...जब देवी लाल ने प्रधानमंत्री पद ठुकरा दिया

Monday, Sep 25, 2017 - 01:13 AM (IST)

उनका जन्म 25 सितम्बर, 1914 को गांव तेजाखेड़ा तहसील मंडी डबवाली, जिला हिसार (अब जिला सिरसा) में माता शुगना देवी व पिता चौधरी लेख राम सिहाग के घर हुआ। उनके बड़े भाई का नाम साहब राम सिहाग था जिन्होंने हमेशा उनका साथ दिया। 

उन्होंने अपनी आठवीं कक्षा की पढ़ाई डी.सी. माडल स्कूल फिरोजपुर से की। इसके उपरांत राजकीय उच्च विद्यालय मंडी डबवाली में दाखिल हो गए। शुरू से उनकी रुचि पहलवानी में थी और उन्होंने हमेशा पहलवानी के अखाड़ों में प्रसिद्ध पहलवानों को शिकस्त दी। उनके पिता के पास चौटाला और तेजाखेड़ा में 2750 बीघा जमीन थी परन्तु उन्होंने खेतीबाड़ी करवाने की बजाय देश भक्ति में ज्यादा ध्यान दिया और आजादी की जंग में कूद पड़े। 

पहली बार उनको 8 अक्तूबर, 1930 को हिसार की जेल में बंद कर दिया गया क्योंकि उनकी सरगर्मियां अंग्रेज सरकार बर्दाश्त नहीं कर सकी। फिर 1932 में दिल्ली जेल भेजे गए। वह 1956 में पहली बार पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए। इसके उपरांत 1958 में सिरसा विधानसभा से चुनाव जीत गए। 1956 में उनकी गतिविधियों को मद्देनजर रखते हुए उन्हें पंजाब प्रदेश कांग्रेस का प्रधान बना दिया गया। लगातार 39 साल कांग्रेस में रह कर उन्होंने देश के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई परन्तु 1971 में उनके कुछ कांग्रेसी नेताओं के साथ मतभेद हो गए और उन्होंने कांग्रेस को सदा के लिए अलविदा कह दिया। उन्होंने 1974 में सिरसा जिले के रोड़ी विधानसभा हलका का उपचुनाव चौधरी इंद्राज सिंह बैनीवाल जोकि तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी बंसी लाल के नजदीकी रिश्तेदार थे, के खिलाफ लड़ा और लगभग 18 हजार मतों से जीत प्राप्त की। 

फिर 1975 में उस समय की प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र का गला दबाते हुए पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया। इसके साथ ही चौधरी देवी को गिरफ्तार कर लिया गया और वह लगातार 19 माह हिसार जेल और महेन्द्रगढ़ किले में कैद रखे गए। 1977 में आम चुनावों में उन्होंने बड़ी जीत हासिल करते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी प्राप्त की। वह ताउम्र संघर्षशील रहे, हर बार गरीब लोगों, किसानों, दुकानदारों, मजदूरों और छोटे कर्मचारियों के हकों के लिए लड़ते रहे। इसके उपरांत वह दोबारा 1987 में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। 1989 में जब भारत में लोकसभा के आम चुनाव हुए तो लोकसभा हलका सीकर (राजस्थान) और हरियाणा के लोकसभा हलके रोहतक से भारी जीत हासिल की।

उनको लोकसभा में सभी सांसदों ने सर्वसम्मति से अपना नेता चुन लिया। अगर वह चाहते तो प्रधानमंत्री के पद की शपथ ले सकते थे लेकिन उन्होंने त्याग की भावना दिखाते हुए प्रधानमंत्री के पद का ताज अपने सिर से उतार कर श्री वी.पी. सिंह के सिर पर रख दिया। फिर वह 19 अक्तूबर, 1989 को भारत के उपप्रधानमंत्री बन गए और इस पद पर वह 21 जून, 1991 तक विराजमान रहे। सभी देशवासी उनको प्यार से ताऊ देवी लाल कह कर बुलाते थे और लोगों ने उन्हें शेर-ए-हरियाणा का खिताब भी दिया। उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगाया और 86 वर्ष की आयु में 6 अप्रैल, 2001 को इस संसार को अलविदा कह गए।

Advertising