‘मोदी आखिर कौन सा बदलाव लाएंगे’

Monday, Mar 15, 2021 - 01:54 AM (IST)

पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 42 सीटों में से 18 पर जीत दर्ज की थी। यह देखना कठिन है कि पार्टी विधानसभा चुनावों में क्यों नहीं जीत पाएगी क्योंकि इसके  पास बाकी के मुकाबले बहुत अधिक संसाधन हैं (आर.टी.आई. के अनुसार चुनावी बांड धन का 90 प्रतिशत से ज्यादा जोकि कार्पोरेट्स द्वारा पार्टियों के लिए कानूनी धन है)। इसके पास राष्ट्रीय प्रशासन की शक्ति भी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि वह बंगाल में वास्तविक परिवर्तन लाएंगे। शायद वह लाएंगे। मेरे लिए दिलचस्प बात यह है कि उनकी पार्टी ने यह कभी भी परिभाषित नहीं किया कि आखिर वह कौन-सा बदलाव है। 

1951 में गठित जनसंघ/भाजपा के घोषणा पत्र ने राष्ट्रीय कायाकल्प यज्ञ जैसी भव्य और निराकार अभिव्यक्ति से सीधे आगे बढ़ कर, तीसरी श्रेणी के डिब्बों के साथ और अधिक ट्रेनें चलाने जैसी चीजों का आह्वान किया जो वातानुकूलित ट्रेनों के विरोध के रूप में है। गाय की खाद के फायदों को आगे बढ़ाना और भाषाविदों को अंग्रेजी की बजाय संस्कृत पर आधारित तकनीकी और वैज्ञानिक शब्दों को प्रस्तुत करने के लिए कहा। पार्टी के विचारक दीनदयाल उपाध्याय नहीं चाहते थे कि राज्य का अस्तित्व हो। अपने एक मानववाद व्याख्यान में उन्होंने कहा, ‘‘संविधान के पहले पैरा के अनुसार इंडिया जो भारत है वह राज्यों का एक संघ होगा। मिसाल के तौर पर बिहार माता, बंग माता, पंजाब माता, कन्नड़ माता, तमिल माता यह सब मिलकर भारत माता बनाते हैं। यह हास्यास्पद है।’’ 

उन्होंने यह नहीं बताया कि अगर हमने राज्यों को हटा दिया तो प्रशासन का कौन-सा तंत्र केंद्र सरकार और गांव के बीच आ जाएगा? अपने पहले घोषणा पत्र में पार्टी ने प्रमुख समस्याओं के रूप में काला बाजारी, मुनाफाखोरी तथा भाई-भतीजावाद की पहचान की। समय के साथ जनसंघ ने इन समस्याओं को बिना कहे छोड़ दिया कि क्या यह हल किए गए हैं या पार्टी के लिए कम प्रासंगिक हो चुके हैं। अपने पहले घोषणा पत्र में कृषि आधारित पहले बिंदू पर पार्टी ने कृषक को शिक्षित और उत्साहित करने के लिए एक देशव्यापी अभियान छेड़ा ताकि ज्यादा उत्पादकता के लिए सख्त मेहनत की जरूरत समझी जाए। बाद में इसने कृषि में यांत्रिक उपकरणों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए कहा। 

हालांकि बाद में भी इसने कहा कि ट्रैक्टरों का उपयोग केवल अछूती धरती को तोडऩे के लिए किया जाएगा। सामान्य जुताई के उद्देश्यों के लिए उनका उपयोग हतोत्साहित किया जाएगा (1954)। निश्चित रूप से यह बैल के संरक्षण और उसको वध से बचाने की कोशिश कर रही थी। 1951 में गौहत्या पर प्रतिबंध का व्याख्यान किया गया ताकि गाय को एक कृषि जीवन की आर्थिक इकाई बनाया जा सके। 1954 में मजमून और अधिक धार्मिक था और गाय संरक्षण को एक ‘पवित्र कत्र्तव्य’ कहा जाता था। 

