तुमने क्या खोया, हमने क्या पाया

Friday, Dec 09, 2022 - 05:10 AM (IST)

दिल्ली, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हाल के चुनाव परिणामों में क्या संदेश मिलता है? पहला-हिमाचल में अपेक्षित जीत के बाद यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि कांग्रेस का भविष्य अधर में है। दूसरा- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता जनता के बीच अक्षुण्ण है। 

गुजरात में बीते 60 वर्षों के इतिहास में प्रचंड जीत के साथ भाजपा का दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में पराजित होने के बाद भी दमदार प्रदर्शन करना-इस तथ्य को रेखांकित करता है। तीसरा-गुजरात में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बावजूद अधिकतम सीटों पर जमानतें जब्त कराने वाली आम आदमी पार्टी (आप) के लिए यह कहना उपयुक्त है कि उसका जलवा कम हो रहा है। 

2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव की तुलना में दिल्ली नगर निगम के चुनाव में ‘आप’ को 11 प्रतिशत मतों का नुक्सान हुआ है। हिमाचल प्रदेश में तमाम वायदों-दावों के बाद भी ‘आप’ एक भी सीट जीतने में विफल रही है, तो गुजरात में भारी-भरकम प्रचार करने, अपने शीर्ष नेताओं (अरविंद केजरीवाल सहित) द्वारा प्रचंड जीत का दावा करने और स्वयं को भाजपा का विकल्प घोषित करने के बावजूद ‘आप’ को मात्र 5 सीटें प्राप्त हुई हैं।

आखिर कांग्रेस की स्थिति डावांडोल क्यों है? गुजरात और दिल्ली में पार्टी का सूपड़ा साफ होना स्थापित करता है कि जनता में राहुल गांधी और उनके द्वारा प्रतिपादित विमर्श स्वीकार्य नहीं हैं। राहुल अपनी पार्टी में जान फूंकने हेतु गत 7 सितंबर से ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर हैं। इस दौरान उन्होंने दो विवादास्पद वक्तव्य दिए, जो समाज में विघटन पैदा करते हैं। इसमें पहला वक्तव्य राहुल ने महाराष्ट्र में दिया, जो इतिहास को झुठलाता हुआ और अपने कई पूर्ववर्ती नेताओं (दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सहित) द्वारा स्थापित परंपरा को नकारते हुए वीर सावरकर के लिए अपमानजनक शब्दों के उपयोग से संबंधित है।

ऐसा ही दूसरा विवादग्रस्त वक्तव्य राहुल ने गुजरात की चुनावी सभा में दिया, जिसमें उन्होंने आदिवासियों को देश का ‘पहला मालिक’ बताकर शेष को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से बाहरी घोषित करने की कोशिश की। यह दोनों बयान कांग्रेस की मूल गांधीवादी विचारधारा और पटेल-नेताजी प्रदत्त राष्ट्रवादी चिंतन के उलट हैं। वास्तव में, यह शब्दावली विशुद्ध रूप से वामपंथियों की है, जो अब अप्रासंगिक है। यह अलग बात है कि कांग्रेस ने वामपंथी चिंतन को 50 वर्ष पहले आऊटसोर्स कर लिया था, जो अब उसके लिए कैंसर का फोड़ा बन चुका है। 

स्वतंत्रता मिलने के 75 वर्ष बाद जहां देश में मूल वामपंथी दल— सी.पी.आई. और सी.पी.आई.(एम) आदि अपनी भारत-हिंदू विरोधी विचारधारा के कारण आज केवल दक्षिण में केरल तक सिमटकर रह गए हैं, वहां उनके अस्वीकृत दर्शन की घटिया कार्बन-कॉपी बनकर कांग्रेस का नेतृत्व जनमानस में अपने लिए स्थान बनाने का स्वप्न देख रहा है। सच तो यह है कि मनगढ़ंत-फर्जी ‘हिंदू/भगवा आतंकवाद’ सिद्धांत को जन्म देने, बहुलतावाद के प्रतीक ङ्क्षहदुत्व का दानवीकरण करने, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को काल्पनिक बताने और भारत विरोधी ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ से सहानुभूति रखने वाली कांग्रेस अपनी पुरानी गलतियों से सबक सीखने को तैयार नहीं है। क्या कालबाह्य दवा रूपी वामपंथी ङ्क्षचतन की खुराक लेकर वर्षों से अस्वस्थ कांग्रेस अधिक समय तक जीवित रह सकती है? 

कांग्रेस अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा-आर.एस.एस. को केंद्र में रखकर अपने ‘आऊटसोर्स वामपंथी चिंतन’ के अनुरूप राजनीति करती है। यह स्थिति तब है, जब कांग्रेस को सर्वाधिक खतरा भाजपा से नहीं है- क्योंकि दोनों प्रतिद्वंद्वी दलों का जनाधार पारंपरिक रूप से अलग-अलग है। कांग्रेस अपने प्रचारों में यदाकदा ही ‘आप’ और उसकी नीतियों (मुफ्तखोरी-लोकलुभावन सहित) की आलोचना करती है, जो वास्तव में उसके ही जनसमर्थन वर्ग में खुली सेंध लगा रही है।  गुजरात में ‘आप’ को लगभग 13 प्रतिशत मत प्राप्त हुए, जबकि 2017 के चुनाव की तुलना में कांग्रेस का मत प्रतिशत 41  से घटकर लगभग 27 प्रतिशत पर पहुंच गया। 

इसका अर्थ यह हुआ कि कांग्रेस को 14 प्रतिशत का नुक्सान पहुंचा है। अनुमान लगाना कठिन नहीं कि यह वोट किसे स्थानांतरित हुए।जिस प्रदेश के मुख्य और बड़े चुनावों में ‘आप’ का सीधा मुकाबला सत्तारूढ़ भाजपा से है, वहां उसकी बिजली-पानी मुफ्त सहित राजकीय बोझ बढ़ाने वाली लोकलुभावन वायदों की दाल गल नहीं रही। इस वर्ष उत्तराखंड के बाद अब गुजरात और हिमाचल में उसका निराशाजनक प्रदर्शन- इसका प्रमाण है। यह ठीक है कि दिल्ली नगर निगम चुनाव में ‘आप’ 15 वर्षों से सत्तारूढ़ भाजपा को पराजित करने में सफल रही। दिल्ली में ‘आप’ को 42 प्रतिशत मत मिले, जिसमें उसे पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस-निर्दलीय प्रत्याशियों से मोहभंग का लाभ मिला, वहीं भाजपा का वोट इसी अवधि में तीन प्रतिशत बढ़कर 39 प्रतिशत पहुंच गया। 

यह ठीक है कि गुजरात में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अद्वितीय लोकप्रियता, सशक्त संगठन, पार्टी अनुशासन, केंद्रीय-राज्य स्तर पर भ्रष्टाचारमुक्त जनहित योजनाओं के सफल क्रियान्वन और विकासपूर्ण आर्थिक नीति के बल पर रिकॉडतोड़ विजय प्राप्त की है। यदि भाजपा को आगामी चुनावों में ऐसे ही प्रदर्शन को दोहराना है, तो उसे राज्यों में व्याप्त आंतरिक गुटबाजी को नियंत्रित करके पार्टी संगठन को फिर से मजबूत करना होगा।-बलबीर पुंज 
 

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