कौन उजाड़ना चाहता है योगी का ‘मठ’

Sunday, Mar 18, 2018 - 03:46 AM (IST)

प्रदेश चुनावों के हालिया नतीजों ने भाजपा की हालत ऐसी कर दी है जैसे शोर वाली गली में दबे पांव सन्नाटों ने दबिश दी हो। पर भगवा सियासत के ताने-बाने में कई ऐसे अनसुलझे सवाल लिपटे हैं, जिनकी शिनाख्त जरूरी है। 

विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि भाजपा के शीर्र्ष नेतृत्व के समक्ष पहले ही यह खुफिया रिपोर्ट पहुंच चुकी थी कि गोरखपुर में इस दफे पासा पलट सकता है, फिर भाजपा के दोनों शीर्ष पुरुषों मोदी व शाह में से किसी ने भी यह जहमत नहीं उठाई कि वे चुनाव प्रचार के लिए गोरखपुर पहुंचें, इन्होंने एक तरह से गोरखपुर की हार या जीत को योगी की सियासी ताकत से जुड़ा मान लिया, वैसे भी योगी अपनी अलग किस्म की राजनीति के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, इन दिनों वे भाजपा के एक अनुशासित सिपाही के मानिंद आचरण कर रहे थे, वहीं भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कहीं न कहीं अपने लो-प्रोफाइल मुख्यमंत्रियों मसलन मनोहर खट्टर, रघुबर दास, त्रिवेन्द्र रावत जैसे को ज्यादा तरजीह देता है। 

यू.पी. के इन उप चुनावों में संघ की भूमिका को लेकर भी सवाल किए जा रहे हैं कि क्या संघ योगी को अपना स्वाभाविक प्रतिनिधि नहीं मानता? नहीं तो क्या वजह थी कि उप चुनावों से ऐन पहले जब संघ के नंबर 3 दत्तात्रेय होसबोले लखनऊ पहुंचे थे, तो उन्होंने योगी और उनके डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य की उपस्थिति में संघ कार्यकत्र्ताओं से आह्वान किया कि वे उपचुनावों से ज्यादा 2019 के चुनावों की तैयारियों में अभी से जुट जाएं। इस बैठक में यू.पी. भाजपा चीफ महेन्द्र नाथ पांडेय और प्रभारी सुनील बंसल भी मौजूद बताए जाते थे। 

सूत्र बताते हैं कि योगी कई बार अपने करीबियों से इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि उन्हें शासन चलाने में राज्य की ब्यूरोक्रेसी का इतना साथ नहीं मिल पा रहा है, योगी का तो यहां तक मानना है कि राज्य के कई अफसर सीधे पी.एम.ओ. से जुड़े हैं और वहीं से निर्देश लेना पसंद करते हैं। क्या यही वजह नहीं है कि योगी ने शनिवार को अपने 73 आई.ए.एस. अफसरों के आनन-फानन में तबादले कर दिए। वहीं दबे-छुपे स्वरों में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी योगी के ‘को-आर्डीनेशन और कम्युनिकेशंस’ में कमी की बात मानता है। वक्त-वक्त की बात है त्रिपुरा में योगी पार्टी के स्टार प्रचारक थे, अब उनकी चमक को अपनों की ही नजर लग गई है।

आदित्यनाथ की कुर्सी पर दिनेश की नजर: अब अहम बात यह कि गोरखपुर में योगी का रथ आखिरकार सियासी कीचड़ में धंस कैसे गया? सूत्र बताते हैं कि योगी ने अपने पार्टी अध्यक्ष के समक्ष 3 संभावित प्रत्याशियों के नाम प्रस्तुत किए थे और इन तीनों का जुड़ाव भी किंचित गोरखनाथ पीठ से था। पर टिकट मिला एक ऐसे चेहरे को जो कहीं न कहीं योगी विरोधियों में शुुमार होते थे क्योंकि उपेंद्र शुक्ला केन्द्र में मंत्री शिव प्रताप शुक्ला के खासमखास बताए जाते हैं और शिव प्रताप व योगी आदित्यनाथ में छत्तीस का आंकड़ा तो जगजाहिर है। तो कहीं ऐसा तो नहीं कि योगी उपेन्द्र शुक्ला की भगवा उम्मीदवारी को मन से स्वीकार ही न कर पाए हों। 

ऐसे बंटे टिकट: भाजपा के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हुआ कि न तो लोकसभा के उपचुनाव और न ही राज्यसभा के टिकटों के लिए पाॢलयामैंट्री बोर्ड की बैठक बुलाई गई और न ही दिखावे के लिए ही सही, इलैक्शन कमेटी की बैठक बुलाने की जरूरत समझी गई। यू.पी. के उपचुनावों के लिए दोनों नाम अध्यक्ष जी और सुनील बंसल ने तय कर दिए। बिहार के अररिया उप चुनाव के लिए जिस प्रदीप सिंह के नाम को चुना गया, उसके नाम पर अररिया भाजपा में ही सबसे ज्यादा विरोध था। और जिस राजद सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन से अररिया सीट खाली हुई थी, सूत्रों का कहना है कि कालांतर में यही प्रदीप सिंह उसी तस्लीमुद्दीन के लिए जोर-आजमाइश दिखाया करते थे और उनके खास वफादारों में शुमार होते थे। प्रदीप सिंह को टिकट दिलवाने में राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी की सबसे अहम भूमिका थी। वहीं राज्यसभा के टिकट मोदी व शाह की जोड़ी ने अपने दम पर फाइनल कर दिए। 

केजरी चले घर ‘आपणै’: अरविन्द केजरीवाल के सितारे भंवर में गोते खा रहे हैं, इतनी उठापटक कि बस उन्हें रह-रह कर अब यह दर्द सालने लगा है कि वह बस आधे राज्य के मुख्यमंत्री क्यों हैं? मजीठिया से माफी एक बड़ा सियासी इश्यू बन गया है, उनकी अपनी ही पार्टी में बगावत शुरू हो गई है। सो, अपने करीबियों से मन का दर्द बयां करते हुए केजरीवाल ने इच्छा जताई है कि अब उन्हें हरियाणा का मुख्यमंत्री बनना है। हरियाणा न सिर्फ उनका गृह राज्य है अपितु वहां उनके सजातीय वोटरों की भी अच्छी-खासी तादाद है। इस आने वाले 25 मार्च को केजरीवाल हरियाणा में एक बड़ी रैली करने जा रहे हैं। 

तिवारी को अपनी बारी का इंतजार: मनीष तिवारी को अब भी भले अहमद पटेल कैम्प का एक प्रखर योद्धा माना जाता हो, पर पिछले कुछ समय से वे अपनी सियासी पोजीशनिंग बदलने की कवायदों में जुटे हैं। सनद रहे कि मनीष वाशिंगटन स्थित प्रतिष्ठित अटलांटिक काऊंसिल के मैंबर हैं, इस नाते उनका अमरीका आना-जाना लगा रहता है, पिछले दिनों भी वे इस काऊंसिल की मीटिंग के सिलसिले में वाशिंगटन में थे, कहा जाता है कि इस काऊंसिल के कई लोगों को अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने व्हाइट हाऊस में ब्रेकफास्ट पर न्यौता भेजा था, इसमें मनीष भी शामिल हुए।-त्रिदीब रमण 

Punjab Kesari

Advertising