क्या होगी यू.पी. में कांग्रेस की रणनीति

Monday, Jul 23, 2018 - 04:12 AM (IST)

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार सपा-बसपा गठबंधन कांग्रेस पार्टी को उत्तर प्रदेश में केवल 8 सीटें देना चाहता है और यह भी चाहता है कि बदले में कांग्रेस सपा-बसपा को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों में कुछ सीटें दे तथा आगामी लोकसभा चुनाव में प्रत्येक पार्टी को इन राज्यों में कम से कम दो संसदीय सीटें दे। 

उधर कांग्रेस पार्टी के सूत्रों का कहना है कि पार्टी इस आधार पर सपा-बसपा के साथ गठबंधन करने के मूड में नहीं है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस दो विकल्पों पर विचार कर रही है। पहला, वह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों तथा लोकसभा चुनावों के लिए बसपा से गठबंधन करना चाहती है तथा उत्तर प्रदेश में भी 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए गठबंधन करना चाहती है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 50 सीटें बसपा को देने का इरादा रखती है तथा बाकी 30 सीटें कांग्रेस के पास रहेंगी, जिनमें से 7 सीटें वह राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) को पेश करना चाहती है। दूसरे, कांग्रेस पार्टी में एक तबके का यह भी मत है कि उन्हें उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव अकेले लडऩा चाहिए। इस तबके का मानना है कि 30 से 40 सीटों पर पार्टी मजबूत है लेकिन वे यहां सभी 80 सीटों पर चुनाव लडऩा चाहते हैं।

पश्चिम बंगाल की राजनीति
पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में हुई प्रधानमंत्री की रैली काफी सफल रही, जिसमें हुई एक दुर्घटना में 90 लोग घायल हो गए थे। अब प्रदेश भाजपा नेतृत्व का यह आरोप है कि इस घटना में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं का हाथ रहा है और केन्द्र सरकार इस घटना की जांच कर तृणमूल कांग्रेस को बेनकाब करे। इस मामले की जांच के लिए केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर जांच समितियों का गठन किया है। 

इसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में 25वें शहीदी दिवस का आयोजन किया, जिसमें पूर्व भाजपा सांसद चंदन मित्रा, सी.पी.आई. (एम) के पूर्व सांसद मोइनुल हसन तथा कांग्रेस के 4 विधानसभा सदस्य तृणमूल में शामिल हो गए। इस रैली के दौरान ममता बनर्जी ने दावा किया कि वह प्रदेश में सभी 42 सीटें जीत लेंगी, जबकि भाजपा ने 42 में से 22 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। हालांकि भाजपा के लिए 22 जीतें जीतना बहुत मुश्किल है लेकिन यह सही है कि भाजपा ने प्रदेश में अपना जनाधार काफी बढ़ा लिया है और वह कांग्रेस तथा वाम दलों से आगे निकल चुकी है। बहरहाल शहीदी दिवस पर बड़ी रैली का आयोजन कर ममता बनर्जी ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश में उनका मजबूत जनाधार है। 

लालू की चिंता
सदाबहार राजनेता माने जाने वाले लालू प्रसाद यादव इन दिनों मानसिक, शारीरिक व राजनीतिक तौर पर कठिन दौर से गुजर रहे हैं। इस समय वह काफी बीमार हैं और अपना उपचार करवा रहे हैं। लालू को यह विश्वास था कि उनके दोनों बेटे उन्हें इस कठिन समय से बाहर निकालेंगे और पार्टी को मजबूत बनाने का कार्य करेंगे ताकि इसके दम पर वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला कर सकें लेकिन उनके दोनों बेटों के बीच कड़वाहट देखी जा रही है। लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव इन दिनों राज्य का दौरा कर रहे हैं, जिसमें वह पार्टी कार्यकत्र्ताओं व आम लोगों से मिल रहे हैं। 

