जहां भी गिरें, जब भी गिरें : बारिश की बूंदें बचाइए

punjabkesari.in Saturday, Jun 12, 2021 - 05:31 AM (IST)

किसी बच्चे के लिए, मानसून की शुरूआत शुष्क और उलझन भरी गर्मी के मौसम में बड़ी राहत लेकर आती है। लेकिन मानसून से पहले अत्यधिक तापमान वाले दिनों में बाहर खेलना किसी गर्म मिट्टी के चूल्हे पर चलने से कम नहीं होता-अक्सर पैरों में फफोले पड़ जाते हैं। गांव के तालाब सूख जाते हैं और इस कारण बच्चे अपने साथी मवेशियों के साथ पानी में गोता लगाने के अपने अधिकार से वंचित रह जाते हैं।

हालांकि मानसून आते ही पूरा परिदृश्य बदल जाता है। पहली बारिश अपने साथ फसलों, गांव के तालाबों, कुओं के लिए पानी और सबसे महत्वपूर्ण किसानों के लिए एक उ मीद लेकर आती है। वर्षा के महत्व को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि हमारे देश के 60 प्रतिशत किसान (कुल फसली क्षेत्र का 55 प्रतिशत)सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर हैं। इसके अलावा, वर्षा आधारित क्षेत्र देश में 64 प्रतिशत मवेशियों, 74 प्रतिशत भेड़ों और 78 प्रतिशत बकरी आबादी का भरण-पोषण करते हैं। 

इस तरह से, मानसून की तैयारी पूरे गांव के लिए एक पवित्र अनुष्ठान होता है। सामूहिक प्रयासों से तालाबों से गाद निकाल कर साफ किया जाता है। खेतों की ठीक तरह से मेड़बंदी की जाती है। लेकिन बच्चों के लिए, हथेलियों पर बारिश के पानी की बौछारें और उसमें ‘बारिश को पकडऩा’ महसूस करना एक अद्भुत आनंद दे जाता है।

हम अपने समृद्ध इतिहास में गोता लगाएं तो पानी के भंडारण और सिंचाई के लिए जलाशयों की अद्भुत संरचनाओं की जानकारी मिलती है, जिसे मुख्य रूप से पानी की उपलब्धता में मौसमी उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए बनाया जाता था। उन्हें बावरी, बावड़ी, वाव (गुजराती) पुष्करणी (कन्नड़), बारव (मराठी) आदि जैसे अलग-अलग स्थानीय नामों से पुकारा जाता था। ऐसी संरचनाओं की सबसे पहली जानकारी 2500 ईसा पूर्व में मिलती हैं। सिंधु घाटी स यता के तहत मोहनजोदड़ो स्थल पर बेलनाकार ईंटों से बने कुओं और स्नानागार का पता चलता है। 

सबसे पहले घाट उत्तर भारत में 100 ईस्वी के आसपास बनाए गए थे। इनमें से कई संरचनाओं से जटिल इंजीनियरिंग कौशल का पता चलता है और कुछ तो भूकंप में भी सुरक्षित रहे। इनमें से कुछ जलाशय हमारे पौराणिक महाकाव्यों से अटूट रूप से जुड़े हुए हैं। मेरे संसदीय क्षेत्र में मौजूद कालका की बावडिय़ों और मोरनी हिल्स के तालों का इस्तेमाल कथित तौर पर निर्वासन काल के दौरान पांडवों द्वारा किया गया था। 

अब हम अलग युग में रह रहे हैं। हमें अपनी व्यक्तिगत और विकासात्मक दोनों जरूरतों के लिए पानी की आवश्यकता है। बढ़ती आबादी के साथ, हमारी पानी की जरूरत भी कई गुना बढ़ गई है। इस जरूरत का अधिकांश भाग भूजल से पूरा किया जाता है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत किसी भी अन्य देश की तुलना में भूजल पर अधिक निर्भर है-यह भूजल की वैश्विक मांग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। आम तौर पर भारत के 1.35 अरब लोगों में से लगभग 80 प्रतिशत लोग पीने के पानी और सिंचाई दोनों के लिए भूजल पर निर्भर हैं। इसके चलते भूजल स्तर में खतरनाक स्तर पर गिरावट आई है। 

हमारा देश 18 प्रतिशत वैश्विक मानव आबादी का घर है लेकिन इसके पास केवल 2 प्रतिशत भूमि और 4 प्रतिशत वैश्विक मीठे पानी के संसाधन हैं। भारत में सालाना औसतन करीब 1170 मिमी वर्षा होती है। इसका 80-90 प्रतिशत हिस्सा मानसून के दौरान प्राप्त होता है। ऐसे में वर्षा के पानी का दोहन बिल्कुल आवश्यक है।

एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, अगर बारिश के आधे पानी को भी बचा लिया जाए, तो भारत का हर गांव अपनी घरेलू पानी की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगा (आर. अग्रवाल और अन्य, 2001)। एक अन्य अध्ययन (यू.एन.-हैबिटेट एंड गवर्नमैंट ऑफ एम.पी.) में बताया गया है कि 250 वर्गमीटर के भूखंड में छत पर गिरने वाले वर्षा के पानी को संरक्षित किया जाए तो सालभर 5 लोगों के एक परिवार का काम (50 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन) चल सकता है। 

अब, माननीय प्रधानमंत्री ने 22 मार्च 2021 को एक राष्ट्रव्यापी अभियान जल शक्ति अभियान 2 (जेएसए-2) शुरू किया है, जिसका शीर्षक है- बारिश की बूंदें बचाइए जहां भी गिरें, जब भी गिरें। हमारा मकसद सभी बड़े सार्वजनिक और निजी उद्यमों को इस दिशा में अपने कार्यों को समन्वित कर लाभ उठाना है। हमारे मंत्रालय ने ‘कैङ्क्षचग द रेन’ के लिए हाथ मिलाने के लिए रक्षा, ग्रामीण विकास, पर्यावरण और वन मंत्रालय, कृषि, शहरी विकास, रेलवे, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, विश्वविद्यालयों आदि के साथ समन्वय किया है। 

कोविड-19 की दूसरी गंभीर लहर के बावजूद, इस अभियान ने साधारण लेकिन महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 1.12 लाख जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन (आर.डब्लू.एच.) संरचनाओं के निर्माण की जानकारी दी है, जिस पर 3,671 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं जबकि 1.35 लाख अतिरिक्त संरचनाओं पर कार्य प्रगति पर है। 1660 करोड़ रुपए की लागत से अब तक 24,332 पारंपरिक संरचनाओं और मौजूदा जलाशयों का नवीनीकरण किया गया है और जल्द ही 30,969 अतिरिक्त संरचनाओं का कायाकल्प होने की उम्मीद है।-रतन लाल कटारिया (केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री)


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