कश्मीर घाटी में जो कुछ भारत के विरुद्ध हो रहा, इसे जानने का अधिकार तो लोगों को है
punjabkesari.in Monday, Nov 10, 2025 - 05:33 AM (IST)
भारत के अभिन्न हिस्सों में वर्षों से चली आ रही मारधाड़ की सच्चाई जानने का अधिकार तो जनता को होना चाहिए। वहां तो अनंत काल से अमावस्या ही अमावस्या है। ‘कश्मीर घाटी’ वर्षों से आग की लपटों में है, परन्तु देश के अन्य राज्यों में कश्मीर घाटी के प्रति मूकता का भाव क्यों? कश्मीर से कन्या कुमारी तक अपनी ही तो मातृभूमि है। फिर कश्मीर घाटी के लिए यह वितृष्णा क्यों? कश्मीर घाटी का मुसलमान तो ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ बोलता चला आ रहा है? ‘कश्मीर घाटी’ में वर्षों से रिसते जख्मों पर कौन मरहम लगाएगा? क्यों वहां से कश्मीरी पंडितों को निष्कासित किया गया? क्यों ‘कश्मीर घाटी’ का हिंदू अपने ही घर में बेघर हो गया? भारत भूमि तो सभी धर्मों के लिए एक विस्तृत भूखंड है। ‘कश्मीर घाटी’ को क्यों इस्लामिक राज्य बनाया जा रहा है? 1947 के भारत विभाजन के बाद भी ‘कश्मीर घाटी’ क्यों स्वाभाविक रूप से हिंदोस्तान से न जुड़ सकी है? जिन्ना को हर हाल में पाकिस्तान बनाना था, बना लिया, फिर ‘कश्मीर घाटी’ में अराजकता क्यों?
यह जानना तो भारतीय जनता का अधिकार है। बार-बार यही ‘अरण्य रोदन’ कि अब्दुल्ला परिवार कश्मीर घाटी की शांति का दुश्मन है। यदि अब्दुल्ला परिवार है तो उससे फैसलाकुन बात करो। आखिर पी.डी.पी. की मुफ्ती महबूबा को भी तो लाखों मतभेद होते हुए भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य का मुख्यमंत्री बनाया ही था? महबूबा से तो अब्दुल्ला परिवार थोड़ा सॉफ्ट है। राजनीति में आज जो दुश्मन है, कल मित्र भी बन जाएगा। राजनीति कोई ठहरा तालाब नहीं बल्कि राजनीति तो एक बहता दरिया है। भारत के राजनेता विचार करें।
कश्मीर तो भारत का एक अभिन्न अंग है। उसे सदा के लिए ‘अनसुलझा मसला’ नहीं रहने देना चाहिए। आज तक देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल को हम कश्मीर समस्या के लिए कोसते चले आ रहे हैं जबकि पंडित नेहरू को तो हमने 1964 में अलविदा कह दिया था। सन 1965, सन 1971 और सन 1999 तक हमने तीन युद्ध तो लड़ लिए। अब ‘आप्रेशन सिंदूर’ भी हमने कर लिया । ‘कश्मीर घाटी’ को स्थायी अमावस्या से बाहर नहीं निकाल सके। पंडित नेहरू के बाद तो केंद्र में बीसियों सरकारें भारत के लोगों ने बना लीं। इतने पर भी ‘कश्मीर समस्या’ तपती ही रही।
पुलवामा और पहलगाम की जघन्य घटनाओं ने तो विश्व राजनीति को हिला कर रख दिया। पाकिस्तान की पार्लियामैंट में मैंने स्पीकर से लेकर वहां के सभी सांसदों को सुना। सब के सब यही बोल रहे थे कि सारी घटनाएं भारत स्वयं करवा रहा है ताकि दुनिया आतंकवाद के नाम पर पाकिस्तान को बदनाम किया जा सके और जब भी भारत की केंद्र सरकार को कोई झटका लगता है तो वह पाकिस्तान की ओर मुंह कर लेता है। पाकिस्तान कहता है कि वह खुद आतंकवाद से लड़ रहा है परन्तु यह सब कहने से पहले पाकिस्तान यह क्यों दुनिया के सामने स्वीकार नहीं करता कि दुनिया का सबसे खतरनाक और सबसे बड़ा आतंकवादी ‘ओसामा बिन लादेन’ पाकिस्तान के शहर अलावलपुर में अपना ‘हैड आफिस’ बनाए बैठा था? ऐसे में पाकिस्तान के राजनेताओं पर विश्वास कौन करेगा?
1980 से 2025 तक के कालखंड में 25,000 कीमती जानें आतंकवाद का शिकार हो चुकी हैं। राजनेताओं से लेकर सैन्य अधिकारियों और आम आदमी से लेकर पुलिस के जवानों तक, नौजवानों से लेकर बच्चों और बूढ़ों तक को इस आतंकवाद ने नहीं छोड़ा। ‘कश्मीर घाटी’ के अपने लोग ही आतंकवादियों को पनाह दे रहे हैं, उन्हें रास्ता बता रहे हैं। स्थानीय जनता ही आतंकवादियों के लिए ‘रेकी’ कर रही है। उन्हें खाने-पीने के लिए रसद पहुंचा रही है। कोई स्वयं विचार करे कि विभीषण के रहते क्या लंका बच सकती है? इन चीजों का उत्तर तो सरकार को ही देना है और ‘कश्मीर घाटी’ में क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है, यह जानना तो भारत के लोगों का अधिकार है।
सरकार न जवाब दे परन्तु इस पर कोई ‘सफेद यंत्र’ या ‘जांच आयोग’ तो बिठा सकती है? अब तो सरकार ने धारा 370 भी हटा दी है। इसी धारा पर 1954 से विरोध होते रहे हैं न? अब सरकार उत्तर दे कि ङ्क्षहदुओं के धार्मिक स्थान क्यों सुरक्षित नहीं? जम्मू में वैष्णो माता के मंदिर को लगातार खतरा जारी है। श्रीनगर में कश्मीरी पंडितों की अराध्य देवी ‘खीर भवानी’ का मंदिर हमेशा खतरे में रहा है। कश्मीरी पंडितों की दुकानों, मकानों, जायदादों, खेत-खलिहानों पर मुसलमान कब्जा जमाए बैठे हैं। कश्मीरी पंडितों को जबरदस्ती घाटी से निकाल दिया है। ‘कश्मीर घाटी’ में पाकिस्तानी झंडे लोगों ने अपने घरों पर लगा रखे हैं। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है तो कश्मीरी पंडितों पर जुल्म क्यों? अत: यह जनता को जानने का अधिकार है कि कश्मीर घाटी में क्या हुआ, क्यों हुआ और नित्य बिना युद्ध के फौज के जवानों की लाशें तिरंगे में लिपटी उनके घर पहुंच रही हैं क्यों?-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)
