखने को मिले।-योगेश कुमार गोयल
 

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