हम देश के किसानों-मजदूरों का समर्थन करें

punjabkesari.in Saturday, Dec 18, 2021 - 04:41 AM (IST)

एक वर्ष से अधिक समय तक दिल्ली की सीमाओं के ऊपर ट्रालियों तथा बसों के घर में बैठे किसानों का आंदोलन फतेह के साथ सम्पन्न हो गया। बेशक तीन कृषि कानूनों की वापसी का एकतरफा ऐलान प्रधानमंत्री मोदी ने 19 नवम्बर को ही टी.वी. पर कर दिया था, परन्तु किसानी फसलों के न्यूनतम मूल्य तय करना, किसान-श्रमिकों पर दर्ज हजारों पुलिस केसों की वापसी, संसद में बिजली संशोधन बिल को पेश करने को निलंबित करना, पराली जलाने के बारे में कानूनों में किसानों के विरुद्ध नाजायज सजाओं को खत्म करने जैसे मुद्दों के बारे सरकार के साथ लिखित समझौते होने के बाद ही संयुक्त किसान मोर्चे ने गंभीर विचार-विमर्श करके आंदोलन को स्थगित कर दिया। 11 दिसम्बर को दिल्ली की सरहदों से ‘फतेह मार्च’ शुरू करके किसानों ने घर वापसी की। घर वापसी की घोषणा से किसान और बुलंदी पर चले गए। 

इस सदी का सबसे लम्बा, शांतिपूर्ण तथा अनुशासित किसान संघर्ष एक नया इतिहास रच गया है। बहुत से बुद्धिजीवी तथा राजनेताओं विशेषकर मोदी सरकार की ओर से इन तीनों कृषि कानूनों को किसानों के लिए बेहद फायदेमंद बताया गया तथा आंदोलनकारियों को इन कानूनों की विशेषता जानने की शिक्षा भी दी गई। हर किस्म के आरोप लड़ाई लड़ रहे धरती के बेटों पर लगाए गए। साम्प्रदायिक तथा सरकार समॢथत लोगों ने किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए सिखों तथा कम्युनिस्टों के बीच फर्क डालने की कोशिश की जोकि सफल नहीं हो सकी। इसके विपरीत विभिन्न विचारधाराओं, राजनीतिक प्रतिबद्धताओं, धर्मों तथा जातियों के लोगों में फौलादी एकता स्थापित हो गई। 

इस जनआंदोलन के बिना मोदी सरकार की ओर से तीन कृषि कानूनों की वापसी तो क्या, इस बारे बातचीत या कोई संवाद रचने का सपना भी नहीं देखा जा सकता था क्योंकि धनवान तथा सत्ताधारी लोग जनता की शक्ति को तुच्छ बता कर इसकी अनदेखी करने या शक्ति के बल पर इसे दबाने की नीयत रखते हैं इसलिए वे किसी भी तरह ऐसे शानदार सार्वजनिक आंदोलन को उचित नहीं ठहरा सकते। जिस तरह की खुशी, जोश तथा उत्साह 11 दिसम्बर को दिल्ली की सरहदों से शुरू किए गए फतेह मार्च के दौरान हरियाणा तथा पंजाब के लाखों किसानों, मजदूरों, नवयुवकों, महिलाओं तथा मध्यम वर्ग के लोगों के चेहरों पर देखा गया, उसका उल्लेख करना मुश्किल है। मुश्किलों के दौर में से निकल कर सर्दी, गर्मी और बारिश को सहते हुए कोरोना महामारी के भय को हिम्मत से पछाड़ कर आंदोलनकारी जब फतेह के नारों को लगाते हुए दिल्ली से कूच कर गए तो लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। 

दिल्ली के सिंघु बार्डर से जालन्धर तक का फासला एक लम्बी मानवीय शृंखला का रूप धारण कर गया। 5-7 किलोमीटर के फासले पर सड़कों के किनारों पर लाइनों में नम्रता तथा प्रसन्नता के साथ हाथ जोड़ कर खड़े हरियाणा के नवयुवक, बुजुर्ग तथा महिलाओं ने खुशबूदार ताजे फूलों की आंदोलनकारियों पर वर्षा की। वे लोग आंदोलनकारियों को तरह-तरह के पकवान खिला रहे थे। महिलाएं हरियाणवी परिधान में खुशी से गिद्दा डाल रही थीं तथा मर्द लोग रागनियों का आनंद ले रहे थे। ‘आपसी भाईचारा जिंदाबाद’ जैसा नारा एक नया इतिहास रच रहा था क्योंकि कथित सरकारों तथा मौकापरस्त राजनीतिक दलों ने पंजाब तथा हरियाणा के लोगों के दिलों के अंदर नफरत की दीवार खींचने के जो यत्न किए वह बर्लिन की दीवार की तरह ढह गई। संघर्ष के रंग में रंगे सभी धर्मों, जातियों और भाषा बोलने वाले पुरुष तथा औरतें वर्तमान सरकार को  चुनौती दे रहे थे और मुश्किलों के हल के लिए एक नए संघर्ष के लिए दृढ़ संकल्प को प्रकट कर रहे थे। 

कुछ सरकार समॢथत बुद्धिजीवियों की ओर से इस किसान आंदोलन के प्रति  संशय खड़े करने के लिए कहा जा रहा है कि यदि संसद की ओर से पास किए गए कानूनों को सड़कों पर लोगों की भीड़़ द्वारा रद्द किया जाता है तब देश के लोगों के राज का क्या बनेगा? इसके लिए तर्क यह दिया जाना चाहिए कि संसद के अंदर जो कानून लोगों का रोजगार तथा रोटी छीनने, किसानों की जमीनों को हथियाने, हक और सत्य की आवाज को देश द्रोही बता कर यत्न करने तथा देश के कार्पोरेट घरानों की तिजोरियों को भरने के लिए बनाए जाते हैं, उनको लोगों की अदालत में ही रद्द किया जाना चाहिए। लोकतंत्र का मूल मंत्र आम लोगों के हितों की रक्षा करना होता है न कि चंद धनवान लोगों के हितों की सेवा करना। मोदी सरकार देश के सभी सरकारी विभाग जैसे रेलवे, हवाई सेवाएं, बैंकों, बीमा, स्वास्थ्य, शिक्षा, डाक तार विभाग तथा बिजली इत्यादि कौडि़यों के भाव पर निजी हाथों के सुपुर्द कर रही है। 

किसान मोर्चे के नेताओं से बातचीत के द्वारा मसले का हल करने की सलाह देने वाले भाजपा प्रवक्ता मोदी सरकार को अब यह परामर्श क्यों नहीं देते कि उपरोक्त विभागों के निजीकरण की प्रक्रिया को तुरन्त बंद कर संबंधित लोगों से पहले खुल कर बातचीत की जाए? जब ऐसे लोक विरोधी कदमों पर संसद की मोहर लग जाएगी तब फिर किसान मोर्चे के नक्शे-कदम पर चलते हुए इन सरकारी फैसलों के विरुद्ध एक और बड़ा सार्वजनिक आंदोलन खड़ा करना समय की जरूरत बन जाएगा। आएं हम सभी इंसाफ पसंद लोग देश के करोड़ों किसान मजदूरों तथा उनके हक में आंदोलन का समर्थन करें।-मंगत राम पासला


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News