भारत क्यों बने हिन्दू राष्ट्र

punjabkesari.in Monday, May 09, 2022 - 06:00 AM (IST)

जब भारत का कोई संत श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में जुडऩे को तैयार नहीं था, तब देशभर के संतों को जोड़ कर अकेले अपने बूते पर इस आंदोलन को खड़ा करने वाले विरक्त संत स्वामी वामदेव जी महाराज की प्रबल इच्छा थी कि भारत हिंदू राष्ट्र बने। इस विषय पर दशकों पुराना उनका लेख वृंदावन के विरक्त संत और स्वामी वामदेव महाराज के दाहिने हाथ रहे त्यागी बाबा से प्राप्त हुआ है। 

उसे यहां ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूं, ‘‘वह राष्ट्र, जिसका नाम इंडिया के स्थान पर हिन्दुस्तान होगा, क्योंकि संविधान में ‘इंडिया दैट इज भारत’ इंडिया देश का नाम है और ‘भारत’ द्वितीय श्रेणी का नाम है। इसलिए इंडिया के स्थान पर हिन्दुस्तान होना आवश्यक है, जिससे ऐसा भान हो कि यह देश हिन्दू संस्कृति का है। ऐसा सांस्कृतिक वातावरण बनाया जाएगा, जहां हर व्यक्ति सर्वसुखी हो, सर्वनिरोगी हो, सर्व अपनी इन्द्रियों से सुखदायी वस्तु का अनुभव करें। कोई दु:खी न हो, इस संकल्प के साथ अपने दैनिक कार्यों का प्रारम्भ करेगा।’’ 

स्वामी जी कहते हैं कि, ‘‘हिन्दू-राष्ट्र शब्द उस भू-भाग का बोध कराता है, जहां पवित्र हिमालय पर्वत है, जहां गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी, ब्रह्मपुत्रादिक अनेकानेक नदी-नद बह रहे हैं। जो अनेक अवतारों की जन्मभूमि है। जिसे अनेक धर्मगुरुओं ने पवित्र किया है। जहां अनेक वीर तथा वीरांगनाओं की गाथाएं गूंज रही हैं। जहां की संस्कृति अनेक मत-पंथों तथा भाषाओं आदि को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही नहीं देती, अपितु उनका पोषण तथा सामंजस्य भी स्थापित करती है। ऐसा बोध इंडिया शब्द से नहीं होता।’’

‘‘हिमालय से कन्या कुमारी (इन्दू सरोवर) तक फैले इस देश का परिचय थोड़े शब्दों में देने की प्रक्रिया के अनुसार हिमालय का प्रथम अक्षर ‘हि’ तथा इन्दू सरोवर के नाम से ‘न्दू’ अक्षर को ग्रहण करके अर्थात् हि-न्दू = हिन्दू नाम इस विस्तृत देश के मनीषियों ने ही रखा है। इसे हिन्दुस्तान कहते आए हैं। गालिब आदि अनेक मुसलमान विद्वानों ने भी इस देश को हिन्दुस्तान नाम देकर ही गौरव प्रदान किया है। इसमें रहने वाले लोग इस देश के नाम के अनुसार अपने को हिन्दू मानते चले आए हैं। अंग्रेजों के आने से पहले यहां के मुसलमानों ने भी इस देश का नाम हिन्दुस्तान ही तो माना था। अंग्रेजों के आने पर इसका नाम इंडिया रखा था। जब इस देश से अंग्रेजी शासन चला गया तो उसी समय अंग्रेजों की गुलामी का बोध कराने वाले इंडिया नाम को भी  हटा देना चाहिए था।’’ 

वे लिखते हैं कि ‘‘स्वतन्त्रता से पूर्व लंका का नाम सीलोन था। जब लंका स्वतंत्र हुआ तो अंग्रेजों की पराधीनता का नाम त्याग दिया। देश का नाम उन्होंने लंका नहीं अपितु ‘श्रीलंका’ रख कर अपने देश को गौरवान्वित किया है, परन्तु हमारे नेताओं ने ऐसा नहीं किया। ऐसा यदि जानकर किया है तो अपराध है और यदि अनजाने में किया है तो भूल है। यदि अंग्रेजों से दबकर किया है तो यह गुलामी है।’’ 

