हिन्दू शरणार्थियों के ‘नारकीय जीवन’ के दोषी कौन

punjabkesari.in Friday, Jan 03, 2020 - 04:27 AM (IST)

अभी -अभी दिल्ली में मुझे पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों की एक छोटी-सी बस्ती में जाने का अवसर मिला। यह बस्ती दिल्ली के प्रह्लाद नगर में है जो अशोक कुमार सोलंकी नामक एक समाजसेवी ने अपनी जमीन पर बसाई है। आज से कोई 9 साल पूर्व इन्हें जंतर-मंतर पर पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी मिले थे जो भूख से बिलबिला रहे थे, उनके पास आगे के जीवन के लिए कोई साधन नहीं था और न ही कोई आशा थी, उनका जीवन अंधकारमय ही था।

समाजसेवी अशोक कुमार सोलंकी को दया आ गई और उन्होंने अपनी करोड़ों की कीमती भूमि इन्हें दान कर दी, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इनके लिए उस जमीन पर रहने हेतु प्रारंभिक जरूरी व्यवस्थाएं भी कर डाली थीं। अब इन्हें उस जमीन पर बसे हुए कोई 9 साल हो गए, ऐसे ही अन्य जगहों पर बसे पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों की स्थिति है। 

अभी भी पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों के लिए कुछ नहीं बदला है, हालात वैसे के वैसे हैं, इनकी बस्तियों में सरकारी सुविधा नाम की कोई चीज नहीं है, बिजली भी नहीं है, शौचालय भी नहीं है, सड़क भी नहीं, कोई स्कूल भी नहीं है, नालियां भी नहीं हैं, कहने का अर्थ है कि दिल्ली सरकार का कोई अस्तित्व ही नहीं दिखता है। सरकारों का मानवीय आधार भी नहीं दिखता है। ये शरणार्थी हैं, शरणार्थी होने की सभी अर्हताएं पूरी करते हैं, भारत सरकार भी इन्हें घुसपैठिए नहीं बल्कि शरणार्थी मानती है। 

संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषित शरणार्थी सुविधाएं लेने के ये अधिकार रखते हैं, पर इन्हें संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषित शरणार्थी सुविधाएं क्यों नहीं मिली हैं, इसका उत्तर कौन देगा? इन्हें कौन दिलाएगा संयुक्त राष्ट्रसंघ की घोषित शरणार्थी सुविधाएं? क्या संयुक्त राष्ट्रसंघ भी हिंसक और भस्मासुर मानसिकता वाले शरणार्थियों की ही सुनता है, मदद करता है? ये संघर्ष करते-करते थक चुके हैं, कभी इन पर पुलिस तो कभी प्रशासन की मार तो कभी इन पर जमीन माफियाओं की मार पड़ती रहती है, अब तो इन्हें जमीन माफिया भी बेघर करने पर तुले हुए हैं। ये अशिक्षित भी हैं, इसलिए शरणार्थी अधिकारों के प्रति भी इनकी जानकारी बहुत ही कमजोर है। अब तक सभी राजनीतिक पार्टियां इनके लिए किसी अर्थ की नहीं रही हैं। 

हिंदू शरणार्थियों को भेडिय़ों के बीच रहने के लिए छोड़ दिया
हिन्दू शरणार्थियों की पीड़ा भी कम नहीं है। हिन्दू शरणार्थी कहते हैं कि हमने पाकिस्तान नहीं मांगा था, जब मजहब के आधार पर पाकिस्तान बन गया, मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बना दिया गया था तब भारत और पाकिस्तान से आबादी हस्तांतरण क्यों नहीं हुआ, हमारे लिए विखंडन के पूर्व ही प्रस्तावित पाकिस्तान से भारत क्षेत्र में बसने की व्यवस्था क्यों नहीं हुई, हमें भेडिय़ों के बीच रहने के लिए छोड़ दिया गया था। 