1954 और फिर उसके बाद 1971 में जनसंघ ने सभी भारतीय नागरिकों की आय को 2000 प्रति माह तथा न्यूनतम 100 रुपए करने का संकल्प लिया। 20:1 का अनुपात रखा गया। 10:1 तक पहुंचने तक इस अंतर को कम करने पर काम करना जारी रखा जाएगा जोकि आदर्श अंतर था। सभी भारतीय अपनी स्थिति के आधार पर केवल इसी श्रेणी के अंदर आय रख सकते थे। इस सीमा से अधिक व्यक्तियों द्वारा अर्जित अतिरिक्त आय सरकार द्वारा विकास के लिए ले ली जाएगी। पार्टी शहरों में आवासीय घरों के आकार की सीमा भी सीमित करेगी और 1000 वर्ग गज से अधिक के भूखंडों की अनुमति नहीं देगी। 

1954 में पार्टी ने कहा कि वह संविधान के पहले संशोधन को रद्द कर देगी जिसमें उचित प्रतिबंध लगाकर बोलने की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जाएगा। इस संशोधन ने अनिवार्य रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छीन लिया क्योंकि एक उचित प्रतिबंध के रूप में जो सूची देखी जाती है वह बहुत व्यापक थी। जनसंघ को होश आया कि यह कुछ ऐसा नहीं था जिसे बिना अनुमति के जाने दिया जा सके। हालांकि 1954 के बाद इस मांग को रद्द कर दिया गया। दिलचस्प बात यह है कि जनसंघ ने कहा कि नजरबंदी निरोधक कानून को भी  रद्द कर देगी जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता के परस्पर विरोध के पूर्ण रूप में है। 1950 में फिर से यह वायदा किया गया है। यू.ए.पी.ए. की तरह संघ तथा भाजपा नजरबंदी निवारक कानूनों की सबसे ज्यादा उत्साही चैम्पियन बन गई।  1951 से लेकर 1980 तक जनसंघ के घोषणा पत्रों में अयोध्या या एक राम मंदिर के किसी भी संदर्भ का जिक्र नहीं है। 

1957 में पार्टी ने घोषणा की कि वह आर्थिक क्रम में क्रांतिकारी बदलाव पेश करेगी जो भारतीय जीवन मूल्यों को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा। हालांकि इन पर विचार नहीं किया गया था और न ही किसी भविष्य के घोषणा पत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन के इस विषय को फिर से उठाया गया था। सांस्कृतिक रूप से पार्टी शराब के खिलाफ मजबूती से खड़ी रही और राष्ट्रव्यापी निषेध की मांग की। 

पार्टी यह भी चाहती थी कि अंग्रेजी को समाप्त कर दिया जाए और सभी क्षेत्रों में स्थानीय भाषाओं, विशेषकर हिंदी में इसे बदल दिया जाए। डा. भीमराव अम्बेदकर ने ङ्क्षहदू पर्सनल लॉ में मामूली बदलाव का प्रस्ताव किया था। खास कर महिलाओं के लिए विरासत के सवाल पर। उन्होंने पारम्परिक वंशानुक्रम कानून के दो प्रमुख रूपों की पहचान की और उनमें से एक को महिलाओं के लिए उचित बनाने के लिए संशोधित किया। 1951 में अपने घोषणा पत्र में जनसंघ ने इस सुधार का विरोध किया। 

1971 को अपने नाम के अंतर्गत लड़े गए अंतिम चुनाव में जनसंघ ने 22 सीटें जीतीं और उसका वोट प्रतिशत 7 रहा। वह देश की चौथी सबसे बड़ी पार्टी बनी। यह केवल अडवानी और विशेष रूप से मोदी के तहत भाजपा जन आधारित चुनावी ताकत बन गई। जनसंघ कैडर आधारित पार्टी थी। यह उल्लेखनीय है कि यह सब सुसंगत, निरंतर विचारधारा की अनुपस्थिति में हासिल किया गया।-आकार पटेल

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