उत्तर प्रदेश की ओर ही क्यों देखता है शेष देश

Sunday, May 05, 2019 - 11:33 PM (IST)

साामान्यत: शेष भारत उत्तर प्रदेश की ओर देखता है, जो मेरे विचार में काफी अनुचित है। देश के बहुत से हिस्सों में उत्तर प्रदेश के प्रवासी लोगों को स्थानीय राजनीति के माध्यम से यातनाएं सहनी पड़ती हैं। महाराष्ट्र तथा गुजरात जैसे स्थानों, जहां उत्तर प्रदेश के लोगों ने देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले मेहनती लोगों के तौर पर वास्तव में अच्छी कारगुजारी दिखाई है, में उन्हें अतीत में मारपीट का सामना करना पड़ा है।

कुछ वर्ष पूर्व एक समाचार चैनल पर एक टैलीविजन शो था, जिसमें इस बात को प्रतिबिम्बित किया गया था। इसमें भारतीयों को संस्कृति तथा संगीत आदि की ओर प्रेरित किया जाता था। प्रश्र कुछ ऐसे थे जैसे बेहतरीन फिल्मी गाना कौन-सा है? उस विशेष प्रश्र पर स्टूडियो में मौजूद विशेषज्ञ पूरी तरह से गलत क्योंकि उन्होंने लता मंगेशकर तथा किशोर कुमार द्वारा गाए क्लासिक्स चुने। मगर दरअसल जिसे सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ गीत के तौर पर देखा जाता है वह बहुत हालिया गीत है। मेरे विचार में यह शाहरुख खान की फिल्म से था।

एक अन्य प्रश्र, जिसने विशेषज्ञों को हैरत में डाल दिया था, वह था कि भारत का पसंदीदा राज्य कौन-सा है, अर्थात भारतीय किस राज्य को सर्वश्रेष्ठ के तौर पर देखते हैं। विशेषज्ञों ने गोवा तथा केरल को चुना, सिवाय राजीव शुक्ला के, जो इस बात पर दृढ़ थे कि भारतीयों के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय राज्य उत्तर प्रदेश होगा। अन्यों को चकित करते हुए वह सही साबित हुए, जो उत्तर प्रदेश को सम्भवत: उसी नजरिए से देखते थे जैसे कि बहुत से शहरी भारतीय करते हैं, जो इसे एक बीमारू राज्य कहते हैं।

उत्तर प्रदेश पसंदीदा राज्य
यद्यपि इस चुनाव में उत्तर प्रदेश निश्चित तौर पर सभी के लिए एक पसंदीदा राज्य बन गया है। चाहे कोई भाजपा को जीतते देखना चाहे या सपा-बसपा गठबंधन को, यह स्पष्ट हो रहा है कि उत्तर प्रदेश निर्णय करेगा कि क्या नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने रहेंगे।
राज्य में लोकसभा की 80 सीटें हैं, जिनमें से 2014 के चुनाव में 71 भाजपा ने जीती थीं। यदि भाजपा फिर उत्तर प्रदेश में जीतती है तो यह काफी हद तक राजनीति विज्ञान के पारम्परिक सिद्धांतों को उलट देगी जो जाति के आसपास केन्द्रित है। समझ यह है कि राजनीतिक दलों का एक प्राथमिक जाति आधार है (जैसे कि गुजरात में भाजपा मुख्य रूप से पटेलों की पार्टी है, समाजवादी पार्टी तथा जनता दल (सैकुलर) यादवों की आदि)।

पार्टी इन समुदायों को उनके साथ राजनीतिक ताकत सांझा करके अपने साथ रखती है, इसके सदस्यों को चुनाव लडऩे के लिए टिकट, मंत्रालय तथा अन्य सुविधाएं देती है। एक बार सत्ता में आने पर सरकारी नौकरियों तथा आरक्षण व लाभ का बदला चुकाने के सीधे उपायों को लागू करने के रूप में राजनीतिक संरक्षण भी सुनिश्चित किया जाता है। यह जाति आधारित पाॢटयां जब गठबंधन करती हैं तो अपनी वोटों को हस्तांतरित करने में सक्षम होती हैं और इसलिए गठबंधन राजनीतिक तौर पर लाभदायक होते हैं।