उधर लालू के छोटे बेटे तेजस्वी यादव 2 सप्ताह से प्रदेश से बाहर हैं और बिहार में भाजपा गठबंधन का मुकाबला करने के लिए विभिन्न दलों के नेताओं से मिलकर मजबूत गठबंधन बनाने के लिए प्रयासरत हैं। लालू इस सारे घटनाक्रम से ङ्क्षचतित हैं और इस बात का प्रयास कर रहे हैं कि उनके दोनों बेटे आगामी लोकसभा चुनाव एकजुट होकर लड़ें तथा कांग्रेस के साथ उनके गठबंधन में अधिक से अधिक पाॢटयों को जोडऩे का प्रयास करें। 

उत्तराखंड कांग्रेस में अंदर की बात
उत्तराखंड कांग्रेस में चली लम्बी अंतर्कलह के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हरीश रावत को असम का प्रभारी महासचिव बना दिया है तथा उन्हें कांग्रेस कार्य समिति में भी शामिल कर लिया गया है। इससे उत्तराखंड में कांग्रेस के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं को खुशी और राहत मिली है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और उत्तराखंड विधानसभा में कांग्रेस पार्टी की नेता इंदिरा हृदयेश के साथ हरीश रावत के संबंध अच्छे नहीं रहे हैं। इन लोगों में अंतर्कलह उस समय चरम पर थी जब प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भाजपा सरकार के खिलाफ धरने और विरोध रैलियां आयोजित कर रहे थे, जबकि हरीश रावत मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के साथ मैंगो पार्टी के मजे ले रहे थे। अब हरीश रावत असम में व्यस्त रहेंगे जिससे प्रीतम सिंह और इंदिरा हृदयेश को राहत मिलेगी तथा इससे कांग्रेस पार्टी को भी फायदा होगा क्योंकि प्रदेश में ठाकुरों की संख्या अधिक है। 

राजस्थान भाजपा में अंतर्कलह चरम पर पहुंची
प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही विधायकों और मंत्रियों में अंतर्कलह चरम पर पहुंच गई है। पहले यह अंतर्कलह कार्यकत्र्ताओं और नेताओं के बीच रही लेकिन आजकल स्थानांतरण और पोसिं्टग की वजह बनी हुई है। मंत्रीगण अपनी मर्जी के स्थानांतरण और पोस्टिंग करवाने के लिए खुले तौर पर एक-दूसरे से भिड़ रहे हैं। यह अंतर्कलह उस समय अपने चरम पर पहुंच गई जब दो मंत्री एक-दूसरे से हाथापाई पर उतर आए। यह वाकया पेश आया राज्य के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी और स्वास्थ्य मंत्री बंसीधर बाजिया के बीच। इस मामले में बाजिया उनकी मर्जी का स्थानांतरण न होने पर स्वयं देवनानी के घर विरोध व्यक्त करने गए थे। इस अंतर्कलह के बारे में पार्टी हाईकमान को सूचित किया गया। 

स्थानांतरण और पोसिं्टग के मामले पर ही एक अन्य घटना पार्टी कार्यालय में स्वास्थ्य मंत्री कालीचरण और आदिवासी संसदीय सचिव भीमा भाई के बीच पेश आई। भीमा भाई ने स्वास्थ्य मंत्री को धमकी दी है और उनके साथ काफी संख्या में पार्टी कार्यकत्र्ता भी थे क्योंकि यह चुनावी वर्ष है और हर नेता यह चाहता है कि उनके जिलों तथा आसपास के क्षेत्रों में उसकी मर्जी के प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त हों परन्तु चुनावी वर्ष की स्थिति को देखते हुए विभिन्न विभागों के सचिव सभी आदेशों का पालन नहीं कर रहे। इस बीच भाजपा के प्रदेश संगठन सचिव चंद्रशेखर ने सभी मंत्रियों की बैठक बुलाई तथा उन्हें उचित व्यवहार करने और छोटे-मोटे मसलों पर आपसी लड़ाई से बचने की सलाह दी है।-राहिल नोरा चोपड़ा
             

Pardeep

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