क्या प्रियंका कांग्रेस के लिए मजबूरी या फिर ‘तारनहार’

Wednesday, Feb 13, 2019 - 03:25 AM (IST)

प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस महासचिव का कार्यभार संभाल लिया है और पिछले सप्ताह उनको पूर्वी उत्तर प्रदेश का दायित्व सौंपा गया है। यह राज्य उनके लिए कोई नया नहीं है बल्कि वह अपनी मां सोनिया गांधी के चुनावी क्षेत्र रायबरेली तथा भाई राहुल गांधी के क्षेत्र अमेठी को भी बरसों तक देखने के साथ-साथ इस राज्य के कुछ हिस्सों में चुनावी मुहिम में भाग ले चुकी हैं। 80 लोकसभा सीटों वाले यू.पी. राज्य ने संसद में सबसे ज्यादा कानून निर्माताओं को भेजा है और यह बेहद महत्वपूर्ण चुनावी जंग का मैदान है। 

क्योंकि वह एक राजनीतिक परिवार से संबंधित हैं इसलिए अपने बचपन से ही राजनीति पर वाद-विवाद को प्रियंका अपने खाने की मेज पर सुनती आई हैं। कांग्रेस पार्टी के लिए वह निश्चय ही एक बहुत बड़ा जुआ है और पार्टी का अंतिम तुरुप का पत्ता भी हैं। अब प्रश्र यह उठता है कि क्या वह कांग्रेस की मजबूरी हैं या फिर पार्टी की तारनहार। यू.पी. में पार्टी को संगठित करने के लिए क्या उनके पास 3 माह का समय काफी होगा? निश्चय ही वह लोगों को आकर्षित करने वाला चेहरा हैं। मगर अभी यह तय नहीं कि क्या वह कांग्रेस के लिए मत भी बटोरेंगी कि नहीं। यदि वह कांग्रेस के लिए मत इकट्ठे करने की योग्यता रखती हैं तो क्या उनकी ओर भागने वाली जनता मतों में तबदील हो जाएगी। ये ऐसे प्रश्र हैं जिनको उत्तर की तलाश है। 

प्रियंका में अपनी दादी की छवि
पहली बार लोगों ने प्रियंका की झलक उस समय पाई थी जब वह अपनी मां सोनिया के साथ 11 जनवरी 1998 को अपने पिता तथा पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के यादगारी स्थल श्रीपेरम्बदूर में साधारण लाल तथा नारंगी साड़ी में नजर आई थीं। हालांकि यह माना जाता था कि यह सोनिया को राजनीतिक पटल पर लाने की कोशिश थी मगर यह प्रियंका ही थीं जिन्होंने अपनी मां को पीछे छोड़ते हुए पहचान बनाई। लोगों ने प्रियंका में उनकी दादी इंदिरा गांधी की छवि देखी। तभी से ऐसे कयास लगाए गए कि वह राजनीति में प्रवेश करने के निकट हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि राजनीति में प्रवेश के लिए उन्होंने दो दशकों का समय लिया और मैं इस पर उनसे काफी सालों से चर्चा करता रहा हूं मगर उनका मानना था कि अभी उनके बच्चे बहुत छोटे हैं और उनको उनकी मां की जरूरत है। मगर अब जीवन के इस पड़ाव पर बच्चे जिनमें से एक यूनीवॢसटी में है, बड़े हो चुके हैं। इसलिए श्रीमती वाड्रा ने राजनीति में आने की इच्छा जताई।

मोदी-योगी का सामना
यू.पी. के चुनावी दंगल में प्रियंका सीधे तौर पर भाजपा के 2 दिग्गज नेताओं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (वाराणसी) तथा यू.पी. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (गोरखपुर) के आमने-सामने होंगी। जब प्रधानमंत्री ने यह कह कर सम्बोधित किया कि प्रियंका उनकी बेटी के समान है तो उन्होंने तत्काल ही कहा कि ‘‘किसी को भी मेरे पिता जैसे होने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। मैं अपने पिता को बहुत प्यार करती हूं।’’ इस बात को भाजपा भी अच्छी तरह से समझती है कि पिछली बार 2014 के लोकसभा  चुनावों में 71 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए सपा-बसपा गठबंधन के चलते जीत की डगर आसान न होगी। 

