आप कौन से ‘मुद्दों’ पर लिखना चाहोगे

punjabkesari.in Monday, Jul 06, 2020 - 02:26 AM (IST)

एक लेखक के लिए एक बेहद मुश्किल कार्य है कि इस सप्ताह किस आपदा के बारे में वह लिखना चाहेगा। यहां पर कई मुद्दे हैं। हम सबसे पहले स्वास्थ्य से शुरू करते हैं। शुक्रवार को 22000 भारतीय लोग कोविड-19 के लिए पॉजिटिव पाए गए। हम 10 प्रतिशत वैश्विक मामले अब दर्ज कर रहे हैं तथा मामलों की गिनती के बारे में भारत तीसरा सबसे ऊंचा देश बन जाएगा। जून के अंत तक हमारे पास प्रतिदिन 50 हजार कोविड के मामले थे। इतनी ही गिनती अमरीका की रही है। वहां पर 1000 मौतें रोजाना हो रही थीं। अगस्त के अंत तक एक दिन में केसों की गिनती लाखों में हो सकती है। उस क्षण कितने डाक्टर कार्य के लिए अपना योगदान देंगे और कितने लोग पीड़ित होंगे यह अंदाजा लगाना मुश्किल है। 

सितम्बर-अक्तूबर की तो बात ही छोड़ दें। इस समय कोविड-19 के सबसे प्रभावित क्षेत्रों में दिल्ली, मुम्बई तथा चेन्नई हैं। हालांकि इन शहरों में बेहतर स्वास्थ्य सहूलियतें हैं। जब यह महामारी बिना किसी शहरी स्वास्थ्य  सेवाओं के तेजी से फैल रही होगी तब यह अंदाजा लगाना बेहद कठिन होगा। 

अब हम अर्थव्यवस्था की बात करते हैं। हमारे पास कुछ ऐसे ट्रैंड्ज आए हैं जिससे वर्तमान अर्थव्यवस्था की स्थिति का पता चलता है। ऐसा ही एक सूचक आटोमोबाइल सेल्ज में प्राप्त हुआ है क्योंकि प्रत्येक महीने के शुरू में निर्माण कम्पनियों ने अपने कुछ यूनिट बंद कर दिए थे। हम पिछले वर्ष से इसकी तुलना कर सकते हैं कि चीजों में किस तेजी से बदलाव आया।

जनवरी 2020 में पैसेंजर व्हीकल सेल्ज में 2.6 लाख से 2.8 लाख तक की गिरावट देखी गई। यह कोविड से पहले और लॉकडाऊन से 2 माह पूर्व की स्थिति है। कमर्शियल व्हीकल  सेल्ज जिसमें ट्रक तथा अन्य परिवहन तथा कार्गो व्हीकल आते हैं, जनवरी 2019 में 87000 यूनिट गिरे थे। इस वर्ष जनवरी तक 75,000 यूनिट गिरे हैं। 2 पहिया वाहनों की सेल भी 15 लाख से गिर कर 13 लाख तक पहुंच गई।मध्यमवर्ग, निचला मध्यम वर्ग तथा उद्योग में गिरावट देखी गई। फरवरी में कमर्शियल व्हीकल सेल 32 प्रतिशत गिरी जबकि पैसेंजर व्हीकल सेल 7 प्रतिशत तक गिरी। 

अप्रैल में शून्य सेल होने के बाद मई और जून में हम बहुत बड़ी गिरावट देखेंगे। पर्याप्त अवधि में दोनों माह नकारात्मक रहे। यहां पर कुछ ऐसा है जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को आघात पहुंचाया है और यह दर्द लॉकडाऊन से पहले शुरू हो चुका था। सरकार यह मानने को तैयार नहीं मगर आंकड़े स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। इस कारण सरकार के पास ऐसा कुछ भी नहीं जो इसे ठीक कर सके। यह पीड़ा निरंतर जारी रहेगी और हमारी अर्थव्यवस्था निरंतर चोट झेलती रहेगी। 

