पंजाब में खतरनाक तजुर्बे क्यों दोहराए जा रहे

punjabkesari.in Tuesday, Apr 25, 2023 - 05:08 AM (IST)

‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह की ओर से आत्मसमर्पण किए जाने के साथ ही पिछले एक माह से लोगों के मनों के अंदर व्याप्त भय और पंजाब के भीतर पाया जाने वाला अविश्वास का माहौल खत्म हो गया है। मुद्दा यह नहीं कि पुलिस तथा दूसरी एजैंसियों की ओर से यह सारा ड्रामा रचा गया या राज्य के अंदर किस तरह भय का वातावरण बनाया गया। मुद्दा केवल अमृतपाल सिंह की ओर से किए गए जुर्म के बदले उसे सजा देना या माफ करना भी नहीं बल्कि मूल प्रश्र तो यह है कि आम लोगों को स्पष्ट रूप से यह समझ आ जाए कि इस षड्यंत्र के पीछे केंद्रीय और राज्य सरकार की मंशा क्या है। 

पंजाब के अंदर इस तरह के खतरनाक तजुर्बे बार-बार क्यों दोहराए जा रहे हैं? क्या इस क्षेत्र के लोगों के दिमाग में सत्ता विरोधी लहर का उजागर होना है जिसे वर्तमान सरकार सदा के लिए खत्म करने पर तुली हुई है। क्या सिख जनसमूहों सहित समस्त पंजाबियों की देशभक्ति, भाईचारा तथा समानता का भय सरकारों को सता रहा है। एक वर्ष से अधिक समय तक लड़े गए किसानी आंदोलन में पंजाबियों की ओर से निभाई गई प्रशंसनीय भूमिका ने पंजाबियों के चेहरे से वे सारे काले धब्बे जो पिछली सदी के 8वें दशक में चली आतंकवादी-अलगाववादी लहर के दौरान लगे थे, को मिटा दिया है। पंजाब के गुरु साहिबानों द्वारा रची बाणी तथा भगत सिंह की इंकलाबी विचारधारा का जादूमयी असर दिल्ली की सरहदों पर डटे किसानों के चेहरों पर स्पष्ट नजर आया। 

केंद्र सरकार इस बात से काफी परेशान दिखी। इसी कारण संकीर्ण सोच वाली सत्ताधारी सरकार की ओर से पंजाब को फिर से काले दौर की ओर धकेलने की कोशिश की गई। विशेष तौर पर सिख भाईचारे का अक्स देशवासियों की नजरों में फिर से धुंधला करने की साजिश के तहत अमृतपाल सिंह को खालिस्तान के चेहरे के तौर पर पेश किया गया। 

सिखों के साथ होती आ रही नाइंसाफी के नाम पर और धर्म आधारित अलग देश खालिस्तान के नाम पर युद्ध छेडऩे का भी खूब प्रचार किया गया। देश-विदेश में बैठे खालिस्तानी तत्व खालिस्तान की रट लगाने तथा भारतीय दूतावासों की इमारतों के ऊपर झूलते राष्ट्रीय ध्वज को उतारने जैसी बहादुरी (वास्तव में कायरता) दिखाने की हद तक चले गए। अमृतपाल सिंह के समर्थकों की ओर से अजनाला थाने के भीतर की गई हिंसक कार्रवाइयों तथा कुछ निहंग सिखों की ओर से नंगी तलवारों से तथा बच्चों से लैस होकर लगाए गए भड़काऊ नारों का गोदी मीडिया तथा सरकार के अन्य समर्थित लोगों ने खूब जोर-शोर से प्रचार किया। 

ऐसी बातों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे सभी सिख खालिस्तान की स्थापना के लिए हिंसा के रास्ते पर चले गए हों। इस संताप से किसी को क्या लाभ हुआ है, यह सवाल हम सभी के मनों में है। हिन्दुत्व साम्प्रदायिक तत्वों की ओर से पहले से ही धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को निशाने पर लिया गया है। अब अमृतपाल सिंह के संदर्भ में सिखों को भी इसमें सूचीबद्ध करने का काम शुरू कर दिया गया है। बेशक पंजाबियों तथा सिखों की बहुगिनती आबादी ने अमृतपाल द्वारा खालिस्तान के बारे में किए गए जहरीले प्रचार से अपने आपको अलग रखा परन्तु बार-बार बोले गए झूठ के सामने सच एक बार धुंधला जरूर पड़ जाता है। 

क्या यह सारी कहानी सिखों को गुरु साहिबान तथा भक्ति लहर के महान संतों के दिखाए रास्ते से भटकाने के लिए तो नहीं रची गई? केंद्र सरकार की साजिश के जाल में फंसना सिखों तथा पंजाबियों के लिए घाटे का सौदा हो सकता है। जब समाज में फैली अराजकता पर काबू पाने के बहाने पुलिस तथा अद्र्धसैनिक बल लोगों की धर-पकड़ तथा अन्य दमनकारी कार्रवाई करते हैं तो देश की आबादी के एक हिस्से का सिखों से भयभीत होना लाजमी है। 

इसी बहाने बेगुनाह लोगों पर भी जुल्म की कुल्हाड़ी चलती है। अनेक लोग अपने हितों की पूर्ति के लिए और अपनी सुरक्षा की आड़ में भाजपा की शरण में चले जाते हैं। यह कहा जाना चाहिए कि अमृतपाल जिसे केंद्रीय हुक्मरानों ने दुबई से विशेष तौर पर भारत लाकर सिख नेता के तौर पर स्थापित करने के यत्न किए, ने अपनी गतिविधियों के माध्यम से अपने आकाओं का हुक्म पूरा किया तथा उनके दरबार में अपनी हाजिरी भरी। 

इस सारे घटनाक्रम से ये तथ्य भी स्पष्ट हो जाते हैं कि सत्ताधारी लोग उनके असली इतिहास से अनजान क्यों रखना चाहते हैं। किसी भी समाज या राष्ट्र के इतिहास का अतीत कड़वे-मीठे अनुभवों से भरपूर होता है जिससे सबक हासिल करके उस समाज के लोग तथा अलग-अलग समुदाय अपना भविष्य उज्ज्वल करने के प्रयत्न करते हैं। यदि सरकारें तथा सिखों की राजनीतिक, धार्मिक जत्थेबंदियां पंजाब के खालिस्तान दौर के सबक आम लोगों के मनों में बसा देतीं तो यकीनन ही अमृतपाल सिंह जैसे लोगों को जो थोड़ा-बहुत समर्थन मिला है वह भी न मिलता।-मंगत राम पासला 


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