किसने सोचा था ऐसा ‘दौर’ भी आएगा

Wednesday, Apr 08, 2020 - 04:45 AM (IST)

‘‘मानव ही मानव का दुश्मन बन जाएगा
किसने सोचा था ऐसा दौर भी आएगा।
जो धर्म मनुष्य को मानवता की राह दिखाता था
उसकी आड़ में ही मनुष्य को हैवान बनाया जाएगा।
इंसानियत को शर्मसार करने खुद इन्सान ही आगे आएगा
किसने सोचा था कि वक्त इतना बदल जाएगा।’’ 

कोई भी हो दिशाहीन हो जाए तो विनाशकारी ही होती है लेकिन यदि उसे सही दिशा दी जाए तो सृजनकारी सिद्ध होती है। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री ने 5 अप्रैल को सभी देशवासियों से एक साथ दीपक जलाने का आह्वान किया जिसे पूरे देशवासियों का भरपूर समर्थन भी मिला। जो लोग कोरोना से भारत की लड़ाई में प्रधानमंत्री के इस कदम का वैज्ञानिक उत्तर खोजने में लगे हैं वे निराश हो सकते हैं क्योंकि विज्ञान के पास आज भी अनेक प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं। हां लेकिन संभव है कि दीपक की लौ से निकलने वाली ऊर्जा देश के 130 करोड़ लोगों की ऊर्जा को एक सकारात्मक शक्ति का वह आध्यात्मिक बल प्रदान करे जो इस वैश्विक आपदा से निकलने में भारत को संबल दे। क्योंकि संकट के इस समय भारत जैसे अपार जनसंख्या लेकिन सीमित संसाधनों वाले देश की अगर कोई सबसे बड़ी शक्ति, सबसे बड़ा हथियार है जो कोरोना जैसी महामारी से लड़ सकता है तो वह है हमारी ‘एकता’ और इसी एकता के दम पर हम जीत भी रहे थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष दूत डा. डेविड नाबरो ने भी अपने ताजा बयान में कहा कि भारत में लॉकडाऊन को जल्दी लागू करना एक दूरदर्शी सोच थी। साथ ही यह सरकार का एक साहसिक फैसला था। इस फैसले से भारत को कोरोना वायरस के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लडऩे का मौका मिला। 

लेकिन जब भारत में सब कुछ सही चल रहा था, जब इटली, ब्रिटेन, स्पेन, अमरीका जैसी विकसित एवं समृद्ध वैश्विक शक्तियां कोरोना के आगे घुटने टेक चुकी थीं, जब विश्व की आर्थिक शक्तियां अपने यहां कोविड-19 से होने वाली मौतों को रोकने में बेबस नजर आ रही थीं, तब 130 करोड़ की आबादी वाले इस देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या लगभग 500 के आसपास थी और इस बीमारी के चलते मरने वालों की संख्या 20 से भी कम थी, तो अचानक तब्लीगी मरकज की लापरवाही सामने आती है जो केंद्र और राज्य सरकारों के निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए निजामुद्दीन की मस्जिद में 3500 से ज्यादा लोगों के साथ एक सामूहिक कार्यक्रम का आयोजन करती है।

16 मार्च को दिल्ली के मुख्यमंत्री 50 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगाते हैं। 22 मार्च को प्रधानमंत्री जनता कफ्र्यू की अपील करते हुए कोरोना की रोकथाम के लिए सोशल डिस्टैंसिंग का महत्व बताते हैं लेकिन मार्च के आखिरी सप्ताह तक इस मस्जिद में 2500 से भी ज्यादा लोग सरकारी आदेशों का माखौल उड़ाते इकट्ठा रहते हुए पाए जाते हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार मस्जिद को खाली कराने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को सामने आना पड़ा था क्योंकि वे स्थानीय प्रशासन की नहीं सुन रहे थे। पूरे देश के लिए यह दृश्य दुर्भाग्यजनक था जब सरकार और प्रशासन इनके आगे बेबस नजर आया। और अब जब इन लोगों की जांच की जा रही है तो अब तक इनमें से 300 से अधिक कोरोना से संक्रमित पाए गए हैं और बाकी में से कितने संक्रमित होंगे उनकी तलाश जारी है। 