यद्यपि ये दोनों परेशानियां पर्याप्त नहीं थीं इस दौरान हमने 2 दशकों के सबसे बड़े रणनीतिक हमले को झेला। चीन हमें धोखा दे रहा है तथा लद्दाख के हिस्सों पर कब्जा कर रहा है जहां पर हम मार्च तक पैट्रोङ्क्षलग कर रहे थे। हम नहीं जानते कि चीन ऐसा क्यों कर रहा है और यह भी नहीं जानते कि आखिर वह चाहता क्या है? हमारे पास चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ (सी.डी.एस.) है जिनका मुख्य लक्ष्य कश्मीर में घुसपैठ पर केंन्द्रित हुआ है। उनका मानना है कि चीन के साथ लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) स्थिर है मगर सी.डी.एस. की धारणा गलत है। अब हम पाकिस्तान फ्रंट से चीनी क्षेत्रों की ओर अपने सुरक्षाबलों को आगे बढ़ा रहे हैं और इसके अलावा नए-नए हथियार भी खरीद रहे हैं। 

रणनीतिक मामलों के पर्यवेक्षक प्रवीण साहनी ने उन कारणों पर रिपोर्ट की है जिसके तहत चीन के साथ बातचीत समय ले रही है और आगे नहीं बढ़ पा रही। चीन चाहता है कि भारत उस क्षेत्र को मान ले जिस पर उनकी सेना ने कब्जा किया है। इसका मतलब यह है कि एल.ए.सी. से थोड़ा परे हट कर। बेशक हम ऐसी बात को मान्यता नहीं देंगे और न ही यह बात सही ढंग से विचारी जा सकती है क्योंकि प्रधानमंत्री ने कहा था कि कोई भी घुसपैठ नहीं हुई जबकि रक्षामंत्री और विदेश मंत्री ने माना कि चीन ने एल.ए.सी. की उल्लंघना की तथा वह हमारी ओर बढ़े।

प्रधानमंत्री मोदी की लद्दाख यात्रा उस असमंजस को सही करने की यात्रा थी। एक युद्ध में खड़े सेनापति द्वारा दिए गए भाषण की तरह मोदी यह यकीन दिलाना चाहते थे कि खतरा वास्तविक है तथा चीन को वापस अपने क्षेत्रों में लौटना होगा। हालांकि उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया मगर यह जल्द ही सामने आ जाएगा। अपने भारतीय क्षेत्रों को चीन से खाली करवाने के लिए हमें एक लम्बा रास्ता तय करना होगा। 

यह कहना सही होगा कि हमने वास्तविकता को स्वीकार करने के लिए बहुत सारा समय बेकार गंवा दिया है। फिर चाहे यह प्रधानमंत्री की छवि हो या फिर शॄमदगी हो। हम विश्व से समर्थन हासिल कर सकते थे, यदि हमने खुले तथा स्पष्ट तौर पर यह कह दिया होता कि चीन एल.ए.सी. की उल्लंघना कर रहा है। मगर ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। अब जले हुए दूध के लिए किसको रोना है। हमारे पास अभी भी मौका है जब मोदी जी-7 के लिए जाएंगे मगर यह स्पष्ट नहीं कि चीन उस समय तक अपनी घुसपैठ को और मजबूत करेगा या नहीं। 

इस समय हमारे यहां कोरोना महामारी फूट चुकी है, आर्थिक मंदी है और भारतीय इतिहास में सबसे बड़ी बेरोजगारी देखी जा रही है। इन सब बातों के अलावा एक शक्तिशाली दुश्मन भी है जिसकी विस्तारवादी नीतियों को हम भांप नहीं पाए। इस वर्ष की शुरूआत पर मैंने कहा था कि हमारे राष्ट्र की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि सत्ताधारी पार्टी भारतीयों को बांटने की कोशिश में है। जितने लम्बे समय तक यह सत्ता में रहेगी हमारी ङ्क्षचताएं बढ़ेंगी। मगर इस समय इस मुश्किल की घड़ी में इन सब बातों से पार पाने के लिए हमें एकजुट होने की आवश्यकता है।-आकार पटेल


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