अडवानी के ‘पहले राष्ट्र’ वाले बयान का क्या है अर्थ

Monday, Apr 08, 2019 - 04:03 AM (IST)

लाल कृष्ण अडवानी द्वारा अपने ब्लॉग के माध्यम से नरेन्द्र मोदी को भेजे गए संदेश के अर्थ को लेकर कुछ उलझन है। पूर्व उपप्रधान मंत्री तथा भाजपा के पूर्व अध्यक्ष ने गांधीनगर (जिसका उन्होंने 1991 के बाद से 6 बार प्रतिनिधित्व किया) की अपनी सुरक्षित सीट वर्तमान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा ले लेने के कुछ दिन बाद एक विदाई ब्लॉग लिखा। 

अडवानी ने मुख्य रूप से दो बातें कहीं। समाचारों की सुॢखयां उनके पहले बिन्दू से ली गईं। अडवानी ने लिखा कि ‘अपने जन्म से ही भाजपा ने कभी भी ऐसे लोगों, जो राजनीतिक रूप से असहमत हों, को अपना दुश्मन नहीं समझा, मगर केवल अपना विरोधी समझा।’ उन्होंने यह भी लिखा कि ‘भारतीय राष्ट्रवाद की हमारी धारणा में हमें कभी भी ऐसे लोगों को, जो राजनीतिक रूप से हमसे सहमत नहीं, ‘राष्ट्र विरोधी’ नहीं माना। पार्टी निजी के साथ-साथ राजनीतिक स्तर पर भी प्रत्येक नागरिक के चुनने की स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्ध रही है।’ 

बात कहने का समय
यह एक ऐसे समय पर कहा गया जब प्रधानमंत्री कांग्रेस अध्यक्ष पर हिन्दू बहुल सीटों से परे भागने का आरोप लगा रहे हैं और वित्त मंत्री ने कहा है कि कांग्रेस का घोषणा पत्र ‘टुकड़े-टुकड़े’ का प्रतिनिधित्व करता है और उसका उद्देश्य भारत को तोडऩा है। अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस के नेताओं को अफस्पा कानून को कमजोर करने का प्रस्ताव करने के लिए डूब मरना चाहिए। अत: जब अडवानी ने यह स्पष्ट किया कि उनके तथा अटल बिहारी वाजपेयी के अंतर्गत विपक्ष को लेकर मोदी के मुकाबले अधिक सहिष्णुता थी, स्पष्ट हो गया कि अडवानी ऐसी ही बातों की ओर इशारा कर रहे थे। क्या यह संदेश मोदी तक पहुंचा? लगता है नहीं। 

जिस दिन अडवानी ने ब्लॉग लिखा, उसी दिन मोदी ने यह कहते हुए ट्वीट किया कि ‘अडवानी जी ने भाजपा के सार का बिल्कुल सही आकलन किया, सर्वाधिक उल्लेखनीय ‘राष्ट्र पहले, उसके बाद पार्टी, अंत में खुद’ का। भाजपा कार्यकत्र्ताओं पर गर्व है और गर्व है कि अडवानी जी जैसे महान लोगों ने इसे मजबूत किया।’ वह ब्लॉग की सुर्खी और इसके दूसरे महत्वपूर्ण बिन्दू का हवाला दे रहे थे, जिसके बारे में अडवानी जी ने लिखा कि ‘मेरे जीवन का मार्गदर्शक नियम ‘राष्ट्र पहले, उसके बाद पार्टी, अंत में खुद’ रहा है और सभी स्थितियों में मैंने इस नियम पर चलने का प्रयास किया और ऐसा करता रहूंगा।’ यहीं पर मोदी गेंद अडवानी के पाले में फैंकने में सक्षम थे। मैं बताता हूं कैसे? जो लोग अन्य भारतीयों पर राष्ट्र विरोधी होने का आरोप लगाते हैं उनका तर्क इस साधारण नियम पर आधारित है। भारत पहले, अंत में खुद का क्या अर्थ है? विचार यह है कि व्यक्ति के हित तथा राष्ट्र के हित अथवा पार्टी के हित और राष्ट्र के हित के बीच टकराव पैदा हो सकता है। और जब ऐसा टकराव उत्पन्न होता है, अडवानी भारत को पहले रखेंगे। 