जो खबरें सामने आ रही हैं वे निराशाजनक ही नहीं शर्मनाक भी हैं क्योंकि इस मकरज की वजह से इस महामारी ने हमारे देश के कश्मीर से लेकर अंडेमान तक अपने पैर पसार लिए हैं। देश  में कोविड-19 का आंकड़ा अब 4400 को पार कर चुका है। 117 लोगों की इस बीमारी के चलते जान जा चुकी है और इस तब्लीगी जमात की मरकज से निकलने वाले लोगों के जरिए देश के 17 राज्यों में कोरोना महामारी अपनी दस्तक दे चुकी है। देश में पहली बार एक ही दिन में कोरोना के 600 से ऊपर नए मामले दर्ज किए गए। बात केवल इतनी ही होती तो उसे अज्ञानता, नादानी या लापरवाही कहा जा सकता था लेकिन जब इलाज करने वाले डाक्टरों, पैरा मैडीकल स्टाफ  और पुलिस कर्मियों पर पत्थरों से हमला किया जाता है या फिर उन पर थूका जाता है जबकि यह पता हो कि यह बीमारी इसी के जरिए फैलती है या फिर महिला डाक्टरों और नर्सों के साथ अश्लील हरकतें करने की खबरें सामने आती हैं तो प्रश्न केवल इरादों का नहीं रह जाता। 

ऐसे आचरण से सवाल उठते हैं सोच पर, परवरिश पर, नैतिकता पर, सामाजिक मूल्यों पर, मानवीय संवेदनाओं पर। किन्तु इन सवालों से पहले सवालिया निशान तो ऐसे पशुवत आचरण करने वाले लोगों के इंसान होने पर ही लगता है क्योंकि आइसोलेशन वार्ड में इनकी गुंडागर्दी करने की तस्वीरें कैद होती हैं तो कहीं फलों, सब्जियों और नोटों पर इनके थूक लगाते हुए वीडियो वायरल होते हैं। यह कैसा व्यवहार है? यह कौन-सी सोच है, ये कौन से लोग हैं जो किसी अनुशासन को नहीं मानना चाहते? ये किसी नियम किसी कानून किसी सरकारी आदेश को नहीं मानते। अगर मानते हैं तो फतवे को मानते हैं। जो लोग कुछ समय पहले तक संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे वे आज संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं। पूरा देश लॉकडाऊन का पालन करता है लेकिन इनसे सोशल डिस्टैंसिग की उम्मीद करते ही पत्थरबाजी और गुंडागर्दी हो जाती है। लेकिन ऐसा खेदजनक व्यवहार करते वक्त ये लोग भूल जाते हैं कि इन हरकतों से ये अगर किसी को सबसे अधिक नुक्सान पहुंचा रहे हैं तो खुद को और अपनी पहचान को। चंद मुट्ठी भर लोगों की वजह से पूरी कौम बदनाम हो जाती है। 

कुछ जाहिल लोग पूरी जमात को जिल्लत का अहसास करा देते हैं। लेकिन समझने वाली बात यह है कि असली गुनहगार वे मौलवी और मौलाना होते हैं जो इन लोगों को ऐसी हरकतें करने के लिए उकसाते हैं।  तब्लीगी जमात के मौलाना साद का वह वीडियो पूरे देश ने सुना जिसमें वह तब्लीगी जमात के लोगों को कोरोना महामारी के विषय में अपना विशेष ज्ञान बांट रहे थे। दरअसल किसी समुदाय विशेष के ऐसे ठेकेदार अपने राजनीतिक हित साधने के लिए लोगों का फायदा उठाते हैं।  सरकारें भी ठोस कदम उठा रही हैं। यह भी आवश्यक है कि ऐसे लोगों का उन्हीं की कौम में सामाजिक बहिष्कार हो, साथ ही उन पर कानूनी शिकंजा कसे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रुके।-डा. नीलम महेंद्र
 

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