‘माफी-मोड’ में क्यों और कैसे आए केजरीवाल

Sunday, Mar 25, 2018 - 03:16 AM (IST)

जब से दिल्ली हाईकोर्ट में आम आदमी पार्टी के 20 अयोग्य करार दिए गए विधायकों की सदस्यता बहाल करने की बात चली है, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल किंचित विनम्रता की नई प्रतिमूर्ति बनते नजर आ रहे हैं। वह अपने तमाम पुराने गिले-शिकवे भुलाकर अब ‘माफी-मोड’ में आ गए हैं। 

उनके ‘माफी-मोड’ में आने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं, जब मजीठिया के मान-हानि मामले में पंजाब में अरविन्द पर मुकद्दमा दर्ज हुआ और कोर्ट में इसकी तारीख लग गई तो केजरीवाल ने पंजाब में ‘आप’ के विधायक दल के नेता और नेता प्रतिपक्ष सुखपाल खैहरा को फोन करके कहा कि वह इस मामले को देख लें और वहां किसी वकील का इंतजाम कर लें क्योंकि फिलहाल वह अपनी व्यस्तताओं के चलते पंजाब आने में असमर्थ हैं। 

इसके बाद दो तारीखों पर खैहरा ने केजरीवाल की ओर से वकील भेजा और सूत्रों का कहना है कि खैहरा ने इसके बाद 6 लाख रुपयों का एक बिल केजरीवाल को भेज दिया। यह बिल देखकर केजरीवाल का सिर चकराया और सूत्रों की मानें तो उन्होंने फौरन खैहरा को फोन लगाया और उनसे पूछा, ‘वकील की इतनी ज्यादा फीस?’ तो खैहरा का जवाब आया कि ‘वैसे तो यह वकील साहब अपनी हर पेशी का 5 लाख रुपए चार्ज करते हैं, वह तो मेरा लिहाज कर इन्होंने अपनी फीस 2 लाख रुपए कम कर दी है।’ केजरीवाल ने सिर धुन लिया, बोले, ‘मेरे पास इतना पैसा कहां कि हर पेशी के 3 लाख रुपए दूं, मेरे ऊपर तो इस तरह के छत्तीसों केस चल रहे हैं, मैं इतने पैसे कहां से लाऊंगा, अगर यह मेरे ही मान-सम्मान की बात है तो मैं माफी मांग लेता हूं, पार्टी पर इसकी कोई आंच नहीं आएगी।’ और उसी वक्त से केजरीवाल ‘माफी-मोड’ में चले गए हैं। माफी मांगने की कवायद में उनका अगला ठिकाना देश के वित्त मंत्री अरुण जेतली हैं, केजरीवाल को पक्का भरोसा है कि जेतली जी बड़ा दिल दिखाते हुए उन्हें माफ कर देंगे। 

मोदी से नजदीकी का ईनाम बलूनी को: राज्यसभा चुनावों के नतीजों ने मुरझाए भगवा खेमे में उत्साह की एक नई जोत जगा दी है, पर कम लोगों को ही पता है कि इस राज्यसभा चुनाव में कई भगवा उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्हें बस मोदी की फराखदिली का ईनाम मिला है। नहीं तो उत्तराखंड से आने वाले किंचित से एक अनाम चेहरे अनिल बलूनी की क्या मजाल जो वह राम माधव जैसे दिग्गज को रेस में पछाड़ ऊपरी सदन में जा पहुंचें। अब जरा बलूनी जी के इतिहास को खंगाला जाए। वह कभी कुबेर टाइम्स व जे.वी.जी. टाइम्स जैसे हिंदी के मामूली अखबारों में सटिंगर हुआ करते थे, कालक्रम से जब ये दोनों अखबार बंद हो गए तो यह दिल्ली में भाजपा व संघ कार्यालयों की परिक्रमा करने लगे। 

