देश की वास्तविक तस्वीर क्या है

Wednesday, Apr 14, 2021 - 04:14 AM (IST)

कोई व्यक्ति एक कितना बड़ा गुनाह यह कहकर कर रहा है कि देश शानदार दौर से गुजर रहा है। उससे बड़ा अपराध प्रत्येक उस व्यक्ति या संस्था का भी गिना जाएगा जो आम जनता की दुर्दशा देखकर चुप्पी साधे बैठा है। पिछले कुछ वर्षों से प्रचार तंत्र के जोर से सत्ताधारी लोग देश के हर कोने में रहते लोगों को वास्तविक दुनिया से आंखें मूंद कर इस तरह का प्रभाव देने का प्रयास कर रहे हैं कि आने वाले भविष्य में हमारा देश आर्थिक क्षेत्र में दुनिया की महाशक्ति बन जाएगा। 

लोगों की सभी मूल जरूरतें पूरी हो रही हैं, सब ओर खुशहाली के फूल झूल रहे हैं और सब वर्गों और धर्मों के लोगों संग बराबरी और सम्मानजनक व्यवहार किया जा रहा है। जो भी व्यक्ति इस प्रचार तंत्र के तथ्यों का खंडन कर वास्तविकता सामने लाने की कोशिश करता है तो उसे विकास विरोधी, विदेशी आतंकवाद विचारधारा का समर्थक, देशद्रोही और विदेशी ताकतों का समर्थक कहकर उसकी आलोचना की जाती है। यदि देश की वास्तविक तस्वीर वही है जो प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्रीगण पेश कर रहे हैं, तो निश्चय ही प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह एक बड़ी ‘खुशखबरी’ से कम नहीं। अफसोस की बात है कि ऐसा कुछ भी नहीं है और यह वास्तविकता से कोसों दूर है। 

बेरोजगारी का दैत्य पल-पल खूंखार बनता जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था को जांचने वाली संस्था के अनुसार सितम्बर 2020 से फरवरी 2021 तक देश के भीतर बेरोजगारी की दर में औसतन वृद्धि 7.4 प्रतिशत की रही है। एक अन्य सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार 2017-18 के बीच भारत में बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत रही है जो पिछले 45 वर्षों में रिकार्ड वृद्धि है। 

पंजाब में पटवारी की 1152 रिक्तियों हेतु 2.33 लाख लोगों ने आवेदन किया। जिनमें से ज्यादातर पद के लिए वांछित योग्यता से अधिक पढ़े-लिखे थे। रोजगार के नए मौके पैदा ही नहीं हो रहे इसके विपरीत पुरानी नौकरियों पर बड़े कट लगाए जा रहे है। यदि देश के अंदर करोड़ों लोग बेरोजगार घूम रहे हैं और पेट भरने के लिए एक रोटी के लिए तरस रहे हैं तो इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उस देश में उथल-पुथल, लूटमार, डकैती, कत्ल तथा बलात्कार जैसे घिनौने अपराध के किस हद तक फैलने की सम्भावना बनी रहती है। कोरोना महामारी के दौर में पहले लॉकडाऊन के दिल दहला देने वाले अनुभव के बाद अब दूसरे लॉकडाऊन के भय के अंदर नौकरियां खोए जाने तथा भूखे मरने की हालत से बचने के लिए लाखों लोगों ने बड़े शहरों से घर वापसी शुरू कर दी है। 

पहले जैसे मोदी हल्के स्तर पर चुटकुले सुनने के बिना इस स्थिति से निपटने के लिए असरदायक योजना लाने का भरोसा नहीं दिला रहे। काम करने के घंटे कम कर नए हाथों को कार्य देने की जगह ड्यूटी 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दी गई है। इस तकनीक ने लाखों लोगों को घर में खाली बैठा दिया है। ऐसे लोगों के बारे में सोचने के लिए सरकार के पास समय ही नहीं। आम लोगों की मांग थी कि केवल सरकारी कर्मचारियों को नहीं बल्कि 60 साल की आयु से अधिक बुजुर्ग व्यक्तियों को गुजारे योग्य पैंशन मिलनी चाहिए ताकि वे बुढ़ापे में बेसहारा होकर तड़प-तड़प कर जिंदगी बसर करने के लिए मजबूर न हों। 

मगर अब तो केन्द्र सरकार ने देशभर के सरकारी कर्मचारियों की समस्त पैंशन ही बंद कर दी है जिन्होंने 2004 या उसके बाद सर्विस शुरू की थी। जिस यह वर्ग नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ तब उसे एहसास हुआ होगा कि पैंशन के बिना जिंदगी कैसे काटी जाती है? यदि रोजगार नहीं है तो कोई काम से खाली व्यक्ति खुद या अपने पारिवारिक सदस्य का लाखों रुपए लेने वाले महंगे अस्पतालों में इलाज कराने की हिम्मत कैसे जुटा सकता है। 

हजारों रुपए के बिजली बिल, महंगी खाद्य वस्तुएं, रिहायश और कपड़ों के खर्च एक बेकार या कम कमाने वाला परिवार इन्हें कैसे बर्दाश्त कर सकता है। इसका अंदाजा प्रधानमंत्री के भाषणों या सरकारी गुणगान करने वाले ‘गोदी मीडिया’ (टी.वी.) के प्रचार से नहीं लगाया जा सकता। प्रत्येक नागरिक को नि:शुल्क या फिर सस्ती स्वास्थ्य एवं शैक्षिक सहूलियतों और सामाजिक सुरक्षा देना सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी है जिसको उसने त्याग दिया है। कोविड के टीकाकरण की मुहिम के अंतर्गत यू.पी. के शामली में 3 औरतों को कोरोना का टीका लगाने के स्थान पर ‘रैबीज’ का टीका लगा दिया गया। सरकारी नीतियों के लिए ताली बजाने वाले लोग यह नहीं देख पा रहे कि ऐसे बड़े प्रचार के बावजूद देश के भीतर कोविड टीकाकरण के हजारों केन्द्र टीका न उपलब्ध होने के कारण बंद पड़े हैं। 

भ्रष्टाचार और पुलिस द्वारा प्रताडऩा का दौर पूरे यौवन पर है और पुलिस नेताओं का राजनीतिक गठजोड़ गैर-कानूनी ढंग से धन बटोर रहा है जिसका अंदाजा गत दिनों महाराष्ट्र तथा यू.पी. के अंदर घटी घटनाओं से लगाया जा सकता है। मोदी सरकार की ओर से 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का हवाई वादा क्या मायने रखता है जब 4 महीनों से अपनी मांगें मंगवाने के लिए हजारों किसान दिल्ली की सरहदों पर सर्दी-गर्मी का मुकाबला करते हुए धरने पर बैठे हैं।-मंगत राम पासला

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