गुजरात में भाजपा को ‘मैच’ जीतने के लिए अंतिम मिनट तक संघर्ष क्यों करना पड़ा

Thursday, Dec 21, 2017 - 04:32 AM (IST)

गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों की तुलना हॉकी के मैच से की जा सकती है। 70 मिनट का मैच है, 69 मिनट का मैच पूरा हो चुका है। भाजपा और कांग्रेस बराबरी पर हैं। अचानक 69वें मिनट में कांग्रेस की तरफ  से मणिशंकर अय्यर फाऊल कर देते हैं। 

भाजपा को पैनल्टी कार्नर मिलता है। प्रधानमंत्री मोदी तय करते हैं कि वह खुद शॉट लेंगे। अब कांग्रेस की तरफ  से राहुल गांधी गोल में खड़े हैं। उनके साथ हाॢदक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर भी हैं। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी गोललाइन से गेंद को पुश करते हैं। डी पर खड़े अमित शाह गेंद रोकते हैं और मोदी शॉट मारने के लिए हॉकी उठाते हैं। तीनों लड़के हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश मोदी की तरफ दौड़ते हैं ताकि गेंद को ब्लाक किया जा सके जिससे मोदी गोल पर निशाना न साध सकें जहां राहुल गांधी पूरी मुस्तैदी से खड़े हैं। 

मोदी तेज शॉट लगाते हैं जो सभी को बीट करती हुई सीधे जाल में जा उलझती है। मोदी मैच जीत जाते हैं। राहुल हार जाते हैं। निचोड़ यही कि कप्तान में अंतिम वक्त में मैच जीतने का हौसला होना चाहिए। खुद आगे बढ़कर हमला करना चाहिए और जोखिम लेने से परहेज नहीं करना चाहिए। यह काम मोदी ने कर दिखाया। निचोड़ यही है कि कप्तान को अपनी टीम पर भरोसा होना चाहिए, खिलाडिय़ों को अनुशासन में रखना चाहिए और नाजुक मौके पर गलती करने से बचना चाहिए। यह काम राहुल गांधी नहीं कर पाए। इस मैच के बाद दोनों के लिए सबक है। भाजपा को आखिर मैच जीतने के लिए आखिरी मिनट तक क्यों संघर्ष करना पड़ा? कांग्रेस 69 मिनट तक मैच में रहने के बाद क्यों हार गई? 

राहुल गांधी का कहना है कि भाजपा को गुजरात चुनावों में झटका लगा है। अब राहुल ने किस संदर्भ में यह बात कही, यह तो वही जान सकते हैं लेकिन चुनावी नतीजों की बारीकी से समीक्षा की जाए तो साफ  है कि भाजपा को 2 मामलों में झटका लगा है। ये दो झटके उसे किसानों और नौजवानों ने दिए हैं। आंकड़े बता रहे हैं कि गुजरात में 52 प्रतिशत वोटर 18 से 40 साल आयु वर्ग के हैं, इस वर्ग ने पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा के पक्ष में भारी मतदान किया था, तब कांग्रेस को इनमें से 25 प्रतिशत तक ही वोट मिला था लेकिन इस बार 18 से 40 साल आयु वर्ग के 38 फीसदी वोटरों ने कांग्रेस का हाथ थामा है। 

प्रधानमंत्री मोदी बार-बार याद दिलाते रहे हैं कि देश की 65 प्रतिशत आबादी 40 साल से नीचे की है जो देश का भविष्य तय करने में सक्षम है। यह वर्ग ऐसा होता है जो बदलाव के पक्ष में होता है। उसकी प्रतिक्रिया आक्रामक होती है और जो जोशीले अंदाज में निर्णायक वोट देता है। अब अगर यह वर्ग गुजरात में भाजपा से हटने के संकेत दे रहा है तो भाजपा को ङ्क्षचतित होना चाहिए। इसकी दो वजहें हो सकती हैं। एक, रोजगार के मौके कम होते जाना और दो, पाटीदार युवकों में आरक्षण की मांग को लेकर मर-मिटने की उमंग। 

हाॢदक पटेल कह चुके हैं कि वह पाटीदारों को आरक्षण देने के आंदोलन को जारी रखेंगे और गुजरात के बाहर भी इसका विस्तार करेंगे। उधर भाजपा के पास पाटीदारों के जख्मों पर जुबानी मरहम के अलावा कुछ नहीं है। नए पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन में अभी बहुत समय लगने वाला है और तब तक आरक्षण का आंदोलन बड़ा रूप भी ले सकता है। हालांकि भाजपा को लग रहा होगा कि हार के बाद हार्दिक पटेल का असर कम होगा और वह नौजवानों को मुद्रा योजना, स्टार्ट अप इंडिया जैसी योजनाओं के तहत मौके देकर उनके असंतोष को काबू में कर लेगी। चुनावी नतीजों के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में भाजपा दफ्तर में दिए अपने भाषण में भी बिना नाम लिए पाटीदारों से पुरानी बातों को भूल जाने को कहा था। 

