यादों के झरोखे से जब गांधी जी ने 9 अगस्त, 1942 को ‘क्विट इंडिया’ का नारा दिया

punjabkesari.in Tuesday, Aug 10, 2021 - 04:09 AM (IST)

भारत को गुलामी से मुक्त करवाने के लिए महात्मा गांधी ने 9 अगस्त, 1942 को अंग्रेजों के विरुद्ध ब बई (वर्तमान मुंबई) से ‘क्विट इंडिया मूवमैंट’ (भारत छोड़ो आंदोलन) आरंभ करने का निर्णय लिया।
पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी, जो उन दिनों लाहौर कांग्रेस के अध्यक्ष थे, अपने चंद साथियों के साथ उसमें भाग लेने के लिए ब बई गए थे। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की 79वीं वर्षगांठ पर यहां मैं पूज्य पिता जी द्वारा इसी महान दिन की याद में लिखित ‘पंजाब केसरी’ में 9 अगस्त, 1981 को प्रकाशित संपादकीय प्रस्तुत कर रहा हूं : 

‘एक भूली हुई सालगिरह’
‘‘हम 15 अगस्त के दिन को बहुत महत्व देते हैं क्योंकि उसी दिन हमारा देश स्वाधीन हुआ था, परंतु जिस दिन के कारण यह देश आजाद हुआ उसे हम भूल चुके हैं, अत: हमें 9 अगस्त की सालगिरह अवश्य मनानी चाहिए।

‘‘9 अगस्त, 1942 को मैं भी उस समय ब बई में ही था जब महात्मा गांधी ने चौपाटी के मैदान में लाखों लोगों के सामने अ.भा. कांग्रेस कमेटी द्वारा पारित वह प्रस्ताव पढ़ा जिसमें कहा गया था कि अंग्रेजो भारत छोड़ो अन्यथा हम शांतिपूर्ण सत्याग्रह से आपको भारत छोडऩे पर विवश कर देंगे।
‘‘अंग्रेज को जब इस प्रस्ताव का पता चला तो उसने उसी समय तमाम प्रदेशों के गवर्नरों को हिदायत दी कि कांग्रेस के जितने भी वर्कर व नेता उनके प्रदेश में हैं, उन सबको 9 या 10 अगस्त को जेलों में डाल दिया जाए। 

‘‘हम अभी ब बई में ही थे कि 10 अगस्त को प्रात: 4 बजे महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। सरदार पटेल उस दिन गिरफ्तार नहीं हो सके क्योंकि वह अपने मकान पर न सोकर कहीं और सोए थे।

‘‘मैं, पं. श्री राम शर्मा व हरियाणा के एक भूतपूर्व मंत्री उस दिन इकट्ठे थे। हमें गुप्त रूप से पता लगा कि सरदार पटेल अमुक स्थान पर हैं। अत: हम वहां पहुंचे और उनसे अगला कार्यक्रम मांगा। उन्होंने छपा हुआ कार्यक्रम हमें दे दिया। हमारे साथ उस समय लाहौर कांग्रेस के खजांची स्वर्गीय सेठ बिहारी लाल भी थे। हम चारों उस कार्यक्रम को लेकर पहले दिल्ली पहुंचे।
‘‘पं. श्रीराम शर्मा दिल्ली से पहले ही एक स्टेशन पर उतर गए। मैं व बिहारी लाल दिल्ली पहुंचे और घंटाघर के निकट स्वर्गीय पं. मंगल दास के भाई साधु राम के घर ठहरे। वहां उस समय गोली चल रही थी। घबरा कर हमने यही फैसला किया कि उनके भाई को साथ लेकर लाहौर पहुंच जाएं। 

‘‘लाहौर पहुंचने पर पुलिस ने हमें स्टेशन पर ही दबोच कर कोतवाली में बंद कर दिया। पुलिस का याल था कि हम कुछ हिदायतें अपने साथ लाए होंगे मगर हिदायतें तो हमने स्वर्गीय मंगल दास के भाई को दे रखी थीं और उनसे कहा था कि यदि हम गिर तार हो जाएं तो आप हमारे घर जाकर ये हिदायतें रमेश चंद्र को दे दें, या दो-तीन नाम उन्हें और बताए थे, उन्हें दे दें। ‘‘सेठ बिहारी लाल को तो पुलिस ने उस समय छोड़ दिया पर मुझे बड़ी कोतवाली में ले गए और अगले दिन शाहपुर जेल में पहुंचा दिया जहां महाशय कृष्ण सहित पंजाब के बड़े-बड़े नेता नजरबंद थे। 

‘‘तब सारे भारतवर्ष में लगभग 1 लाख कांग्रेसी वर्कर व नेता कैद किए गए थे। सही अर्थों में यही दिन देश की आजादी का कारण बना। इस आंदोलन में देशवासियों को दिए गए नारे ने अंग्रेजों की जड़ें भारत से हिलाकर रख दीं और जो लोग समझते थे कि अंग्रेजों को भारत से कोई हिला नहीं सकता, वे भी यह समझने लगे कि अंग्रेज अब भारत में टिक नहीं सकते।
‘‘1942 की घटनाओं से घबराकर ही अंग्रेज अंतत: भारत छोडऩे पर विवश हुए। यही कारण है कि महात्मा गांधी, श्री जय प्रकाश नारायण और अन्य अनेक बड़े नेता जिन्होंने अंग्रेजों से किसी भी प्रकार की सौदेबाजी करने से इंकार कर दिया था, कभी भी 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस नहीं मानते थे बल्कि वे 9 अगस्त को ही सही अर्थों में स्वाधीनता दिवस का दर्जा देते थे। 

‘‘उसी दिन भारत में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध पूरी शक्ति से अंतिम युद्ध आरंभ हुआ था जिसने यह बात सिद्ध कर दी कि अब बर्तानवी शासन के दिन भारत में गिनती के ही रह गए हैं।
‘‘9 अगस्त के आंदोलन का महत्व इस बात से भी आंका जा सकता है कि अनेक उच्च पदासीन भारतीय अधिकारियों, जिन्हें अंग्रेज अपना दायां हाथ समझता था, ने इस आंदोलन में त्यागपत्र दे दिया था। 

‘‘इसके साथ ही भारतीय जल सेना में हुए विद्रोह ने भी अंग्रेज के पांव तले से जमीन खिसका दी थी। उधर जो गतिविधियां आजाद ङ्क्षहद फौज की रहीं, उन्होंने अंग्रेज की रही-सही कमर भी तोड़ कर रख दी।
‘‘मैं बड़े आदरपूर्वक भारत सरकार से भी और इस देश की जनता से भी अनुरोध करूंगा कि वे 9 अगस्त के दिन को पूरी धूमधाम के साथ उसी तरह मनाया करें जिस तरह 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन धूमधाम से मनाए जाते हैं क्योंकि वास्तव में यही वह दिन है जिस दिन अंग्रेजी शासन के विरुद्ध अंतिम युद्ध का बिगुल इस देश के लोगों ने बजाया था। —जगत नारायण’’ 

आज जहां हम अपने गौरवपूर्ण इतिहास को भूलते जा रहे हैं, पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी के उद्गार आज भी उतने ही सही हैं जितने तब थे क्योंकि किसी भी देश का गौरवपूर्ण अतीत ही उसके उज्ज्वल भविष्य की नींव बनाता है अत: उसे भुलाना उचित नहीं है। —विजय कुमार  


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