हम लगभग 73 साल इन भेडिय़ों के बीच कैसे रहे हैं, किस प्रकार के उत्पीडऩ झेले हैं, हम किस प्रकार से प्रताडि़त हुए हैं, हमारे लाखों भाई-बहनों को किस प्रकार से अपने धर्म से विमुख होने के लिए मजबूर किया गया, अपने धर्म से विमुख होने से इन्कार करने पर किस तरह से अंग-भंग किया गया, अस्मिता लूटी गई, यह भी दुनिया से छिपी हुई बात नहीं है। यह इनका आक्रोश भर नहीं है, इस आक्रोश में सौ प्रतिशत सच्चाई है, एक मजहबी देश किस प्रकार से ङ्क्षहसक होता है, किस प्रकार से अमानवीय होता है, किस प्रकार से एकात्मक सोच से ग्रसित होता है, उसका प्रमाण है। विखंडन के समय हुए कत्लेआम को कौन भूल सकता है। स्वतंत्र इतिहासकार बताते हैं कि पाकिस्तान में कोई 8 लाख से अधिक हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ था। विखंडन के समय हिन्दुओं के लिए कत्लेआम का शिकार होने या फिर अपना धर्म छोड़कर पाकिस्तान का धर्म अपनाने का विकल्प था। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि लाखों हिन्दू डर कर इस्लाम को स्वीकार करने के लिए बाध्य हुए थे। 

‘भेडिय़ा’ शब्द का प्रयोग सीमांत गांधी ने किया था
जब मैंने पाकिस्तान हिन्दू शरणार्थियों के मुंह से भेडिय़ा शब्द सुना तब मुझे खान अब्दुल गफ्फार खान की याद आई और उनकी ङ्क्षचता व उनके शब्द याद आ गए जो मैंने इतिहास में पढ़े थे। खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमांत गांधी के नाम से जाना जाता है, वह महात्मा गांधी के सहयोगी और उनके सिद्धांतों के प्रति पूरी निष्ठा रखते थे और भारत विभाजन के विरोधी थे। उनका कहना था कि मजहब के आधार पर बना पाकिस्तान कहीं से भी न्यायप्रिय देश नहीं बन सकता था। सबसे पहले पाकिस्तान के खिलाफ   ‘भेडिय़ा’ शब्द का प्रयोग सीमांत गांधी ने ही किया था। उस समय महात्मा गांधी सहित अन्य नेताओं के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करते हुए सीमांत गांधी ने कहा था कि हमें भेडिय़ों के बीच मरने के लिए छोड़ दिया गया। 

जिस भेडिय़ा शब्द का प्रयोग सीमांत गांधी ने पाकिस्तानी हुक्मरानों के लिए किया था वह ‘भेडिय़ा’ शब्द सच साबित हुआ। सीमांत गांधी ही नहीं बल्कि पाकिस्तान की अवधारणा में ठीक नहीं बैठने वालों को ङ्क्षहसक दुष्परिणाम झेलने के लिए विवश होना पड़ा। सीमांत गांधी के अनुयायियों सहित अनेकानेक लोगों का विध्वंस हुआ। खास कर हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ, हिन्दुओं के सभी प्रतीकों को मिटाने के लिए जेहाद हुआ। जेहाद सिर्फ मजहबी संगठनों का नहीं था बल्कि इसके अलावा पाकिस्तान की सेना और सरकार की भी बड़ी भूमिका थी। 

यही कारण है कि गैर-मुस्लिमों के लिए पाकिस्तान कब्रगाह साबित हुआ है। जब पाकिस्तान बना था उस समय पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी कोई 30 प्रतिशत के करीब थी, इसमें से कुछ लोग जो अति सम्पन्न थे वे विखंडन के पूर्व ही भारतीय क्षेत्र में आकर बस गए थे लेकिन बहुत सारे हिन्दू भारत नहीं आ सके थे। आज पाकिस्तान में हिन्दू 2 प्रतिशत से भी कम हैं। पाकिस्तान में हिन्दुओं की संख्या का पतन क्या यह विश्वास नहीं दिलाता कि एक इस्लामिक देश में गैर-मुस्लिम आबादी के लिए कोई जगह नहीं होती है। विखंडन के समय भारत में मुसलमानों की संख्या मुश्किल से 7 प्रतिशत थी पर आज उनकी संख्या 20 प्रतिशत पहुंच चुकी है। 

