दिल्ली में उजड़े आशियानों का जिम्मेदार कौन

Saturday, Feb 29, 2020 - 01:40 AM (IST)

इसमें कोई शक नहीं कि यह समय चुनौतीपूर्ण है-आर्थिक दृष्टि से भी और आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से भी। जिस दिन ट्रम्प भारत आए उसी दिन दिल्ली में जिस प्रकार का हिंसक उपद्रव प्रारंभ किया गया, वह इस बात को बताता है कि पाकिस्तानी तत्व अमरीकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा को शाहीन बाग के उस आयाम के साथ टैग करके मीडिया में प्रस्तुत करना चाहते थे कि मोदी  के भारत में सब कुछ ठीक नहीं है। यह घटना हमारे इंटैलीजैंस तथा सुरक्षा व्यवस्था के लिए भी एक धक्का और चुनौती बनकर आई है जिसमें स्पष्ट हुआ है कि भारत विद्रोही तत्व यह चाहते थे कि मीडिया में जिस दिन ट्रम्प की भारत यात्रा का पहला समाचार छपे, उसी दिन भारत की राजधानी दिल्ली में हिंसक उपद्रवों, हैड कांस्टेबल की मौत, पैट्रोल पंप में आग का भी समाचार छपे, ताकि लगे भारत भीतर ही भीतर युद्धरत है। निश्चित रूप से मोदी और अमित शाह इसे हल्के ढंग से नहीं लेंगे पर यह परिदृश्य ट्रम्प की भारत यात्रा के देशभक्तों और हमारी विकास यात्रा पर सकारात्मक प्रभाव को और ज्यादा आग्रहपूर्वक सिद्ध कर देता है। 

अमरीकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा पूर्व नियोजित थी। बहुत समय से इसकी तैयारी चल रही थी। उनके आने के साथ ही दिल्ली में उजाड़े गए आशियानों तथा मौतों का जिम्मेदार कौन हो सकता है? दिल्ली पुलिस है, जिसकी हर गली में इंटैलीजैंस होती है। इस इलाके में पहले भी पत्थरबाजी की घटनाएं हुई हैं। गृह राज्यमंत्री खुद आशंका जता रहे हैं कि हिंसा की साजिश थी। इंटैलीजैंस सिस्टम हाइपर एक्टिव था। दिल्ली पुलिस की लोकल इंटैलीजैंस यूनिट, उसके मुखबिर, बड़े अफसरों को मिलने वाली अंधाधुंध सोर्स मनी से फैलाया गया नैटवर्क, आई.बी. का समानांतर नैटवर्क। इतना ही नहीं, दिल्ली में उत्तर प्रदेश की तरह बीट सिस्टम तहस नहस नहीं हुआ है। हर पुलिस वाले की जिम्मेदारी होती है कि वह अपनी बीट की जानकारी रखे। वह जानता है कि किस घर में कौन लोग रहते हैं? कौन नया आया है? कहां से आया है? कौन कहां, कैसा धंधा करता है? जाहिर बात है रॉ भी लगातार जानकारियां इकट्टी कर रही होगी। ये सभी एजैंसियां लगातार दिल्ली पुलिस को इनपुट भेजती हैं। इस पूरे नैटवर्क के बावजूद इतनी बड़ी हिंसा फैल गई, कौन मानेगा कि सूचना ठीक से नहीं मिली होगी। 

यह साफ है कि दिल्ली पुलिस ने इन सूचनाओं का सही इस्तेमाल नहीं किया। अब सही इस्तेमाल न होने की दो वजहें हो सकती हैं, पहली यह कि दिल्ली पुलिस बेहद नकारा है, उसकी प्रशासनिक क्षमताएं शून्य के करीब हैं। दूसरी वजह हो सकती है राजनीतिक दबाव। दिल्ली पुलिस की काबिलियत का डंका पूरी दुनिया में बजता है, उसकी तुलना स्कॉटलैंड यार्ड से की जाती है। उत्तर पूर्वी दिल्ली की ङ्क्षहसक घटनाएं बताती हैं कि जिला पुलिस ने स्टैंडर्ड ऑप्रेटिंग प्रोसीजर ठीक से लागू ही नहीं किया। हालात बिगड़ सकते हैं इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था। दो महीने पहले ही यहां नागरिकता कानून पर हिंसा हो चुकी है। ऐसी जटिल परिस्थितियों में कपिल मिश्रा को आग में घी झोंकने के लिए छोड़ दिया गया। उसकी गिरफ्तारी एहतियात के तौर पर की जा सकती थी। नजरबंदी भी कर सकते थे। शांति की खातिर यह बहुत जरूरी था। 

इन इलाकों और शाहीन बाग में अंतर है। इलाकों के गण्यमान्य लोगों को बुलाकर पुलिस मीटिंग कर सकती थी। स्थानीय नेताओं की मदद ले सकती थी। उपद्रव फैलाने की आशंका में कुछ लोगों को रातों-रात उठा सकती थी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। निचोड़ यह है कि प्रशासन इस हिंसा की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को एक महीने पहले रिटायर होना था, वह एक्सटैंशन पर चल रहे हैं वह जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। उप राज्यपाल अनिल बैजल पुलिस के बॉस हैं और दिल्ली पुलिस के राजनीतिक मुखिया अमित शाह हैं। इन तीनों की जिम्मेदारी थी कि हालात को काबू में रखते, विफलता सीधे उनके जिम्मे आती है।-अशोक भाटिया
        

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