गुलजारीलाल नंदा किराया नहीं दे पाए तो मकान मालिक ने घर से निकाला

punjabkesari.in Friday, Jul 04, 2025 - 05:09 AM (IST)

स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा अपनी सादगी और विनम्रता के लिए पहचाने जाते थे। वह 2 बार देश के अंतरिम प्रधानमंत्री भी रहे। आजादी के बाद पं. जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में बनी कांग्रेस सरकार में कई अहम मंत्रालयों के मंत्री भी रहे। नंदा दोनों बार जब अंतरिम प्रधानमंत्री बने तो उस समय वह देश के गृह मंत्री थे। इन दौरान वह 13-13 दिनों के लिए इस पद पर रहे। 

अमर शहीद लाला जगत नारायण के साथ पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा का खास प्यार रहा। कुरुक्षेत्र के विकास में इन दोनों विभूतियों ने देवी दयाल नन्हा, डा. शांति स्वरूप शर्मा, धर्मवीर सभ्रवाल के साथ  मुख्य भूमिका निभाई। गुलजारीलाल नंदा जी के नजदीकी विजय सभ्रवाल बताते हैं कि नंदा के साथ आॢथक तंगी इस कदर थी कि एक बार वह घर का किराया नहीं चुका पा रहे थे, जिस कारण उनके मकान मालिक ने उन्हें नई दिल्ली की डिफैंस कॉलोनी के घर से बाहर निकाल दिया। बात जब मीडिया में आई तब मकान मालिक को पता चला कि वह 2 बार देश के पी.एम. रहे हैं। बाद में वह अपनी बेटी के पास रहने के लिए अहमदाबाद चले गए।

गुलजारीलाल नंदा का जन्म अविभाजित पंजाब के सियालकोट में 4 जुलाई, 1898 को हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई लाहौर, आगरा और इलाहाबाद में पूरी की। इलाहाबाद यूनिवॢसटी (1920-1921) में उन्होंने श्रम संबंधी समस्याओं पर एक रिसर्च स्कॉलर के रूप में काम किया। साल 1921 में ही वह नैशनल कॉलेज (मुंबई) में अर्थशास्त्र के प्रोफैसर बन गए। हालांकि इस बीच वह देश की आजादी के आंदोलन से जुड़े रहे। साल 1921 में ही गुलजारीलाल पहली बार महात्मा गांधी से मिले और उन्होंने उन्हें गुजरात में ही बसने का अनुरोध किया। इसी साल वह महात्मा गांधी की ओर से शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। अगले साल 1922 में वह अहमदाबाद टैक्सटाइल लेबर एसोसिएशन (जिसे मजदूर महाजन संघ भी कहा जाता है) के सचिव बने, जिसमें उन्होंने 1946 तक काम किया। साल 1932 में सत्याग्रह करने की वजह से वह जेल गए। 1942 में भी वह जेल गए और 1944 तक जेल में ही रहे। इस बीच गुलजारीलाल नंदा 1937 में बंबई विधानसभा के लिए चुने गए। 

1937 में नंदा तत्कालीन बंबई सरकार के संसदीय सचिव (श्रम और उत्पाद शुल्क) बने, जहां वह 2 साल तक रहे। बाद में बंबई सरकार में श्रम मंत्री (1946 से 1950) बने। आजादी के बाद मार्च 1950 में नंदा योजना आयोग के उपाध्यक्ष बनाए गए। अगले साल सितंबर में केंद्र सरकार में योजना मंत्री बने। इस बीच उनके पास सिंचाई और बिजली विभागों का प्रभार भी आ गया। 1952 में देश में हुए पहले आम चुनाव में वह मुंबई से लोकसभा के लिए चुने गए और फिर योजना मंत्री के साथ-साथ सिंचाई और बिजली मंत्री भी बने। 1957 में देश के दूसरे आम चुनाव में भी नंदा लोकसभा के लिए चुने गए। प्रधानमंत्री नेहरू ने उन्हें श्रम, रोजगार और नियोजन मंत्री बनाया। बाद में उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष भी नियुक्त कर दिया गया। 1962 के तीसरे आम चुनाव में नंदा ने गुजरात की साबरकांठा संसदीय सीट से जीत हासिल की। इस बीच नंदा ने 1962 में समाजवादी लड़ाई के लिए कांग्रेस फोरम की नई शुरुआत की। इसके अलावा वह 1962 और 1963 में श्रम और रोजगार मंत्री रहे। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने 1963 में गुलजारीलाल को गृह मंत्री बनाया जिससे कैबिनेट में उनकी नंबर दो की हैसियत हो गई। वह 1966 तक देश के गृह मंत्री रहे।

27 मई, 1964 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद गुलजारीलाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया। हालांकि वह खुद भी प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में थे, लेकिन तब के कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर मुहर लगाई। ऐसे में नंदा पीछे छूट गए और महज 13 दिन ही कार्यवाहक पी.एम. के रूप में काम कर सके। हालांकि देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी ज्यादा समय तक पद पर नहीं रह सके। पाकिस्तान के साथ युद्ध में जीत हासिल कर शांति समझौते के लिए तत्कालीन रूस गए पी.एम. शास्त्री का ताशकंद में 10 जनवरी, 1966 को संदिग्ध परिस्थितियों में निधन हो गया। ऐसे में नंदा को एक बार फिर देश का कार्यवाहक पी.एम. बनाया गया। निधन से कुछ समय पहले साल 1997 में गुलजारीलाल नंदा को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। राजनीति से दूर होने के बाद वह दिल्ली छोड़कर गुजरात चले गए। वहीं पर उन्होंने अंतिम सांस ली। नंदा का निधन 99 साल की उम्र में 15 जनवरी, 1998 को अहमदाबाद में हुआ। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने वाले गुलजारीलाल नंदा ने जीवनभर ईमानदारी के साथ काम किया और संपत्ति नहीं बनाई। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मिलने वाली पैंशन लेने से भी मना कर दिया। हालांकि बाद में आॢथक तंगी की वजह से उन्हें 500 रुपए की पैंशन स्वीकार करनी पड़ी थी।-कृष्ण धमीजा 


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