प्रियंका गांधी वाड्रा निजी तथा राजनीतिक चुनौतियों का सामना करती हैं। यदि निजी तौर पर देखा जाए तो वह ऐसे समय में राजनीति में प्रवेश कर रही हैं जबकि उनके पति रॉबर्ट वाड्रा कथित धन शोधन तथा भूमि घोटाले में संलिप्तता की वजह से प्रवर्तन निदेशालय के नए सवाल-जवाब को झेल रहे हैं, वहीं उनकी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी नैशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर हैं। शायद उनके परिवार ने ऐसा सोचा होगा कि राजनीति में सीधे तौर पर प्रवेश से उनके परिवार को इस चुनौतीपूर्ण समय में प्रियंका निजात दिलाएंगी। जिस दिन उन्होंने पिछले सप्ताह कार्यभार संभाला तभी अपने पति वाड्रा को अपना समर्थन तथा उनके साथ खड़े होने को दर्शाते हुए ई.डी. कार्यालय तक उनके संग नजर आईं। 

प्रियंका के लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती
ऐसे समय में राजनीति में प्रवेश करना वाकई में प्रियंका के लिए एक बहुत बड़ी राजनीतिक चुनौती है क्योंकि लोग ऐसा मानते हैं कि उनको बैकडोर से लाया गया है। इसलिए उनके लिए ऐसी राजनीति एक अलग बात होगी और वह लगातार लोगों की नजरों में होंगी। प्रियंका ने राजनीति में उस वक्त प्रवेश पाया है जब कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है क्योंकि पार्टी कुछ वर्षों से सत्ता में नहीं है। इसलिए उनके लिए चुनौती और भी बढ़ गई है। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के तीन विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है। इससे मोदी थोड़ा रक्षात्मक हो गए हैं। भाजपा के विरुद्ध सभी विपक्ष हाथ मिला रहे हैं। एस.सी./एस.टी. बिल संशोधन पर भाजपा के रुख को देखते हुए ऊंची जातियों का एक वर्ग भाजपा से क्षुब्ध है। पार्टी के पुनरुत्थान के पहले कदम के लिए प्रियंका इन ब्राह्मण वोटों को हथियाना चाहेंगी। 

उनकी पहली चुनौती कार्यकत्र्ताओं में जोश भरने की होगी। प्रियंका के आने से पार्टी में जहां नई जान फूंकी जाएगी मगर वह अकेले ही अपने बल पर नतीजों को पा नहीं सकतीं क्योंकि उनको पार्टी को निचले स्तर से ही ऊपर उठाना होगा जोकि अभी तक पार्टी में नहीं दिख रहा है। दूसरी बात यह है कि युवा वर्ग को नौकरियां चाहिएं। यू.पी. में गन्ने की खेती करने वाले कई किसान हैं। वहां पर किसानों का संकट भी बरकरार है। क्या ऐसी बीमारियों के लिए प्रियंका की ‘संजीवनी’ काम करेगी। उनको मात्र नए बयान दरकार नहीं होंगे बल्कि उनको लोगों में एक नया जज्बा और विश्वास भी पैदा करना होगा कि वह उनके वायदों पर खरी उतरेंगी।

तीसरी बात यह है कि इन सभी कार्यों को पूरा करने के लिए पार्टी को एक अच्छी निष्ठावान टीम भी चाहिए और इसके लिए समय लगेगा। इन सबसे ऊपर उठ कर भाजपा के अथाह धनकोष को देखते हुए प्रियंका को पार्टी को ऊपर उठाने के लिए वित्तीय सहायता की जरूरत होगी। पार्टी के भीतरी सूत्रों के अनुसार प्रियंका इस समय इन सभी पहलुओं पर गौर कर रही हैं और हमें उस समय का इंतजार करना होगा कि जब वह अपनी पहली बैठक के सम्बोधन के दौरान अपने झोले में से कुछ विशेष निकालेंगी। पार्टी के लिए मजबूरी या फिर तारनहार हैं, यह आने वाले दिनों में पता चल जाएगा।-कल्याणी शंकर
 

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