मोदी और अमित शाह की जोड़ी को यह देखना होगा कि नौकरी नहीं मिलने की हताशा युवा वर्ग को कहीं कांग्रेस की तरफ  न धकेल दे। आखिर कोई कब तक हिंदुत्व के दम पर ऐसे बेरोजगारों को काबू में रख सकता है। राहुल गांधी की पार्टी के लिए भी यह बात चिंता की होनी चाहिए। आखिर अगले साल कर्नाटक जैसे बड़े राज्य में चुनाव हैं जहां का युवा भी गुजरात के युवा जैसी ही पीड़ा के दौर से गुजर रहा है। वैसे तो युवा वर्ग का असंतोष सभी दलों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए लेकिन चूंकि अभी बात गुजरात और दो राष्ट्रीय दलों की हो रही है, लिहाजा भाजपा और कांग्रेस को ही केन्द्र में रखा जा रहा है। गुजरात में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान सौराष्ट्र से लेकर सूरत तक घूमते हुए नौजवानों का यही दर्द सामने दिखा था। गांव का बेरोजगार युवा ज्यादा गुस्से में था लेकिन आमतौर पर भाजपा का समर्थक शहरी युवा भी मोदी की तारीफ  करते-करते रोजगार के मौके सूखने की बात कर ही बैठता था। 

गुजरात चुनाव का दूसरा विमर्श किसानों की समस्या है। नतीजे बता रहे हैं कि कांग्रेस को 81 सीटों में से 71 गांवों से ही मिलीं। पाटीदार बहुल गांवों में तो कुछ जगह किसानों ने उस भाजपा को वोट नहीं दिया जिसे वे 22 सालों से वोट देते आ रहे थे। सौराष्ट्र में यही वजह है कि कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ी। उत्तर गुजरात के ग्रामीण इलाकों में भी इसका व्यापक असर देखा गया। दरअसल जिस समय चुनाव हो रहे थे उस समय कपास चुनी जा रही थी। किसानों को इस बार 20 किलोग्राम कपास के 800  से 900 रुपए ही मिल रहे थे, जबकि पहले उन्हें 1200 से 1400 रुपए मिल जाते थे। किसानों का कहना था कि इतनी तो उनकी लागत ही है, जबकि भाजपा ने 1500 रुपए एम.एस.पी. का वायदा किया था। किसानों का कहना था कि नर्मदा की मुख्य नहर जरूर अमरेली से लेकर कच्छ तक बनाई गई लेकिन उनके खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए नहरें, उप नहरें और वितरिकाओं का जाल नहीं बिछाया गया। 

इनसे आमतौर पर किसानों का मलाल था कि मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में एम.एस.पी. पर 50 प्रतिशत मुनाफा देने का वायदा घोषणा पत्र में किया था लेकिन चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार इस वायदे को भूल गई। कुछ गांवों में तो किसानों ने यहां तक बताया कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया कि वह इस वायदे को पूरा नहीं कर सकती है। किसानों ने वायदाखिलाफी का बदला इस बार भाजपा को वोट न देकर ले लिया। सबसे बड़ी चिंता की बात है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत भी किसानों को समय पर खराब हुई फसल का मुआवजा नहीं मिला। उनका कहना था कि बैंक से कर्ज लेते समय तो उसी समय बीमे का प्रीमियम काट लिया जाता है लेकिन बीमा कम्पनियां फसल खराब होने पर समय पर सर्वे नहीं करवातीं, सर्वे में मुआवजा कम करके आंका जाता है और यह मुआवजा भी देर से मिलता है। यह शिकायत गुजरात के अलावा राजस्थान, यू.पी. तथा मध्य प्रदेश आदि राज्यों के किसान भी कर रहे हैं। 

राजस्थान में तो एक निजी बीमा कम्पनी ने किसानों के मुआवजे के 300 करोड़ से ज्यादा दबा लिए थे और राज्य सरकार को उस कम्पनी को ब्लैक लिस्ट करने की धमकी तक देनी पड़ी। गुजरात में किसानों के गुस्से को वोट में बदलते देखने के बाद केन्द्र सरकार को अपनी योजना में जरूर तबदीलियां करनी पड़ेंगी। किसान कह रहा है कि खेती करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है, मुनाफा गायब हो गया है और सिर्फ खर्चा ही निकल पाता है जिससे वह परिवार का जैसे-तैसे भरण-पोषण कर रहा है और ऐसा नहीं कर पाने पर आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है। गुजरात चुनाव के बाद केन्द्र सरकार को इस मोर्चे पर कुछ न कुछ करना ही होगा। एम.एस.पी. पर ध्यान देना होगा। मनरेगा के लिए ज्यादा पैसा रखना होगा और किसान को कर्जे में राहत देनी होगी। यह बात उन राज्यों पर भी लागू होती है जहां भाजपा की सरकार नहीं है। 

अंत में ...गुजरात में पाटीदारों ने उतनी बड़ी संख्या में कांग्रेस को वोट नहीं दिया जैसा कि उम्मीद की जा रही थी। शहरों में तो पाटीदारों ने जैसे पीठ ही दिखा दी। गुजरात के 5 शहरों की 50 सीटों ने भाजपा को सत्ता दिला दी और इसमें पाटीदार वोटों की प्रमुख भूमिका रही। सूरत में तो हाॢदक पटेल की रैलियां देख कर ऐसा लगता था कि कांग्रेस कम से कम 6 सीटों पर भाजपा को मात देगी लेकिन वहां के पाटीदारों ने कांग्रेस को एक सीट के लिए तरसा दिया।-विजय विद्रोही

Advertising