‘खाकी वर्दी पहनना फूलों की सेज नहीं है’

punjabkesari.in Wednesday, Mar 10, 2021 - 03:08 AM (IST)

वर्दी को देख कर एक तरफ तो खूंखार अपराधी को डर लगता है, वहां दूसरी तरफ कमजोर, पीड़ित व बेसहारा व्यक्ति वर्दी से संरक्षण, सुरक्षा एवं शरणस्थली तलाशता है। 

नि:संदेह पुलिस का मुख्य कार्य अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाना है तथा दुष्टों पर शिकंजा कसना है लेकिन जब उस अपराधी ने खद्दर का सफेद कवच पहन रखा हो या फिर वह स्वयं सत्ताधारी बन कर अपने जायज-नाजायज आदेशों की पालना के लिए बाध्य करता हो तो ऐसे विकट समय में वर्दी रूपी आत्म तत्व ही पुलिस कर्मी के कत्र्तव्य धर्म की पालना हेतु एक सच्चा, सृजन सैनिक बन कर अपने कत्र्तव्य को निर्वहन करने के लिए निनादित करता है। वर्दी से ऐसा तन-मन का बल मिलता है मानो किसी डायनामो से संग्रहित व संरक्षित किया गया हो। 

खाकी वर्दी पहनना फूलों की सेज नहीं है। इस पुलिस पथ पर हर पग पर चुभने वाले ढेरों कांटे कदम-कदम पर बिछे हैं। पुलिसकर्मी को नंगी तलवार पर चलना पड़ता है जो दोनों तरफ से काटती है। इसलिए हर पुलिसकर्मी को सदैव चौकन्ना व सतर्क रहना चाहिए। जाने एवं अनजाने में कोई भी ऐसा कुकृत्य न करे जिससे वर्दी की गरिमा खाक में मिल जाए। 

पुलिस कर्मियों को सदैव याद रखना चाहिए कि केवल अधिकार के दम पर अपराधों को नहीं रोका जा सकता। इसी तरह धनाढ्य लोगों या फिर राजनीतिज्ञों के आगे अपने स्वार्थ के लिए घुटने टेक देना पुलिस की गरिमा को कलंकित करता है। पुलिसकर्मी को नहीं भूलना चाहिए कि जिन्होंने अपनी आत्मा को बेच दिया हो वे ही खरीददारों द्वारा खरीदे जाने के लिए खोजे जाते हैं लेकिन सिंह खरीदे नहीं जाते क्योंकि वो बिकाऊ नहीं होते। 

खाकी वर्दी तो उच्चाकांक्षा से अपने अंदर छिपे हीरे को खोजने, तराशने तथा हर चुनौती का सामना करने की प्रेरणा देती है। पुलिसकर्मी को अर्जुन के समान सृजन सैनिक बन कर आतताइयों और दुराचारियों का मुकाबला करना चाहिए। पुलिस वर्दी का असली बल वर्दीधारी का जमीर होता है तथा यह इसलिए भी है कि जब पुलिसकर्मी अपने कार्यान्वयन हेतु जनता के बीच जाता है तो कानून प्रदत्त उसकी शक्तियों के साथ-साथ उसका व्यक्तिगत व्यवहार एवं चरित्र ङ्क्षचतन उसके कार्यों के माध्यम से झलकता है और वह झलक राष्ट्र में अपनी अमिट छाप छोड़ती है। 

पुलिस कर्मी का बाहरी लिबास और जो भी विशेष परिधान अर्थात वर्दी, खाकी रंग वाली स्वच्छ, धुली हुई, खिली-खिली, इस्त्री की हुई, चुस्त-दुरुस्त, स्मार्ट वर्दी वाले बांके-बलिष्ठ जवान में गजब का आकर्षण तो पैदा करती ही है मगर इसके साथ-साथ वर्दी की आंतरिक पवित्रता रूपी शुचिता, जमीर को अपने आचार एवं व्यवहार में लाकर वर्दी की बहुमुखी गरिमा को लोगों के सामने भी प्रकट करती है। जब जवान का शरीर वस्त्र, चित्त, मन और आत्मा आध्यात्मिक संवेदना से युक्त होकर अपनी कर्मस्थली पर उतरता है तो उसकी वर्दी राष्ट्र एवं मानव मात्र की उज्जवल सुरक्षात्मक आशा का प्रतीक बनती है मगर कुछ पुलिस कर्मी अपनी वर्दी को आम लिबास की तरह ही पहन लेते हैं तथा उनको देख कर अपराधी व शातिर लोग और भी सक्रिय हो जाते हैं। 

स्थिति तो उस समय हास्यप्रद व आश्चर्यजनक हो जाती है जब कुछ पुलिस कर्मी शराब के नशे में धुत्त होकर सड़कों पर गिरे पड़े मिलते हैं तथा कुत्ते उनके चेहरे व मुंह को चाट रहे होते हैं। ऐसे में सम्पूर्ण विभाग सवालों के घेरे में आ जाता है तथा पुलिस का चेहरा दागदार हो जाता है। एक पुलिस अधिकारी की ऐसी लापरवाही समस्त पुलिस बल की बदनामी का कारण बन जाती है। पुलिस की ऐसी गलती उसकी हजार अच्छाइयों को ग्रस्त कर देती है तथा समस्त बल की बदनामी का कारण बनती है। 

यदि पुलिस बल का नेतृत्व ही अपनी वर्दी की साख को सुरक्षित न रख सके तब कनिष्ठ कर्मचारी अपनी वर्दी की गरिमा को उकेर कर नहीं रख पाएंगे। पुलिस कर्मी का ऐसा रूप न हो कि जिसकी तोंद बढ़ी हुई हो, दिमाग में अक्ल कम, भूसा अधिक, मुंह से दुर्गंध छोड़ता हो, भ्रष्ट व्यक्तियों से संबंध जोडऩे वाला कमजोर और जरूरतमंदों की बजाय अमीर तथा राजनीतिज्ञ के प्रति अधिक उत्तरदायी हो।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)


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