‘मुस्लिम-लीग माओवादी कांग्रेस’ का मतलब क्या?

punjabkesari.in Thursday, Nov 20, 2025 - 05:16 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कांग्रेस को ‘मुस्लिम-लीग माओवादी कांग्रेस’ कहने और उसे ‘देश के लिए खतरा’ बताने का निहितार्थ क्या है? इस विचार को प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार नहीं बल्कि 3 अवसरों पर व्यक्त किया है। पहले 14 नवम्बर को बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा नीत राजग गठबंधन द्वारा दर्ज प्रचंड जीत पर दिल्ली में भाजपा समर्थकों को संबोधित करते हुए। फिर 15 नवम्बर को गुजरात स्थित सूरत के एक कार्यक्रम में और इसके बाद 17 नवम्बर को दिल्ली में आयोजित रामनाथ गोयनका के व्याख्यान में। प्रधानमंत्री के मुताबिक, ‘‘10-15 साल पहले कांग्रेस में जो अर्बन-नक्सली माओवादी पैर जमा चुके थे, अब वो कांग्रेस को ‘मुस्लिम-लीग माओवादी कांग्रेस’ (एम.सी.सी.) बना चुके हैं। मैं पूरी जिम्मेदारी से कहता हूं कि मुस्लिम-लीग माओवादी कांग्रेस अपने स्वार्थ में देश के लिए खतरा बनती जा रही है।’’ कांग्रेस की यह छवि एकाएक नहीं बनी है और न ही यह मात्र कोई चुनावी या राजनीतिक जुमलेबाजी है।

कांग्रेस का संकट बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे पर उसके आधिकारिक वक्तव्य से स्पष्ट है, जिसमें पार्टी नेतृत्व मतदाता द्वारा नकारे जाने को फर्जी ‘वोट चोरी’ का परिणाम बता रही है। दरअसल, वर्तमान कांग्रेस के शीर्ष नेता और लोकसभा में नेता-विपक्ष राहुल गांधी जिस विभाजनकारी मार्ग पर चल रहे हैं,उसकी प्रेरणा उन्हें अपने परिवार ही से मिली है। वर्ष 1950 से राहुल के परनाना पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जिस विकृत सैकुलरवाद को अपनाया, उसने देश में इस्लामी कट्टरता और ङ्क्षहदू-विरोधी शक्तियों को नया जीवनदान दिया। पहले उन्होंने जम्मू-कश्मीर के इस्लामी स्वरूप को बरकरार रखने हेतु अनुच्छेद 370-35ए को संविधान में बिना चर्चा के  ‘चोर दरवाजे’ से शामिल करवाया तो बहुसंख्यकों के लिए ‘हिंदू कोड बिल’ लागू करके मजहबी स्वतंत्रता के नाम पर मुस्लिम समाज को हलाला और तीन तलाक जैसी कुरीतियों के साथ छोड़ दिया। पं. नेहरू के लिए हिंदू मंदिर ‘दमनकारी’ तो केवल हिंदू ही ‘सांप्रदायिक’ थे। कालांतर में उनके द्वारा अपनाई समाजवाद प्रेरित नीतियों ने भारतीय आर्थिकी को ध्वस्त कर दिया, जिसकी चर्चा पिछले कुछ लेखों में की जा चुकी है।

यह विकृति राहुल की दादी इंदिरा गांधी के शासन में और बढ़ गई। उन्होंने 1969 में कांग्रेस टूटने के बाद अपने धड़े की वैचारिक संगोष्ठी उन वामपंथियों के हाथों में सौंप दी जो अधिनायकवाद को बढ़ावा देने के साथ न तो तब स्वयं को भारत की बहुलतावादी सनातन संस्कृति से जोड़ पाए थे  न ही अब जोड़ पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, अदालत द्वारा अपनी ‘वोट चोरी’ पकड़े जाने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल (1975-77) थोप दिया। इसी दौरान अयोध्या में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के प्रमाण संबंधित उत्खनन रिपोर्ट को भी दबा दिया गया। कालांतर में पंजाब में अपने विरोधी अकाली दल को हाशिए पर पहुंचाने हेतु उन्होंने मृत ‘खालिस्तान’ विचार को अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता हथियाने की लालसा में पुनर्जीवित कर दिया। इसका उल्लेख गैर-राजनीतिक, पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी और भारतीय खुफिया एजैंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ (रॉ) में वर्षों जुड़े रहने के बाद सेवानिवृत हुए गुरबख्श सिंह सिद्धू ने अपनी पुस्तक ‘द खालिस्तान कांस्पीरेसी’ में किया है।

जैसे 1980 के दशक में भिंडरांवाले को आगे रखकर इंदिरा गांधी ने हिंदू-सिख संबंधों को लेकर आत्मघाती राजनीति की, ठीक उसी तरह राहुल के पिता राजीव गांधी ने वर्ष 1986 के शाहबानो मामले से ‘मुस्लिम वोटबैंक’ का बिगुल फूंक दिया। तब मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेकते हुए तत्कालीन राजीव सरकार ने संसद में प्रचंड बहुमत के बल पर मुस्लिम महिला उत्थान की दिशा में आए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया था। कालांतर में मुस्लिम-विरोध के कारण ही सलमान रशीद की ‘सैटनिक वर्सेज’(1988)और तस्लीमा नसरीन की ‘लज्जा’ (1993) पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। भले ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता (दिवंगत) डा.मनमोहन सिंह 2004-2014 के बीच देश के प्रधानमंत्री रहे परंतु उन्हें दिशा-निर्देश असंवैधानिक ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद’ (एन.ए.सी.) से मिलते थे, जिसका नेतृत्व तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्षा और राहुल की माता जी सोनिया गांधी कर रही थीं। एन.ए.सी.में ऐसे लोग शामिल थे,जिनका राष्ट्रहित की बजाय वैचारिक एजैंडे (वामपंथ सहित) से अधिक सरोकार था। इसी कालखंड में 2002 के उस नृशंस गोधरा कांड, जिसमें जिहादियों ने भजन-कीर्तन कर रहे 59 हिंदुओं को ट्रेन में जिंदा जला दिया था, उसे ‘हादसा’ बताकर रफा-दफा करने का असफल प्रयास किया गया। 

घुमा-फिराकर ‘देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का’ बता दिया। हलफनामा देकर सर्वोच्च न्यायालय में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को काल्पनिक कह दिया। वैश्विक रूप से स्थापित जिहादी आतंकवाद-कट्टरवाद को तब देश में ‘इस्लामोफोबिया’ घोषित करने हेतु मनगढ़ंत ‘ङ्क्षहदू-भगवा आतंकवाद’ का हौव्वा खड़ा कर दिया। इसके अंतर्गत वर्ष 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले (26/11) में असली दोषी (पाकिस्तानी आतंकियों) को क्लीनचिट देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को फंसाने का फर्जी नैरेटिव बुना गया। यासीन मलिक जैसे खूंखार जिहादियों से सहानुभूति रखते हुए उसे राजकीय मंच दिया गया। वर्ष 2014 से कांग्रेस अपने शीर्ष नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में लगातार तीन लोकसभा चुनाव और दर्जनों विधानसभा चुनाव हार चुकी है। अपने निरंतर घटते जनाधार की ईमानदार समीक्षा करने की बजाय कांग्रेस ने भाजपा से अलग दिखने के लिए प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से उन विभाजनकारी शक्तियों, विशेषकर वामपंथी-जिहादी चिंतन को आत्मसात कर लिया है।-बलबीर पुंज


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