फिर इनकी जान-पहचान सुंदर सिंह भंडारीके साथ बढ़ गई, जब भंडारी गुजरात के राज्यपाल बने तो उन्होंने बलूनी को अपना ओ.एस.डी. बना लिया। यह 2001 की बात है। यह वही काल था जब मोदी ने गुजरात की गद्दी संभाली थी, तब बलूनी सी.एम. मोदी और गवर्नर भंडारी के बीच संवाद सूत्र का कार्य करने लगे। दुर्भाग्यवश गवर्नर भंडारी नहीं रहे तो उनके निधन के बाद बलूनी मोदी की शरण में जा पहुंचे, मोदी ने उन्हें उत्तराखंड भाजपा का प्रवक्ता नियुक्त करवा दिया। जब मोदी केन्द्र में सत्तारूढ़ हो गए तो बलूनी ने भी दिल्ली की ठौर पकड़ ली और वह दिल्ली में प्रवक्ता की नई भूमिका में अवतरित हो गए। मोदी अपने विश्वासियों को कभी भूलते नहीं, यह बताने के लिए इस दफे बलूनी को राज्यसभा सीट से भी उपकृत कर दिया गया। 

बहुमुखी प्रतिभा के धनी देब: शून्य से शिखर तक की ऐसी ही एक यात्रा त्रिपुरा के नए-नवेले भगवा चिराग और वहां के मुख्यमंत्री बिप्लब देब की भी है, जो त्रिपुरा से दिल्ली अपनी पढ़ाई के सिलसिले में आए थे। यहां दिल्ली में उनकी मुलाकात सतना से भाजपा के सांसद गणेश सिंह से होती है, गणेश सिंह को मृदुभाषी और मल्टी टैलेंटिड बिप्लब इतने भाए कि इस भाजपा नेता ने इन्हें अपने सहायक के तौर पर नियुक्त कर लिया। जिक्र पहले हो चुका है कि बिप्लब की प्रतिभा के अनेक आयाम थे जिसमें उनका एक कुशल ड्राइवर होना भी शामिल था, सो वह न सिर्फ सांसद महोदय की गाड़ी ड्राइव किया करते थे बल्कि उनकी उदात राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को भी एक नई दिशा देते रहे, बिप्लब ने दिल्ली में अपना एक कोर ग्रुप तैयार किया था, इस ग्रुप से कई मंझे पत्रकार, शिक्षाविद् आदि जुड़े थे जिनका काम सांसद महोदय के लिए संसद में पूछे जाने वाले सवालों को तय करना था। सनद रहे कि गणेश सिंह तीन टर्म से मध्य प्रदेश के सतना से भाजपा के मौजूदा सांसद हैं। इसके बाद बिप्लब संघ विचारक और मोदी करीबी सुनील देबधर के संपर्क में आए और देबधर ने बिप्लब को त्रिपुरा में भगवा जमीन तैयार करने की मुहिम में अपने साथ ले लिया और यहीं से बिप्लब का सितारा नई बुलंदियों की ओर अग्रसर हो चला। 

एक भगवा गलती: ‘आप’ के संजय सिंह जब से ऊपरी सदन में पहुंचे हैं उन्होंने अपनी अति सक्रियता से सत्ता पक्ष की नाक में दम कर रखा है। बतौर सांसद उनसे पूछा गया कि वह किस संसदीय कमेटी का हिस्सा होना चाहेंगे, संजय ने अपनी ओर से तीन च्वॉइस दिए। उनकी पहली प्राथमिकता अर्बन डिवैल्पमैंट मिनिस्ट्री थी और दूसरी होम व तीसरी च्वॉइस के तौर पर उन्होंने इस्पात व खनन मंत्रालय का नाम दिया। भाजपा के नीति निर्धारकों ने सोचा चूंकि दिल्ली में सीलिंग का काम अपने उफान पर है सो संजय सिंह सीलिंग से जुड़े मुद्दों पर सरकार को घेरने का काम करेंगे, सो वेंकैया जी के कहने पर उन्हें खनन मंत्रालय में भेज दिया गया। 

अब भाजपा के लोग इस बात से अनजान थे कि संजय सिंह एक माइनिंग इंजीनियर हैं, सो अब यह ‘आप’ सांसद खनन नियमों से जुड़े दुर्लभ सवालों की पोथी तैयार करने में जुट गए हैं, भगवा पाठशाला के गुरुओं को जल्दी ही इन सवालों की काट ढूंढनी होगी। संजय ने ताजा मामला सार्वजनिक उद्यम क्षेत्र की एक बड़ी कम्पनी सेल के विस्तार प्लान का निकाला है। कहते हैं सेल के एक्सपैंशन प्लान के लिए तय 78 हजार करोड़ की रकम में से 74 हजार करोड़ की रकम का बंदरबांट हो चुका है, पर इसके प्रोडक्शन में मात्र 3 फीसदी की मामूली बढ़त दर्ज हुई है।