ऐसा दिखाई देता है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा उत्तर भारतीय राज्यों में उस परम्परा को पलट रही है। यह पारम्परिक, जाति आधारित राजनीति से उल्लेखनीय तरीकों से पलट रही है। इसका कोई मतलब नहीं विशेषकर एक ‘फस्र्ट पास्ट द पोस्ट’ प्रणाली में, जिसमें एक पार्टी को 50 प्रतिशत मत हिस्सेदारी तक पहुंचना होता है। कारण यह कि इसका संरक्षण कहीं अधिक विस्तृत सामाजिक समूहों तक विभाजित होगा, जहां प्रत्येक समुदाय को कम हासिल होता है। मगर भाजपा ने गुजरात में 50 प्रतिशत मत हिस्सेदारी को छू लिया और यह भारत के सबसे बड़े राज्य में भी इस तक पहुंच रही है।

जीवन की सच्चाइयां
आप तर्क दे सकते हैं कि किसी पार्टी के लिए यह सम्भव है कि वह अपने विरोधियों से कहीं अधिक दे ताकि आधी या अधिक मत हिस्सेदारी पर अपनी वैध पकड़ बना सके। सम्भवत:। मगर भारत जैसे एक गरीब देश में ऐसे होते देखना कठिन है, जहां गरीबी तथा बेरोजगारी जीवन की सच्चाइयां हैं। यह मध्यम वर्ग ही है, जो विदेश में की गई एक सैन्य कार्रवाई के आधार पर सरकार चुनना बर्दाश्त कर सकता है।

हम में से अधिकतर के लिए सरकार द्वारा वास्तविक आपूॢत वह है जो रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करती है। तथ्य यह है कि कोई भी सरकार सभी के लिए रोजमर्रा के जीवन में अधिक अंतर पैदा नहीं कर सकती और इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि सामुदायिक हितों को राजनीतिक संरक्षण के माध्यम से सुरक्षित किया जाए।

भाजपा ने 2014 में उत्तर प्रदेश में जबरदस्त 42 प्रतिशत वोट जीते थे। इसने 3 वर्ष बाद इसे बनाए रखा जब 2017 के विधानसभा चुनावों में 41 प्रतिशत वोट प्राप्त किए। मैं इसे जबरदस्त कहता हूं क्योंकि इससे पहले उत्तर प्रदेश में जीतने के लिए इतनी बड़ी मत हिस्सेदारी की जरूरत नहीं थी। सपा ने 2012 में 29 प्रतिशत वोटों के साथ पूर्ण बहुमत जीता था।

खेल में बदलाव
ऐसा दिखाई देता है कि मोदी के जाति से अलग गठबंधन ने खेल को बदल दिया है। मायावती ने 2014 में 20 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे लेकिन एक भी सीट हासिल नहीं की थी। सपा को 22 प्रतिशत वोट मिले थे और केवल 5 सीटें हासिल कर पाई थी। यदि इस बार एक दल से दूसरे दल में वोटों का पूर्ण हस्तांतरण होता है तो दोनों पाॢटयां अपने मेल के बावजूद एक तरह से मृत हैं। इस मायने से यह पुरानी जातिवादी राजनीति तथा किसी नए, जिसे हम पूरी तरह से नहीं समझ सके हैं, के बीच खेल होगा।

2017 के विधानसभा चुनावों में सपा ने 28 प्रतिशत तथा बसपा ने 22 प्रतिशत वोट जीते थे, जिससे उन्हें हानि का हस्तांतरण करने में कुछ और आजादी मिल गई थी और यही स्पर्धा को इतना दिलचस्प बनाता है। कांग्रेस एक ऐसी भारतीय पार्टी मानी जाती है, जो किसी समय जाति से ऊपर थी। यह दलित, मुस्लिम तथा आदिवासी हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती थी। मगर यह कभी भी जाति आधारित पार्टी नहीं थी। ऐसा दिखाई देता है कि भाजपा ने इस जाति से परे की पहचान को पूरी तरह से अपने कब्जे में कर लिया है, हालांकि महत्वपूर्ण पात्रता के साथ कि यह केवल हिन्दू वोट चाहती है।   -आकार पटेल

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