राष्ट्र हित का मतलब
प्रश्र यह है कि ऐसा टकराव कब उत्पन्न होता है? औसत मध्यम वर्ग नागरिक के लिए राष्ट्र हित यह होगा कि पूरा आयकर चुकाया जाए अथवा किसी काम के लिए रिश्वत न दी जाए या कानून तथा इसके नियमों का पालन किया जाए आदि। यह सच्चाई क्या है? सच यह है कि हममें से अधिकतर खुद को तथा अपने हितों को राष्ट्र से पहले रखते हैं। किसी भी प्रमुख लोकतंत्र में हमारा आयकर चुकाने वालों का प्रतिशत सबसे कम है और नियम तोडऩा सभी भारतीयों की दूसरी प्रवृत्ति है। क्या ‘राष्ट्र पहले, बाद में पार्टी, अंत में खुद’ से अडवानी का यही अर्थ है? नहीं, क्योंकि मेरे द्वारा बताए उपरोक्त मानदंडों के लिहाज से अधिकतर भारतीय राष्ट्र विरोधी होंगे या गाली देने के लिए जो शब्द भी कोई इस्तेमाल करना चाहें। अत: स्पष्ट है कि अडवानी के सिद्धांत का वह अर्थ नहीं है। उनका मतलब कुछ और है, मगर क्या? 

सच यह है कि ‘पहले राष्ट्र’ वाला जोरदार कथन वास्तव में खोखला तथा मूर्खतापूर्ण है। इसका कोई अर्थ नहीं। मैं इस वर्ष 50 साल का हो जाऊंगा और मेरे जीवन में कभी भी ऐसा समय नहीं आया जब मुझे मेरे राष्ट्र तथा किसी अन्य चीज के बीच में से चुनना पड़ा हो और मुझे लगता है कि आपके साथ भी ऐसा ही होगा। इतिहास में कितने ऐसे लोग होंगे जिन्हें अपने राष्ट्र तथा अपने धर्म अथवा राष्ट्र या किसी अन्य चीज के बीच में से चयन करना पड़ा होगा? और किस बिन्दू पर वह चुनाव निर्णय के पल में हमारे सामने आता है? यदि हम इसके बारे में सोचें तो हमें पता चलेगा कि अडवानी के बयान में वास्तविक शब्दों में आडम्बर था : ऊंची सुनाई देती भाषा जिसका कोई असर अर्थ नहीं है। 

अडवानी ने कुछ अलग नहीं कहा
अडवानी के बयान को केवल एक ही तरीके से पढ़ा जा सकता है और वह दरअसल ठीक वही बात कह रहे हैं जो जेतली, शाह तथा मोदी गत कुछ दिनों से कह रहे हैं कि जो कोई भी उनकी विचारधारा से असहमत है वह राष्ट्र विरोधी और टुकड़े-टुकड़े गैंग का हिस्सा है। यही ‘पहले राष्ट्र’ चाहता है, कि नारे के खिलाफ किसी भी असंतोष को दबा दिया जाए। इसमें कोई अंतर नहीं कि अडवानी क्या संदेश देना चाहते हैं, जब वह ‘पहले भारत, अंत में खुद’ कहते हैं और मोदी, जेतली तथा शाह अपने विरोधियों के बारे में क्या कहते हैं। 

इस तरह से मोदी ने विद्रोही ब्लॉग की हवा निकाल दी और मिनटों में ही यह कहने के लिए ट्वीट कर दिया कि वह अडवानी के ‘मंत्र’ से पूरी तरह सहमत हैं। अडवानी के ब्लॉग में यही वह विरोधाभास है जिसे मोदी ने उठाया और बाकी हम सभी के लिए थाम लिया। अडवानी के लिए यह कहना बहुत अच्छा है कि जो लोग केवल राजनीतिक तौर पर आपके विरोधी हैं उनके खिलाफ देशद्रोह के आरोप नहीं होने चाहिएं। मगर यह तर्क दिया जा सकता है कि अडवानी के सारे जीवन के कार्य केवल ऐसा करने के लिए निवेश किए गए-अन्य भारतीयों, विशेषकर वे लोग जो उनसे अलग धर्म के हैं, के साथ शत्रु तथा राष्ट्र विरोधियों की तरह व्यवहार किया जाए, जिनके द्वारा किए गए नुक्सान को अवश्य पलटा जाना चाहिए। 

एक ऐसे समय में, जब उन्हें उनकी इच्छा के विपरीत रिटायर्ड कर दिया गया है, ऐसा दिखाई देता है कि अडवानी ने सहिष्णुता के गुण पा लिए हैं। इससे एक समय के उनके शिष्य (30 वर्ष पूर्व मोदी ने अडवानी की सितम्बर 1990 में सोमनाथ से प्रसिद्ध रथयात्रा के पहले चरण के लिए निजी तौर पर सभी व्यवस्थाएं की थीं) को बुजुर्ग व्यक्ति को अपना खुद का सबक सिखाने का मौका मिल गया।-आकार पटेल

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