संपन्नता की असमानता : भारतीय कंपनियां निशाने पर क्यों

punjabkesari.in Wednesday, Jan 25, 2023 - 04:58 AM (IST)

गरीबी कम करने के कारगर उपायों की चिंता करने की बजाय संपन्नता की असमानता बारे दुनियाभर के कई मंचों पर बुद्धिजीवियों द्वारा चिंतन किया जा रहा है। हाल ही में दावोस (स्विट्जरलैंड) में वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यू.ई.एफ.) की वार्षिक बैठक में भारत में संपन्नता की असमानता रिपोर्ट ‘द सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट’ जारी करते हुए अंतरराष्ट्रीय शोध संस्था ऑक्सफैम इंटरनैशनल ने कहा कि ‘भारत के 1 प्रतिशत अमीर लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 40.5 प्रतिशत है’। 

हालांकि हमारे देश में संपन्नता की असमानताओं से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन सोचने की बात यह है कि ऑक्सफैम इंडिया इतने सटीक नतीजे  पर कैसे पहुंची जो दुनियाभर में अमीर-गरीब के बीच की खाई और अधिक गहराते हुए हर बार की तरह फिर वही पुरानी बहस छेड़ देता है। यद्यपि इस रिसर्च में सामने लाई गई जानकारी का आधार/जरिया और निष्कर्ष तर्कसंगत नहीं है, पर दुर्भाग्य से भारत की कंपनियां ही ऑक्सफैम इंटरनैशनल के निशाने पर क्यों हैं? राजनीति से प्रेरित ऐसी कोई भी रिपोर्ट अपने आप में पूर्ण नहीं होती, इसलिए इन पर विचार और बहस लाजिमी है। 

क्या ऑक्सफैम द्वारा 140 करोड़ के इस देश की पूरी आबादी की आय और संपत्ति की सही जानकारी जुटाई जा सकी? आंकड़ों में भरोसेमंद जानकारी का अभाव है, जिसका मतलब है कि भारत में संपन्नता की असमानता की सच्चाई के बारे में भ्रमजाल फैलाया जा रहा है। मेरा मानना है कि भारत में असमानता की हकीकत जानना लगभग असंभव है क्योंकि पहले इसे मापने के लिए ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। दूसरा, एक व्यक्ति की निजी संपन्नता की तुलना में उसकी मिल्कियत वाली फर्म या कंपनी की धन-सम्पत्ति पूरी तरह से अलग है। 

प्रत्येक कारपोरेट में बैंकों और अन्य वित्तीय एजैंसियों समेत कई हित धारकों की उनके निवेश के अनुपात में धन-संपन्नता की हिस्सेदारी होती है। निवेश पर रिटर्न पा रहे कॉरपोरेट को संपन्नता में असमानता का जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है? क्यों इन पर वैल्थ टैक्स और उत्तराधिकार टैक्स की वकालत जोर-शोर से की जा रही है? पहले से ही यह अपने हिस्से के टैक्स में 22 प्रतिशत कॉरपोरेट टैक्स, इंपोर्ट-एक्सपोर्ट कस्टम डयूटी, जी.एस.टी. और इंकम टैक्स समेत 20 से अधिक टैक्स, लाइसैंस फीस व सैस चुका रहे हैं। 

इससे भी आगे बड़े पैमाने पर रोजगार देकर देश की जी.डी.पी. को मजबूत बना रहे हैं। वे अपनी कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सी.एस.आर.) निभाते हुए स्वेच्छा से भी समाज के निचले तबके की भलाई के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चला रहे हैं। देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंंग होने के नाते जी.डी.पी. में होने वाली बढ़ोतरी के साथ-साथ कॉरर्पोरेट का विकास भी स्वाभाविक है। 

संपन्नता की असमानता नई नहीं : अपने-अपने देशों के बड़े ओहदेदारों को दुनिया में संपन्नता की असमानता के इतिहास के बारे में भी पता होना चाहिए। दुनिया में संपन्नता की असमानता कोई नई नहीं है और न ही यह कॉरपोरेट्स की देन है। समाज को यह विरासत में मिली है। वर्ष 1886 में जन्मे हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर उस्मान अली खान तो ‘पेपरवेट’ के रूप में 1000 करोड़ रुपए के हीरे का इस्तेमाल किया करते थे।

माना जाता है कि इस पृथ्वी पर वह अपने समय के सबसे अमीर आदमी रहे, जिनकी कुल संपत्ति 236 बिलियन अमरीकी डालर, यानी 19.23 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक थी, जो आज दुनिया के सबसे अधिक अमीर अमरीका की टैस्ला और ट्विटर कंपनी के मालिक एलन मस्क की संपत्ति (286 बिलियन अमरीकी डालर) के लगभग बराबर थी। मीर उस्मान ने वर्ष 1951 में ही आज की कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी का एक बड़ा उदाहरण पेश करते हुए भारत के भूमिहीन किसानों के लिए विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में अपनी निजी संपत्ति से 14,000 एकड़ जमीन दान की थी। 

भारत फिर भी बेहतर : दुनिया के कई देशों की तुलना में, भारत अभी भी आय और धन, समृद्धि-संपन्नता की समानता के मामले में बेहतर है। ऑक्सफैम इंटरनैशनल की रिपोर्ट की ही मानें तो पिछले 2 वर्षों में दुनिया के 1 प्रतिशत अमीर लोगों के पास दुनिया की कुल समृद्धि की 46 प्रतिशत हिस्सेदारी है। क्रैडिट सुईस की ग्लोबल वैल्थ रिपोर्ट-2022 के मुताबिक, ‘रूस की 1 प्रतिशत आबादी के पास वहां की कुल समृद्धि का 60 प्रतिशत है। ब्राजील के 1 फीसदी धनी लोगों के पास 49.6 फीसदी और अमरीका में एक फीसदी परिवारों के पास देश की 33 फीसदी समृद्धि है। 

यह एक मिथक और राजनीति से प्रेरित धारणा है कि कारपोरेट्स ने धन-संपन्नता की असमानता को बढ़ावा दिया है। तर्कहीन अंतरराष्ट्रीय एजैंसियां भारतीय कॉरपोरेट्स के खिलाफ संघर्ष के माहौल को क्यों बढ़ावा दे रही हैं? देश की जी.डी.पी. में बड़ा योगदान देते हुए भारत को दुनिया की पांच मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में जगह दिलाने में कॉरपोरेट्स की भूमिका अहम है। संपन्नता में असमानता का भाव अचानक पैदा नहीं हुआ, बल्कि यह राजनीतिक कुशासन का नतीजा है, जिसे सरकारें मजबूत इच्छाशक्ति से ही बदल सकती हैं। 

आगे की राह : दुनिया के सबसे अधिक 23 करोड़ गरीब परिवार भारत में हैं, जिन्हें गरीबी रेखा से ऊपर लाना सरकार का काम है और इसमें मदद के लिए कॉरर्पोरेट जगत का सरकार को पूरा सहयोग है। सरकार को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि देश की शक्ति और संसाधनों में प्रत्येक व्यक्ति को हिस्सेदारी का संवैधानिक अधिकार है, जिससे संपन्नता की असमानता को कम करने में मदद मिलेगी। कल्याणकारी नीतियों के जरिए गरीबी घटाना सरकार की जिम्मेदारी है पर इन नीतियों को कारगर ढंग से लागू करने के लिए भ्रष्टाचारमुक्त जवाबदेह पारदर्शी तंत्र की जरूरत है।(लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं)-डा. अमृत सागर मित्तल (वाइस चेयरमैन सोनालीका)
       


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