जो बात समाचार पत्र में, वह इंटरनेट में कहां
punjabkesari.in Tuesday, Oct 10, 2023 - 06:08 AM (IST)

पिछले कुछ समय से मैं अपनी 12 वर्षीय बेटी को हर दिन कम से कम एक घंटा अखबार जरूर पढऩे के लिए कहता हूं मगर इसका कोई परिणाम नहीं मिल रहा और न ही कोई सामान्य प्रलोभन काम कर रहा है। नकदी, चॉकलेट और टेलर स्विफ्ट बकेट हैट काम करने में विफल रहे हैं। वह 15 मिनट से ज्यादा अखबार नहीं पढ़े क्योंकि उसका तर्क है कि उसे उसकी मां के स्मार्टफोन पर सारी खबरें मिल जाती हैं इसलिए किसी को अपने दिमाग को अव्यवस्थित करने की कोई जरूरत नहीं है।
इसके अलावा मेरी बेटी के पास होमवर्क के पहाड़ भी हैं। मैं उसे बताता हूं कि वह कभी-कभार अपना होमवर्क छोड़ सकती है और अपनी स्तरीय परीक्षाओं में ‘बी’ या ‘सी’ प्लस ग्रेड ला सकती है। जिससे मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। नूंह एक छोटा शहर है जहां वह रहती है लेकिन यह सब मेरी बातें हैं, जो उसके लिए बहुत उबाऊ हैं। उसकी समझ में अखबार बेकार सूचनाओं से भरे हैं और यह सब राजनीति है। वह कहती है कि उसे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है और न ही वह राजनेता बनना चाहती है। मैंने उसे कहा कि तभी तो मैं चाहता हूं कि वह रोजाना अखबार पढ़े ताकि दुनिया की सभी बेकार सूचनाएं उसको मिल जाएं। वह उन चीजों के बारे में जाने जो उसको आज उबाऊ लगती हैं लेकिन 10 वर्ष बाद दिलचस्प लग सकती हैं।
मुझे लगता है कि यदि आप अपना दिमाग लगाएंगी तो आप एक शानदार राजनीतिज्ञ साबित होंगी। ईश्वर जानता है कि तुम काफी चतुर हो। फिर वह मुझसे पूछती है कि यह नीतीश-शाह कौन हैं? एक लेखक के रूप में यह मेरे लिए सबसे बड़ी दिलचस्पी है कि प्रिंट मीडिया में हर 5 साल में नए पाठक मिलते हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि जो पाठक अखबारों और पत्रिकाओं को हार्ड कॉपी संस्करण में पढ़ते हैं, वे एक दिन हार्ड बैक में उपन्यास भी पढ़ेंगे क्योंकि आप अपनी अन्य ई-डिवाइस पर केवल वही पढ़ेंगे जो आप उस पर खोजते हैं।
मुझे समाचार पत्रों में हॉलीवुड फिल्मों के अभिनेताओं द्वारा पहनी गई बेशकीमती घडिय़ों और परिधानों के बारे में सूचनाएं मिलती हैं। मैं समाचार पत्र का आभारी हूं जो मुझे इनके बारे में लेख भेजता है लेकिन अगर मैंने दैनिक समाचार पत्र नहीं पढ़ा होता तो मुझे नहीं पता होता कि अजित पवार ने मुंबई में एक बार फिर से पासा बदल लिया और विक्रम लैंडर चांद पर उतर गया है। ये दोनों घटनाएं मेरे लिए नगण्य रुचि की हैं। लेकिन मुझे खुशी है कि अब मैं उनके बारे में अच्छी तरह से जानता हूं। जब आप एक प्रिंट अखबार या पत्रिका खरीदते हैं तो आपको कई चीजों पर लेखों की शृंखलाएं प्रदान की जाती हैं जिनमें वर्तमाान में आपकी रुचि नहीं हो सकती। लेकिन एक बार जब आप इसके बारे में पढ़ लेते हैं तो कुछ वर्ष बाद यह आपकी इच्छा की धीमी लौ को प्रज्वलित कर सकता है।
हालांकि दैनिक समाचार पत्र बचे हुए हैं। लेकिन पिछले 15 वर्ष पत्रिकाओं के लिए विनाशकारी रहे हैं। लगभग 2010 तक दक्षिण और मध्य दिल्ली के लगभग हर इलाके में एक पत्रिका और समाचार पत्र का कियोस्क हुआ करता था। कनॉट प्लेस में इंटरनैशनल हेराल्ड ट्रिब्यून और ले मोंडे के दो दिवसीय संस्करण पाए जा सकते हैं मगर वे दिन चले गए। 1980 के दशक के अंत में और 1990 के दशक के मध्य तक ‘परेड’ नामक पत्रिका हुआ करती थी। 10 रुपए की कीमत पर यह ब्रिटिश और अमरीकी पत्रिकाओं के लेखों का एक संग्रह था जो महंगा होने के अलावा अधिकांश भारतीय कस्बों और शहरों में उपलब्ध नहीं था। ‘परेड’ में मैंने पहली बार रिचर्ड, पाइस पीट, हैमिल, जोन डिडियन और हंटर एस. थॉमसन जैसी मनमौजी प्रतिभाओं के निबंध पढ़े।
किसी एक ने ‘परेड’ पत्रिका उठाई और उसमें सब कुछ पढ़ा। उन चीजों और लिखने के तरीकों में रुचि विकसित की जिसके बारे में उस समय तक कोई जानकारी नहीं थी। मैं अपने बचपन की अन्य कृति ‘स्टारडस्ट’ को प्रकाशित करने के लिए उसी प्रकाशन गृह को धन्यवाद नहीं दे सकता। मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय में अपने 5 साल के अंग्रेजी साहित्य की तुलना में उन पत्रिकाओं से लेखन के बारे में अधिक सीखा।-सिद्धार्थ चौधरी