जब स्थानीय विधायक ने दिया एक गरीब की अर्थी को कंधा

Wednesday, Jun 06, 2018 - 04:44 AM (IST)

परिवार के नाम पर दिलीप डे के पास केवल एक भतीजा ही था और वह भी शारीरिक रूप से अपंग। गत वीरवार जब अपने गृहनगर मरियाणी में दिलीप की मौत हो गई तो उसके शव को श्मशानघाट तक ले जाने के लिए पर्याप्त संख्या में लोग नहीं थे। 

असम के जोरहाट जिले में मरियाणी कस्बा राजधानी गुवाहाटी से 320 कि.मी. की दूरी पर पूर्व में स्थित है। स्थानीय कांग्रेस विधायक 40 वर्षीय रूप ज्योति कुर्मी को जैसे ही इस बात का पता चला वह अर्थी को कंधा देने वालों तथा दाह संस्कार करने वालों में शामिल हो गए। कुर्मी ने बताया, ‘‘दिवंगत व्यक्ति बहुत गरीब और बिल्कुल अकेला था इसलिए ऐसे व्यक्ति का सम्मानजनक दाह संस्कार भी एक समस्या बन जाता है। जनप्रतिनिधि होने के साथ-साथ मैं भी एक इंसान हूं और लोगों के प्रति जिम्मेदार हूं, इसलिए जो कुछ मैंने किया है इतना तो मेरे लिए हर हालत में करना अनिवार्य था।’’ 

लगभग 55 वर्ष की आयु में पहुंच चुके दिलीप डे मरियाणी के दबेड़ापार चरियाली मोहल्ले में रहा करते थे। उनके पड़ोस में रहने वाले एक व्यापारी रूपम गोगोई को जैसे ही उनकी मृत्यु का पता चला, उसने स्थानीय विधायक कुर्मी को सूचित किया। गोगोई ने बताया कि सूचना मिलते ही विधायक ने बांस मंगवाकर अर्थी तैयार की। स्थानीय लोगों का कहना है कि मरियाणी से तीन बार विधायक बन चुके कुर्मी अक्सर मानवीय आधार पर लोगों की सेवा करते रहते हैं। कई बार काफी गंभीर परिस्थितियों में भी वह इस काम को अंजाम देते हैं और अपनी सुरक्षा तक की परवाह नहीं करते। जुलाई 2017 में उन्होंने 50 किलो चावल का बोरा अपनी पीठ पर रखकर काजीरंगा नैशनल पार्क के समीप बाढ़ पीड़ितों के लिए बने हुए शिविर में पहुंचाया था। 

दिलीप डे का दाह संस्कार हुए अभी 24 घंटे भी नहीं हुए थे कि शुक्रवार एक स्थानीय आटो रिक्शा ड्राइवर की मां के जनाजे को कंधा देने के लिए पहुंच गए। आटो रिक्शा ड्राइवर कबीर अहमद की यह प्रबल इच्छा थी कि स्थानीय विधायक उनकी मां की शवयात्रा में शामिल हों, लेकिन शव को कंधा देकर उन्होंने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। रूप ज्योति कुर्मी पहली बार 2006 में मरियाणी से विधायक चुने गए थे। उनसे पहले इस सीट का प्रतिनिधित्व उनकी मां रूपम कुर्मी करती थीं जोकि असम के आदिवासी समुदाय में प्रथम ग्रैजुएट महिला थीं। उल्लेखनीय है कि इन आदिवासियों को अनुसूचित जनजातियों का दर्जा हासिल नहीं।-राहुल करमाकर

Pardeep

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