‘हम दो, हमारे दो और अब सबके दो’

punjabkesari.in Friday, Apr 06, 2018 - 02:28 AM (IST)

देश की राजधानी दिल्ली में 10 लाख दुकानदारों और व्यवसायियों की रोटी-रोजी पर सीलिंग का ताला लग रहा है। वे सड़क पर हैं और संघर्ष कर रहे हैं। सभी पार्टियां उनका समर्थन कर रही हैं। न्यायालय पूछ रहा है कि गैर-कानूनी तरीके से बने इस सारे निर्माण को कानूनी कैसे कर दिया जाए। इन 10 लाख लोगों के लिए 160 लाख लोगों का जीवन नारकीय क्यों बनाया जाए? 

बढ़ती आबादी की मजबूरी में दिल्ली में गैर-कानूनी बस्तियां बस गईं। सभी नियम और कानूनों की धज्जियां उड़ाकर उन्हें बिजली-पानी दिया जाता रहा। लोग बसे तो दुकानें और व्यवसायी भी आने लग पड़े। दिल्ली की आबादी देश की आबादी के अनुपात के मुकाबले और अधिक तेजी से बढ़ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली को ‘गैस चैम्बर’ तक कह दिया। कई प्रकार की बीमारियां फैल रही हैं। देश की राजधानी में लोगों को संभालना तो एक तरफ, अब नौबत यहां तक पहुंच गई है कि कूड़ा-कचरा भी संभाला नहीं जा रहा है। कूड़े-कचरे का ढेर पहाड़ बन गया, आग सुलगी, गिरा और नीचे दबकर कुछ लोग मर गए। दिल्ली की सड़कों पर प्रतिदिन 1 हजार से अधिक नई गाडिय़ां आ रही हैं। सड़कों पर भीड़, दुर्घटनाएं व जाम आम बात हो गई है। इस समस्या की जड़ में बढ़ती आबादी का विस्फोट है। 

बढ़ती आबादी के कारण अपराधियों की संख्या भी बढ़ रही है। देश की 300 जेलों में लगभग चार गुना अधिक कैदी बंद किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि कैदियों को पशुओं की तरह नहीं रखा जा सकता। यदि रख नहीं सकते तो इन्हें छोड़ दो। देश के लगभग सभी अस्पतालों में भयंकर भीड़ है। कई जगह सरकारी अस्पतालों में एक बिस्तर पर दो रोगी लेटे देखे जा सकते हैं। दिल्ली में एम्स के बाहर भीड़, नीचे लेटे लोग देखकर हैरानी ही नहीं होती, शर्म आती है। देश में सरकारी अस्पतालों की हालत खराब है। प्राइवेट अस्पताल लूट रहे हैं। 

पंजाब सरकार ने गैर-कानूनी खनन के प्रश्र पर हाईकोर्ट में कहा कि इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि रेत की मांग बहुत बढ़ गई है और आपूर्ति कम है। लगभग पूरे देश में खनन माफिया नाम से एक नया माफिया तैयार हो गया। बढ़ती आबादी के लिए अधिक मकान चाहिएं। मकान के लिए रेत और बजरी चाहिए। अधिक मांग के कारण भाव बढ़ गए, मुनाफा अधिक मिलने लगा और गैर-कानूनी तरीके से खनन शुरू हो गया। कई नदी-नालों की रेत निकाल ली, अब खोद-खोद कर आंतडिय़ां भी निकाली जा रही हैं। नदियां नंगी हो रही हैं। इसी कारण कई जगह बाढ़ आई। कई पुल भी टूटने के कगार पर पहुंच गए। भ्रष्टाचार के कारण अधिकारी उनसे मिल जाते हैं, रोकते नहीं और कई जगह रोकने वाले अधिकारियों की हत्या तक की जा रही है। 