प्रसाद का सियासी नाद: मोदी सरकार के आई.टी. व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद अपने बड़बोलेपन की वजह से अक्सर विपक्ष के निशाने पर आ जाते हैं, मेहुल चोकसी प्रकरण की आंच में अभी हौले-हौले प्रसाद तप ही रहे थे कि कैम्ब्रिज एनालिटिका के फेसबुक डाटा चोरी का नया मामला प्रकाश में आ गया। उनका यह बयान सुर्खियों का सिरमौर बना रहा जब उन्होंने जोश ही जोश में कह डाला कि वह आई.टी. कानून के तहत नियमों का उल्लंघन करने वालों पर सख्त से सख्त कार्रवाई करेंगे और जरूरत पडऩे पर फेसबुक नियंता मार्क जुकरबर्ग को भारत में सम्मन करेंगे। 

इस पर विपक्ष को हमले के नए सूत्र मिल गए, राजनीति के नए विद्यार्थी तेजस्वी यादव ने फौरन ट्वीट कर प्रसाद पर हमला बोला, ‘ये सब नौटंकी बंद कीजिए और सबसे पहले कॉलड्रॉप की समस्या का निदान ढूंढिए।’ और जब सरकार ने कैम्ब्रिज एनालिटिका (जिन्हें प्रसाद गुंडा बता रहे थे) को मात्र 6 सवालों का एक नोटिस जारी किया तो इसमें मार्क जुकरबर्ग से जुड़ा कोई बड़ा सवाल नहीं था, कम्पनी को इन सवालों के जवाब देने के लिए भी 31 मार्च तक का वक्त दिया गया है। फिर जब विपक्ष ने इन सवालों की फेहरिस्त पर हो-हंगामा मचाया तो प्रसाद के मंत्रालय की ओर से सफाई दी गई कि चूंकि मार्क जुकरबर्ग ने पहले ही माफी मांग ली है, इसलिए इस मामले को तूल देना ठीक नहीं है। 

आप तो ऐसे न थे: ‘आप’ में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। एक दौर था जब अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसौदिया, संजय सिंह और आशुतोष जैसे ‘आप’ नेता देर रात तक बैठकें किया करते थे, साथ फिल्में देखते थे लेकिन राज्यसभा चुनावों के बाद से संजय सिंह व आशुतोष केजरीवाल से नाराज जान पड़ते हैं। अब यह मजलिस भी बंद है और बोलचाल के सूत्र भी मौन हैं। संजय का ज्यादा वक्त अपने राज्यसभा के काम-काज में लग रहा है तो आशुतोष अपने लिखने-पढऩे के काम में जुट गए हैं, इन दोनों नेताओं को केजरीवाल से बस यही शिकायत है कि ‘केजरीवाल बातें तो मूल्य आधारित राजनीति की करते हैं और जब राज्यसभा देने की बारी आती है तो कोई सुशील गुप्ता इसका मूल्य लगा देते हैं, यह कैसा विरोधाभास है?’ 

...और अंत में: इस दफे के राज्यसभा चुनाव में जहां कई सियासी दिग्गज मसलन राजीव शुक्ला और राम माधव जैसे लोग ऊपरी सदन में आने से वंचित रह गए, वहीं जया बच्चन का सितारा नई सियासी रोशनी से सराबोर रहा। ममता बनर्जी की टी.एम.सी. ने अपनी चौथी सीट आखिरी वक्त तक जया के इंतजार में खाली रखी थी, ममता जया के बंगाली अस्मिता का कार्ड खेलना चाहती थी, वहीं दूसरी ओर सपा भी अपने इस वाचाल सांसद को हाथ से नहीं निकलने देना चाहती थी, सो टिकटों के अनाऊंसमैंट से ऐन पहले ममता दीदी ने मुलायम व अखिलेश दोनों से बात की और पूछा कि क्या वे जया बच्चन को सीट दे रहे हैं? पिता-पुत्र से ठोस आश्वासन प्राप्त होने के बाद ही दीदी ने अपने चौथी सीट पर से सस्पैंस खत्म किया।-त्रिदीब रमण             

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