देश छोड़ विदेशी नागरिक क्यों बन रहे भारतीय

Monday, Aug 08, 2022 - 05:00 AM (IST)

कुछ हफ्तों पहले गृह मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में चौंका देने वाले आंकड़े बताए। आंकड़ों के अनुसार 2015 से 2021 के बीच 9 लाख 32 हजार 276 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी है। गृह मंत्रालय के अनुसार केवल साल 2021 में 163,370 लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ी। मंत्रालय के अनुसार इन भारतीयों ने ‘निजी वजहों’ से नागरिकता छोडऩे का फैसला लिया। सवाल उठता है कि इतने बड़े पैमाने में भारतीय देश छोड़ कर क्यों जा रहे हैं? 

गौरतलब है कि कोरोना काल में बहुत सारे बड़े उद्योगपति देश छोड़ कर कनाडा, अमरीका, यू.के., यू.ए.ई. और यूरोप आदि जैसे देशों में चले गए। इन धन कुबेरों के देश छोड़ने की एक बड़ी वजह कोरोना को बताया गया। हालांकि 2022 में भी इन उद्योगपतियों का देश छोड़ अन्य देशों में बसने का सिलसिला जारी है। 

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह एक अच्छा संकेत नहीं। इसके साथ ही, अमीरों के देश से पलायन की मुख्य वजह टैक्स से जुड़े सख्त नियम बताए गए हैं। पिछले महीने एक ब्रिटिश कम्पनी की रिपोर्ट ने यह दावा किया था कि भारत से लगभग 8,000 करोड़पति 2022 में विदेशों में शिफ्ट हो सकते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि ये लोग उन देशों में जाना चाहते हैं जहां का पासपोर्ट ज्यादा ताकतवर माना जाता है। 

जो भी लोग भारत छोड़ विदेशों में नौकरी के सिलसिले में जाते हैं उन्हें वहां पर मिलने वाली सुख-सुविधाएं इतनी प्रभावित करती हैं कि वे लौट कर भारत नहीं आना चाहते। कुछ लोग तो वहां काम करते-करते अपना घर तक बसा लेते हैं। परिवार बढऩे के बाद जब उन्हें वहां की नागरिकता मिल जाती है तो उसकी तुलना वे भारत में मिलने वाली सुविधाआें के साथ करते हैं। 

विदेशों में जाकर बसे भारतीय वहां पर काम करने के माहौल, बच्चों की पढ़ाई, रहने के ढंग आदि को काफी सकारात्मक मान कर अपनी जन्मभूमि से नाता तोडऩे पर मजबूर होते हैं। यह पहली बार नहीं है जब भारतीय लोग देश छोड़ कर विदेशों में बसने लगे हैं। ऐसा चलन तो दशकों से चल रहा है। परंतु हाल ही के वर्षों में यह कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। भारतीयों को नागरिकता देने वाले देशों में अमरीका ने सबसे ज्यादा नागरिकता दी है। आजादी के 75 वर्षों में अगर बड़े पैमाने पर भारतीय मूलभूत सुविधाओं की खोज में देश छोड़ कर जाने को मजबूर हो रहे हैं तो यह एक चिंता का विषय है। 

एक सर्वे के मुताबिक व्यापारी वर्ग का मानना है कि भारत में उन्हें अपने व्यापार या कारोबार की सुरक्षा की चिंता है। यह सुरक्षा देश में विभिन्न करों और नियमों में आए दिन होने वाले बदलावों के कारण भी है। इसी असुरक्षा के कारण इन उद्योगपतियों को देश छोडऩे का निर्णय लेना पड़ रहा है। यदि भारत में उद्योगपतियों को उनके व्यापार के प्रति सुरक्षा की गारंटी मिल जाए तो शायद यह पलायन इतनी बड़ी संख्या में न हो। एक ओर तो व्यापारिक सुरक्षा कारण है तो वहीं दूसरी ओर देश का कानून भी कुछ लोगों को नागरिकता छोडऩे पर मजबूर कर देता है। फिर आप चाहे उनको भगौड़े कहें या हाईप्रोफाइल अपराधी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे सैंकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे। 

शिक्षा के क्षेत्र में देश में मूलभूत ढांचे का कमजोर होना भी देश से हो रहे ‘ब्रेन-ड्रेन’ का एक कारण है। देश का होनहार युवा तमाम कोशिशों के बावजूद, देश में आरक्षण और अन्य वजहों के चलते अपने हुनर को निखार नहीं पाता। किसान का पुत्र अगर पढ़ाई-लिखाई में तेज है तो वह खुद को अच्छी शिक्षा देने की होड़ में लग जाता है। ऐसे में उसका किसान पिता भी उसे रोकता नहीं है बल्कि वह जरूरत पडऩे पर अपनी जमीन को गिरवी रख कर उसे पढ़ाता है। परंतु आरक्षण कानून के चलते जब उसे अच्छी नौकरी नहीं मिल पाती तो वह हताश हो जाता है। 

भारत में अभी तक एकल नागरिकता का ही प्रावधान है। कानून के जानकारों के मुताबिक दोहरी नागरिकता का प्रावधान भी पलायन का एक कारण है। भारत छोड़ कर जाने वाले लोगों की प्राथमिकता उन देशों में जाकर बसने की भी है जिन देशों में ऐसा कानून है। यदि कोई भी भारतीय अपनी नागरिकता और पासपोर्ट छोड़ देता है तो उसे भारत सरकार दोहरी नागरिकता न दे कर आ.सी.आई. कार्ड जारी कर देती है। 

इस कार्ड से केवल उस व्यक्ति को भारत में आने के लिए वीज़ा नहीं लेना पड़ता। वह बेझिझक देश में आ सकता है। परंतु नागरिकता से जुड़े उसके कई अधिकार रद्द हो जाते हैं। दुनिया के कई देशों में अर्जेंटीना, इटली, पराग्वे व आयरलैंड ऐसे देश हैं जहां पर दोहरी नागरिकता का प्रावधान है। भारत की नागरिकता छोडऩे के पीछे यह भी एक बड़ी वजह है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो देश छोडऩे वालों ने निजी कारणों को ही देश छोडऩे की वजह बताई, लेकिन यदि इस पर गौर किया जाए तो मूलभूत सुविधाओं की कमी भी देश छोडऩे का एक महत्वपूर्ण कारण दिखाई देती है। आज़ादी के 75 वर्षों में कई सरकारें आईं और गईं लेकिन देश से पलायन करने की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही। इस बात को मौजूदा सरकार और आने वाली सरकारों को गंभीरता से लेना होगा नहीं तो देश से होने वाले ‘ब्रेन-ड्रेन’ की संख्या पर लगाम नहीं लग पाएगी।-विनीत नारायण

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