स्वामी जी आगे कहते हैं कि ‘‘विश्व में मुख्य रूप से रहने वाली जनता ईसाई, मुसलमान और हिन्दू नाम से जानी जाती है। उनमें से यीशु द्वारा प्रचारित धर्म को मानने वाले ईसाई और मोहम्मद साहब द्वारा प्रचारित मजहब को मानने वाले मुसलमान कहलाते हैं। हिन्दू का नाम किसी कल्चर, मजहब या पंथ को मानने के कारण नहीं रखा गया, बल्कि भारत-भूमि में जन्मी सभी विचार पद्धतियों का एक मात्र केन्द्र हिन्दू है। अत: वह असाम्प्रदायिक तथा पंथ-निरपेक्ष है। उसने किसी की पूजा-पद्धति से द्वेष नहीं किया है। परन्तु आज इन विशिष्ट गुणों से युक्त हिन्दू को साम्प्रदायिक आदि शब्दों से अपमानित किया जा रहा है तथा साम्प्रदायिक, राष्ट्रद्रोही लोगों को प्रोत्साहन देकर देश में खूनी संघर्ष किए जा रहे हैं। इन कारणों से देश में आॢथक संकट तथा नैतिकता का पतन हो रहा है।’’ 

वह दृढ़ता से कहते हैं कि ‘‘यद्यपि यह देश हिन्दू-राष्ट्र ही है तथापि जिस दिन हिन्दू राष्ट्र के नाम से इस देश की घोषणा होगी, उस दिन ङ्क्षहदुओं में अपने विशिष्ट गुणों को लेकर एक ऐसी जागृति आएगी कि फिर इस देश में साम्प्रदायिकता और राष्ट्रद्रोह को अवकाश प्राप्त नहीं होगा। इसके आधार पर होने वाले खूनी संघर्ष भी समाप्त हो जाएंगे।’’

‘‘इस हिन्दू विरोध के कारण ही, इस देश की धरती, संस्कृति तथा गौरव की भावनाओं में उत्पन्न हिन्दू से एक वर्ग (मुसलमान) घृणा करने लगा है। कट्टरपंथी मुसलमान तथा उनके कट्टरपने को पुष्ट करने वाले राजनीतिक नेता लोग हिन्दू राष्ट्र का नाम सुनते ही चिल्लाने लगते हैं कि यह देश को तोडऩे का षड्यंत्र है। मुसलमानों में असुरक्षा की भावना पैदा हो रही है। इस विषय में हम विशेष तर्क न देकर कहना चाहते हैं कि नेपाल हिन्दू राष्ट्र है (तब था) वहां कौन ईसाई या मुसलमान असुरक्षित है? कौन देश तोडऩे की रट लगा रहा है? हिन्दू नाम से घृणा करने वाले राजनीतिक दलों द्वारा घृणा फैलाकर वोटों का स्वार्थ पूरा किया जा रहा है।’’ 

साम्प्रदायिक सद्भाव के संदर्भ में वह लिखते हैं ‘‘सर्व वर्गों, सर्व मत-पंथों में समरसता लाने के लिए हिन्दू राष्ट्र भारत का नाम हिन्दुस्तान रखना ही उचित है, जैसा कि अंग्रेजों से पहले भी था। हिन्दुस्तान का प्रत्येक नागरिक हिन्दू, मुसलमान भी हिन्दू, ईसाई भी हिन्दू, जैन भी हिन्दू, सनातनी आर्य भी हिन्दू, कबीरपंथी भी हिन्दू, सिख भी हिन्दू, पारसी भी हिन्दू। हम सब एक हैं। हमारा हिन्दू राष्ट्र एक है। मन्दिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे पूजा के स्थान हैं। पूजा हम अपनी पद्धति से करें, परन्तु सर्व स्थान सबके लिए सम्मान्य होंगे। इनमें से किसी का भी अपमान सर्व का अपमान है। इस भावना की अभिव्यक्ति का कारण बनेगा हिन्दू राष्ट्र अगर इसका हिन्दुस्तान नाम हो गया तो।’’ वह लिखते हैं कि ‘‘भारतवर्ष में साम्प्रदायिकता, राष्ट्रद्रोह व इस आधार पर होने वाले खूनी संघर्ष, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दू धर्मनिरपेक्षता, हिन्दुओं के साथ अन्यायपूर्ण पक्षपात तथा हिन्दुओं की जनसंख्या कम करने के उपायों की समाप्ति व राष्ट्र में आॢथक और नैतिक उत्थान के लिए देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना आवश्यक है।’’-विनीत नारायण
 


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