दानिश कनेरिया का हिंदू होना काल हो गया
अभी पाकिस्तानी हिन्दुओं से जुड़े हुए दो प्रसंग काफी चॢचत हुए थे और जेहादी पाकिस्तान का असली चरित्र उजागर हुआ था। एक प्रसंग क्रिकेटर दानिश कनेरिया से जुड़ा है। कनेरिया का हिन्दू होना उनके लिए काल हो गया था। पाकिस्तान क्रिकेट में उन्हें बढऩे नहीं दिया गया, पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के सदस्य उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया करते थे। दूसरा प्रकरण पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री के साथ जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री जोगेन्द्र नाथ मंडल थे, यह विखंडन की थ्योरी को पूरा करने वाले मोहम्मद जिन्ना के सहयोगी थे। जोगेन्द्र नाथ मंडल बड़े अरमान से पाकिस्तान गए थे और वह दलित थे पर उनका अरमान जेहादी पाकिस्तान की अवधारणा ने तोड़ दिया था। कानून मंत्री होने के बावजूद उनका हर जगह अपमान होता था, जेहादी आबादी उनकी जान की दुश्मन बन गई थी। हार कर जोगेन्द्र नाथ मंडल को पाकिस्तान से भागना पड़ा था और वह जिस इस्लाम में सहिष्णुता देखते थे उसी में उन्होंने रक्तरंजित जेहाद देखा था। जोगेन्द्र नाथ मंडल का प्रसंग पाकिस्तानी बुद्धिजीवी, जेहादी आतंकवाद व रक्तपात को उजागर करने वाले तारेक फतह बार-बार उठाते हैं। 

नागरिकता कानून एक आशा का संचार है
प्रश्न यह नहीं है कि नरेन्द्र मोदी के नए नागरिकता कानून से पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों के बीच खुशी की लहर है, एक आशा का संचार हुआ है, एक पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी ने अपनी बच्ची का नाम नागरिकता भी रखा है, यह प्रसंग दुनिया भर में चर्चित हुआ है पर प्रश्न यह है कि अब तक पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों के प्रति संयुक्त राष्ट्रसंघ का शरणार्थी अधिनियम क्यों नहीं जागा, संयुक्त राष्ट्रसंघ इन्हें शरणार्थी के अधिकार दिलाने के लिए क्यों नहीं आगे आया?

क्या संयुक्त राष्ट्रसंघ सिर्फ और सिर्फ हिंसक  भस्मासुर मानसिकता वाले शरणार्थियों की ही चरणवंदना करता है, उन्हें शरणार्थी अधिकार दिलाता है? पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी शांतिपूर्वक रहने वाले हैं, ये हिंसा के सहचर नहीं हैं, हिंसक तौर पर किसी अन्य धर्म के लोगों को शिकार नहीं बनाते हैं, रोहिंग्या-बंगलादेशी घुसपैठियों की तरह चोरी, डकैती और अन्य आपराधिक कार्यों में संलिप्त नहीं हैं, इसीलिए इनकी उपेक्षा हुई है, इन्हें शरणार्थी अधिकारों से वंचित किया गया है। मानवीय आधार पर इनकी सहायता होनी चाहिए थी। दिल्ली की सरकार और केन्द्रीय सरकार द्वारा भी अभी तक कोई मानवीय पहल नहीं की गई। अनिवार्य रूप से पाकिस्तानी हिन्दू शरणाॢथयों को मानवीय सहायता की जरूरत है।-विष्णु गुप्त
 


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