अपने गिरेबान में कब झांकेंगे!

punjabkesari.in Tuesday, Nov 28, 2023 - 04:35 AM (IST)

दूसरों के गिरेबान में झांकने की आदत तो हमें एक जमाने से है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो समय निकल जाने वालों के गिरेबान में भी झांक लेते हैं। अब यह आदत बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में परिस्थितियों ने खतरनाक करवटें ली हैं। इंसान का इंसान से मिलना व्यक्तिगत रूप से कम हो गया है। एक छत के नीचे रहने वाले लोग भी आपस में अजनबी होने लगे हैं। हालांकि इस बहाने एक महत्वपूर्ण अवसर भी मिल रहा है अपने गिरेबान में संजीदगी से झांकने का और सच मानें तो वक्त की जरूरत भी है। यह भी सच है कि अपने गिरेबान में झांका तो उसका फायदा जिंदगी के फैलते वृक्ष को हुआ। जड़ों को सकारात्मकता की खाद मिली। 

फिलहाल हम सभी ने अपने शरीर और दिमाग में सोशल मीडिया का दखल इतना बढ़ा दिया है कि सामाजिक ढांचा हिलता डुलता, चरमराता और गिरता नजर आने लगा है। हालांकि यह ऐसा ही है कि हम किसी की तरफ एक उंगली उठाते हैं तो अपनी तीन उंगलियां अपनी तरफ ही रहती हैं। उन तीन उंगलियों का इशारा मान कर अपने गिरेबान भी झांक लिया जाए तो जिंदगी के हालात की अच्छी जांच हो सकती है। कुछ बिगड़ती बातें, बननी शुरू हो सकती हैं। संभव है इस बहाने सुधार होने से दूसरों की मदद की जरूरत भी कम हो जाए। 

आजकल परेशानियों को धर्म और ताकत की आंख से देखने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। हर राजनीतिक पार्टी जाति-पाति का सहारा लेती है,लेकिन कहा जा रहा है कि जाति को भूल जाइए। किसी भी सामाजिक समस्या के तनाव उगाने वाले मोड़ पर बहस होती है, तो लगभग सभी नेता, चाहे वे पक्ष के हों या विपक्ष के राजनीति करते हुए यह जरूर कहते हैं कि इस मामले में राजनीति न करें। कोई अपना गिरेबान झांकने की कोशिश नहीं करता। ऐसा होना शुरू हो जाए तो सामाजिक सम्मान बढऩे लगे, जनता खुश रहने लगे। दोष निर्धारित करने से पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उचित क्या है। हमारा सच या तुम्हारा सच या वास्तविक सच। दावे के बजाय असली सच को स्वीकार कर सार्वजनिक मंच पर लाने की शुरूआत खुद से करनी होगी। परेशानियां तो आएंगी, क्योंकि हमें खुद को दूसरों से अलग रास्ते पर ले जाना होगा। हमें यह मानकर चलना होगा कि उचित रास्ते पर चलने वाले और भी मिलेंगे। हम अकेले नहीं हैं। बुराई या जिस चीज को हम सामाजिक स्तर पर अनुचित समझते हैं, उसमें बदलाव लाना चाहे बाधाओं से भरा हो, उसे बदलने के लिए स्पष्टता और स्वच्छता अभियान एक बार शुरू कर लगातार जारी रखना होगा।

दूसरों से अपेक्षा छोड़कर अपना रास्ता खुद तलाशना होगा। प्रयासों के अनुरूप बदलाव एक दिन आता ही है। इसके लिए हमें अपने दोष दूर करने होंगे। खुद को बदलना मुश्किल है, दूसरों को बदलना तो और ज्यादा मुश्किल है। जीवन स्थितियों में बदलाव आते रहें और बेहतर जिंदगी बिताने के लिए प्रयास करते रहे तो परिवर्तन का एक प्रारूप हमारे मन में जन्म लेकर विकसित होना शुरू हो जाता है। यह एक ख्याली पुलाव की तरह है कि सभी सुधर जाएं...सभी को मर्यादाओं और सीमाओं का पता हो और ध्यान रहे वे उनका पालन करते रहें। 

सार्वजनिक जीवन में हम आमतौर पर जिम्मेदार व्यवहार करना, यानी गिरेबान में झांकना भूल जाते हैं। किसी भी आयोजन में प्लेट में भूख से ज्यादा खाना लेते हैं, छोड़ते हैं और कचरा पेटी में डालते हैं। गाड़ी चलाते हुए सबसे पहले आगे निकलना चाहते हैं। चौराहे पर अभी हरी बत्ती भी नहीं  होती कि हार्न बजाना शुरू कर देते हैं। हमें ख्याल रखना चाहिए कि आगे खड़े होने वाले ने वहीं रुके नहीं रहना है। लाल बत्ती का उल्लंघन करना हमारी आदतों में शुमार है। जरा-सी बात पर चीखना-चिल्लाना, लडऩा, मारना शुरू कर देते हैं, चाहे गलती अपनी ही हो। रेल, बसों, मैट्रो में सबसे पहले घुसना चाहते हैं और महिला डिब्बों में पुरुष चढ़ जाते हैं। हम अब भी प्लास्टिक और पॉलीथीन की गोद में बैठे हुए हैं। विज्ञापन पर करोड़ों खर्च हो चुके, लेकिन कचरा यहां-वहां फैंकना नहीं छोड़ा। पैदल पार-पंथों से या दूसरी उचित जगह से नहीं, गलत जगह से ही सड़क पार करते हैं। सड़क किनारे थूकना या पेशाब करना छूटा नहीं है।

माफी मांगने और माफ करने में तो अपना गिरेबान बिल्कुल नहीं झांकना चाहते। हम यह नहीं समझते कि माफी मांगने से कोई छोटा नहीं होता बल्कि यह पता चलता है कि रिश्ते महत्वपूर्ण होते हैं बच्चों के साथ हमारा व्यवहार काफी बदलाव चाहता है। अगर हम अपना संजीदा अंशदान शुरू कर दें तो स्वानुशासन, प्रेरणा और सुधार का अंकुरण देखा जा सकता है, जो उचित देखभाल से धीरे-धीरे वट वृक्ष में तबदील हो सकता है।-प्रभात कुमार


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