केंद्र सरकार के ‘सामाजिक कल्याण फंड’ का क्या हुआ
punjabkesari.in Wednesday, Apr 05, 2023 - 05:57 AM (IST)

हाल ही में केंद्रीय बजट 2023-24 पेश किया गया था। यद्यपि नई घोषणाएं और विभिन्न क्षेत्रों के लिए बजट का परिव्यय सार्वजनिक चर्चा पर हावी रहा, लेकिन बजट में आबंटित राशि के ठीक से उपयोग नहीं किए जाने के मुद्दे पर कोई जांच नहीं हुई। केंद्र सरकार हर साल केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सी.एस.एस.), जैसे कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एन.एच.एम.), समग्र शिक्षा अभियान और मनरेगा के माध्यम से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बड़ी मात्रा में बजट राशि हस्तांतरित करती है।
वित्त वर्ष 2016-17 से 2023-24 के दौरान केंद्रीय बजट से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को संसाधनों के लिए हस्तांतरित राशि का सालाना औसत 6.87 लाख करोड़ रुपए के बराबर है, जो कुल केंद्रीय बजट का करीब 21 प्रतिशत है। इसी अवधि के दौरान इसके अंतर्गत केंद्र प्रायोजित योजनाओं का औसत वाॢषक हिस्सा करीब 54 प्रतिशत (या केंद्रीय बजट का 11 प्रतिशत) रहा। सी.एस.एस. में फंड के सही उपयोग के लिए अधिक ‘विजिबिलिटी’ की अवश्यकता क्यों?
केंद्रीय मंत्रालयों की पारंपरिक एकाऊंटिंग राज्यों को दिए गए सभी फंड एडवांसों को ‘व्यय’ के रूप में रिकॉर्ड कर रही है, चाहे वह एडवांस राज्य, जिला और उप-जिला स्तरों पर अप्रयुक्त तौर पर पड़े हों। यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रदान किए गए फंड की स्पष्ट विजिबिलिटी में बाधा डालता है। राज्य सरकारों की अकाऊंटिंग भी एक समान सीमा ही होती है, जहां इम्प्लीमैंटिंग एजैंसियों, जैसे कि राज्य शिक्षा समितियों या जिला स्वास्थ्य समितियों को दिए गए फंड को व्यय के रूप में दर्ज किया जाता है। ऐसे में, सरकारी व्यवस्था दिए गए फंड के वास्तविक उपयोग की सीमा और अप्रयुक्त रूप से पड़े फंड के अनुपात को पूरी तरह से मापने में असमर्थ है।
इसके अलावा, कई क्षेत्रों में क्रियान्वयन की निचली इकाइयों को मिले फंड एडवांस के व्यय के विवरण (अर्थात, व्यय के रिकॉर्ड) काफी देर से वैरिफाई होते हैं। उदाहरण के तौर पर, जब एक जिला स्वास्थ्य सोसायटी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और अन्य स्वास्थ्य उप-केंद्रों (जो एन.एच.एम. के तत्वावधान में सेवाएं प्रदान करते हैं) को फंड देती है, तो ये सेवा प्रदाता संस्थान फंड के व्यय का विवरण या उपयोग का प्रमाण पत्र देते हैं। जिला स्वास्थ्य समिति इस एडवांस फंड के व्यय के रिकॉर्ड को मिलाने के लिए काफी समय लेती है, कभी-कभी तो इन रिकॉर्डों को वैरिफाई करने में महीनों लग जाते हैं।
पूरी व्यवस्था में अप्रयुक्त राशि (फ्लोट) की समस्या देखी जा सकती है, यानी योजना के क्रियान्वयन के विभिन्न स्तरों पर अप्रयुक्त फंड का अस्तित्व। यह अनुमान लगाया गया है यदि केंद्रीय मंत्रालयों को उनकी योजनाओं में विभिन्न स्तरों पर अप्रयुक्त पड़ी धनराशि पर पूर्ण विजिबिलिटी प्राप्त हो तो केंद्र सरकार के ब्याज की लागत को कम से कम 10,000 करोड़ रुपए तक कम किया जा सकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पूर्ण विजिबिलिटी से केंद्र सरकार की हर साल उधार ली जाने वाली वाली राशि में उल्लेखनीय कमी आएगी।
इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने जुलाई 2021 में केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए सिंगल नोडल एजैंसी/सिंगल नोडल अकाऊंट (एस.एन.ए.) की व्यवस्था की शुरूआत की। इसके लिए प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को राज्य में प्रत्येक सी.एस.एस. के लिए केवल एक नोडल बैंक अकाऊंट बनाने और मेन्टेन करने की आवश्यकता होती है, ताकि फंड के केंद्रीय शेयर के प्रवाह और उपयोग पर राज्यों द्वारा एक समान योगदान और व्यवस्था में अप्रयुक्त धन के मामले में और अधिक विजिबिलिटी मिल सके।
आगे का रास्ता : राजकोषीय शासन व्यवस्था में फ्लोट की समस्या ने कई मुद्दों को जन्म दिया है जैसे कि केंद्र सरकार के उच्च ब्याज का बोझ, जो आंशिक रूप से घटाया जा सकता है, देर से मिलने वाला फंड और मिले फंड का उपयोग, सही जवाबदेही न कर पाना और महत्वपूर्ण विकास क्षेत्रों में पर्याप्त व्यय न हो पाना। जाहिर है, इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए सरकार के तीनों स्तरों पर समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।-नीलाचल आचार्य एवं सुब्रत दास