देश में बढ़ती बेरोजगारी अब भयंकर रूप लेती जा रही है। नई तकनीक और स्वचालित व्यवस्था के कारण रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं परन्तु रोजगार प्राप्त करने वालों की संख्या बढ़ गई है। चपड़ासी तक के पदों के लिए बी.ए., एम.ए. और पी.एचडी. तक उम्मीदवार बन रहे हैं। बढ़ती बेरोजगारी नौजवानों में निराशा और हताशा फैला रही है। इस निराशा में कुछ नौजवान नशे की ओर जा रहे हैं और कुछ अपराध की दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं। अपराधों के बढऩे का यह भी एक बहुत बड़ा कारण है। देश में विकास हो रहा है परन्तु उसके साथ अमीरी बढ़ रही है और गरीबी भी बढ़ रही है। दुनिया में सबसे अधिक भूखे लोग भारत में रहते हैं और सबसे अधिक आर्थिक विषमता भी भारत में है। देश के 50 करोड़ लोग लगभग 1000 रुपए महीने पर गुजारा करते हैं। 17 करोड़ भुखमरी के दहाने पर जीवन का बोझ ढो रहे हैं। देश में जितना विकास हो रहा है, उतनी ही अमीरी चमक रही है और गरीबी सिसक रही है। 

जो किसान पसीना बहाकर देश के लिए दो समय की रोटी का प्रबंध करता है, रोटी ही नहीं, फल-फूल और कपास पैदा करके हमारे तन ढंकने का प्रबंध भी करता है, वह अन्नदाता किसान आत्महत्या के दहाने पर खड़ा है। लाखों किसान आत्महत्या कर चुके हैं और प्रतिदिन कर रहे हैं। भारत सरकार बहुत अच्छी और नई योजनाओं से गरीब और किसान का विकास करने की कोशिश कर रही है। पिछले 4 वर्षों में बहुत सराहनीय काम हुआ है परन्तु समस्या इतनी भयंकर है कि इन सारी योजनाओं का लाभ प्रति वर्ष बढ़ती आबादी का दानव निगल रहा है। भारत की आबादी 35 करोड़ से बढ़कर 134 करोड़ हो गई। प्रतिवर्ष 1 करोड़ 50 लाख आबादी बढ़ रही है। देश की सभी समस्याओं की जड़ में बढ़ती आबादी की समस्या है। प्रकृति के साधनों की सीमा है। सरकार के साधनों की भी एक सीमा है परन्तु बढ़ती आबादी सभी सीमाएं तोड़ रही है। कुछ वर्ष के बाद भारत चीन को पीछे छोड़कर दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। 

समस्या का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि बढ़ती आबादी की इस समस्या के संबंध में कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही। कोई राजनीतिक दल इस संबंध में कुछ नहीं बोल रहा। भारत सरकार ने अभी एक निर्णय किया है कि जो प्रदेश आबादी संतुलन में सराहनीय काम करेगा, उसे विशेष वित्तीय सहायता दी जाएगी परन्तु यह निर्णय ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ डालने के बराबर भी नहीं है। अब पानी सिर के ऊपर से निकल रहा है। देश और देश के नेताओं को इस बुनियादी सवाल पर जागना चाहिए। देश की भयंकर समस्याओं की चर्चा सब करते हैं परन्तु इन सब समस्याओं की जड़ में जनसंख्या विस्फोट की समस्या पर कोई चर्चा नहीं करता। यह आज के भारत का सबसे बड़ा आश्चर्य है। मैंने इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को एक विस्तृत पत्र लिखा था। दो बार उनसे बात भी हुई है। 

मुझे प्रसन्नता है कि उन्होंने मेरी बात को गंभीरता से सुना। जनसंख्या नियंत्रण एक अति कठिन काम है परन्तु अति आवश्यक भी है। मेरा विश्वास है यह कार्य नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं। उनकी दृढ़ संकल्प शक्ति व देश हित के लिए समर्पित जीवन इस प्रकार के कठिन काम कर सकता है। यदि चीन आबादी रोक सकता है तो नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत भी यह कर सकता है परन्तु इस प्रश्र पर पूरे देश को एक जनमत बनाने की कोशिश करनी चाहिए। एक राष्ट्रीय जनसंख्या नीति बनाई जाए और नया नारा हो ‘‘हम दो, हमारे दो और सबके दो’’। इतना ही नहीं, एक बच्चे वाले परिवार को विशेष प्रोत्साहन दिया जाए क्योंकि आबादी रोकना ही काफी नहीं, आबादी कम भी करनी पड़ेगी।-शांता कुमार


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