लड़कियों की ‘शादी की उम्र’ क्या हो

punjabkesari.in Wednesday, Oct 21, 2020 - 04:33 AM (IST)

वर्षों से लक्ष्मी मेरे यहां और आसपास के घरों में काम करती है। पतली-दुबली, हमेशा इधर से उधर भागती। एक दिन उसने कहा कि आज वह 20 साल की हो गई। बस, मुंह से निकला क्योंकि उसके 3 बच्चे हैं। यह पूछने पर कि शादी कितनी उम्र में हुई थी, वह शरमाती हुई बोली-चौदह की थी। उसके साथ कई लड़कियां आती-जाती दिखती हैं। उनकी उम्र भी इतनी ही होगी, लेकिन सबके कई-कई बच्चे हैं। सभी गरीब पृष्ठभूमि से आती हैं। 

अपने यहां बहुत से परिवारों में, लड़की के जन्म लेते ही उसे पढ़ाने, लिखाने के मुकाबले शादी की तैयारियां की जाने लगती हैं। यूं कहने को सरकार की तरफ से लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल और लड़कों की 21 साल है। लेकिन अधिकांश परिवारों में लड़की से जैसे-तैसे पिंड छुड़ाने की भावना दिखाई देती है। इनमें बहुतायत गरीब परिवारों की होती हैं। 

ग्रामीण समाजों में भी लड़कियों की ही नहीं, लड़कों की शादी भी जल्दी कर दी जाती है। और सिर्फ ग्रामीण ही क्यों, कई साल पहले अखबार की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि दिल्ली जैसे महानगर में भी बहुत-सी लड़कियों का विवाह 18 से पहले हो जाता है। कई साल पहले केरल के एक विश्वविद्यालय में जाना हुआ। वहां यह देखकर हैरानी हुई कि बी.ए. और एम.ए. में पढऩे वाली बहुत-सी छात्राएं विवाहित थीं, जबकि केरल सौ फीसदी साक्षर राज्य है। जल्दी विवाह होता है, तो वे जल्दी ही मां भी बन जाती हैं। कम उम्र में मां बनने से न केवल वे गृहस्थी और बाल-बच्चों की जिम्मेदारी से पिसने लगती हैं बल्कि उनके स्वास्थ्य को भी गंभीर खतरा पैदा हो जाता है। महिलाओं के लिए काम करने वाले संगठन अरसे से लड़कियों के खराब स्वास्थ्य का कारण कम उम्र में विवाह और मातृत्व को ही मानते रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या का एक बड़ा कारण बाल विवाह भी है। 

सच तो यह है कि अपना देश जनसंख्या के बोझ से कराह रहा है। लेकिन आपातकाल में जनसंख्या रोकने के लिए जिस तरह से परिवार नियोजन के तौर-तरीकों को जबरदस्ती लागू किया गया था और श्रीमती गांधी को पराजय का मुंह देखना पड़ा था, तबसे अब तक 45 साल बीत गए हैं, किसी सरकार ने जनसंख्या रोकने के लिए कोई भी कारगर कदम उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई है। वैसे भी अपने यहां तमाम पर्सनल लॉ हैं, जिनके तहत अलग-अलग सम्प्रदाय अपने फैसले लेते हैं। सरकार का कोई भी फैसला सभी मानने को बाध्य नहीं होते। इसीलिए इस तरह की कोई पहल सफल भी नहीं हो पाती। 

कहा जा रहा है कि अब सरकार लड़की की शादी की उम्र बढ़ाने पर विचार कर रही है। इसे 25 साल किया जा सकता है। 18 साल से सीधे 25 यानी कि सीधे सात साल की बढ़ौतरी। अब ये बढ़े हुए 7 साल कितनों को स्वीकार होंगे कितनों को नहीं और अगर लड़की की उम्र 25 है तो लड़कों की शादी की उम्र बढ़ानी पड़ेगी। वैसे यह पहल अच्छी भी होगी। कम से कम इस उम्र तक आते-आते लड़कियां शादी से पहले बहुत कुछ कर सकेंगी। पढ़-लिख सकेंगी, आत्मनिर्भर बन सकेंगी। अपने आसपास देखें तो शहरी मध्य वर्ग में अब 30 साल की उम्र गुजर जाने के बाद भी लड़कियां शादी के लिए ज्यादा ङ्क्षचतित नहीं दिखाई देतीं। वे कहती हैं कि पहले अपना करियर बना लें, तब शादी के बारे में सोचेंगी। इसीलिए आप पाएंगे कि आज की पीढ़ी के बहुत-से परिवारों में एक बच्चे का नियम चल पड़ा है। वे सरकारी नारे, हम दो, हमारे दो से आगे निकल चुके हैं। 

कहा जाता है कि आपातकाल में संजय गांधी ने हम दो हमारा एक का नारा देने का प्रयास किया था, तब यह सुपर फ्लाप नारा रहा था। लेकिन अब बहुत-से परिवारों ने बिना किसी सरकारी नारे के ही एक बच्चे के नियम को अपना लिया है। इसलिए यदि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाई जाए, तो यह उनके सर्वांगीण विकास के लिए अच्छा ही रहेगा। लेकिन यह भी है कि सरकारों के लिए कानून बनाना आसान होता है, उसे लागू कराना मुश्किल। आखिर बाल विवाह के विरुद्ध अपने यहां कानून हैं, लेकिन बाल विवाह नहीं रुके हैं। 

इसलिए यद्यपि कानून बनाया जाए, तो पहले उस पर यह विचार जरूर करना चाहिए कि कैसे लोगों को इसके बारे में समझाया जाए, उसके फायदे गिनाए जाएं, जिससे कि बिना किसी जोर-जबरदस्ती के ज्यादा से ज्यादा लोग उसे मानने लगें। वरना तो कानून बनाए जाते रहते हैं, लेकिन लोग अपने जीवन में उन्हें नहीं मानते। हालांकि निजी अनुभव यह बताता है कि अब लड़कियों की शिक्षा और आत्मनिर्भरता की बात पर ग्रामीण समाजों में भी सहज-स्वीकृति बन चली है।-क्षमा शर्मा
 


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