आने वाली पीढ़ी के लिए हमें एक सुंदर, स्वच्छ, कार्बन न्यूट्रल पर्यावरण छोड़ कर जाना होगा

Sunday, Jun 04, 2023 - 04:43 AM (IST)

हम हर वर्ष 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाते हैं। आने वाले 21 जून को हम ‘विश्व योग दिवस’ मनाएंगे। पर योग की आवश्यकता क्या एक दिन ही होती है? स्वस्थ रहने के लिए तो नियमित दैनिक योगाभ्यास करना चाहिए। इसी प्रकार से पर्यावरण दिवस एक दिन मना कर हमारी जिम्मेदारी पूर्ण नहीं होती अपितु हम अपने दैनिक जीवन में पर्यावरण का महत्व समझें और पर्यावरण संरक्षण की पूरी कोशिश करें। 

केवल औपचारिकता मात्र से हम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते और लक्ष्य है क्या? जहां तक पर्यावरण संरक्षण की बात है तो लक्ष्य यह है कि यह ब्रह्मांड हमें जिस सुंदर अवस्था में मिला था उससे अधिक सुंदर बनाकर हम इसे आने वाली पीढिय़ों के लिए छोड़ कर जाएं। अगर अधिक सुंदर न बना सकें तो कम से कम इसे खराब तो न करें। इसके लिए प्रत्येक नागरिक को-देश, विश्व और आने वाली पीढिय़ों के प्रति अपना योगदान क्रियात्मक तौर पर देना होगा। उदाहरण के तौर पर हर कोई मानता है कि पॉलीथीन और प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बड़े घातक हैं। सरकारें कानून तो बना सकती हैं परन्तु उनको लागू करने में व्यक्ति और समाज का योगदान अति आवश्यक है। 

हम अक्सर यह चर्चा करते और सुनते हैं कि आने वाले समय में शुद्ध जल की बड़ी गंभीर समस्या होगी और कई बार तो यह कहा जाता है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा परन्तु क्या हम अपने दैनिक जीवन में जल बचाने का प्रयास करते हैं? क्या प्रात: ब्रश करते समय या शेव करते हुए हम पानी का नल व्यर्थ में चलता तो नहीं रहने देते? नहाने में या अन्य उपयोग में थोड़ा-थोड़ा पानी बचाना जल संरक्षण के प्रति हमारा योगदान हो सकता है। 

जल संरक्षण के लिए वर्षा जल का संचय करना अनिवार्य होना चाहिए। जल संरक्षण कार्यों के अनुश्रवण और मूल्यांकन करने हेतु एक राज्य स्तरीय टास्क फोर्स होनी चाहिए। सरकारी और गैर-सरकारी भवनों, होटलों, उद्योगों में वर्षा जल को संग्रहण करने के लिए टैंक निर्मित होने चाहिएं, यह अनिवार्य हो। इसके बिना किसी सरकारी अथवा गैर-सरकारी भवन का नक्शा स्वीकृत नहीं होना चाहिए। पन-विद्युत परियोजनाओं के लिए जब पानी डायवर्ट किया जाता है तब भी मुख्य नदी को पारिस्थितिकी का रख-रखाव ठीक प्रकार से करने के लिए 15 प्रतिशत पानी का बहाव मुख्य नदी में अनिवार्य हो। 

जहां भी प्रोजैक्ट निर्माण हो, भवन निर्माण हो या सड़क निर्माण वहां पर पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए डंपिंग साइट का चयन काम शुरू होने से पहले हो और पर्यावरण संरक्षण के लिए बताए गए कदमों को लागू करवाने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों और कर्मचारियों की हो और लापरवाही के मामले में उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी मानी जाए। ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए कोयले व अन्य ईंधन, जीवाश्म ईंधन के जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध हो। 

कुछ छोटे-छोटे सुझाव हैं जो हम व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक तौर पर सहयोग करके पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। जैसे हम स्वयं पॉलीथीन और प्लास्टिक के कैरी बैग्ज का उपयोग पूर्ण रूप से बंद कर दें। ‘पॉलीथीन  हटाओ, पर्यावरण बचाओ’ अभियान को राष्ट्रीय स्तर तक गंभीरता से लागू करके हम बड़ा योगदान डाल सकते हैं। पौधारोपण अधिक से अधिक हो क्योंकि कार्बन को खत्म करने के लिए वन सबसे बड़ा साधन हैं। वैसे तो पेपरलैस कार्यालय की चर्चा और प्रयास हर तरफ हैं, फिर भी जब तक शत-प्रतिशत यह प्रयास लागू नहीं होता तब तक वेस्ट पेपर (व्यर्थ कागज) को रिसाइकिल करके कार्यालयों में पुन: प्रयोग किया जा सकता है। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वाले पत्रकारों, लेखकों, मैगजीनों (पत्रिकाओं), समाचार पत्रों को पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार और सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए। 

पर्यटन क्षेत्रों में आने वाले पर्यटकों  को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने हेतु एक पर्यटक आचार संहिता लागू की जानी चाहिए ताकि उनका योगदान भी सुनिश्चित हो। जिस प्रकार से पर्यावरण दूषित हो रहा है, ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, तथाकथित विकसित देश प्रदूषण फैला रहे हैं। इन परिस्थितियों को देखते हुए आने वाली पीढ़ी के लिए हमारी सबसे बड़ी विरासत एक सुंदर, स्वच्छ, कार्बन न्यूट्रल पर्यावरण उसके लिए छोड़ कर जाना होगा। महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘‘प्रकृति ने हमारी आवश्यकता अनुसार उपयोग के लिए पर्याप्त दिया है पर लोभ के लिए नहीं।’’ इसलिए आवश्यकता के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करें, शोषण नहीं। 
कार्बन तटस्थता के लिए हमारा नारा हो:
‘हर नागरिक बने पर्यावरण प्रहरी प्र्र्रखर,
पर्यावरण संरक्षण में विकास की डगर।-प्रेम कुमार धूमल (पूर्व मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश)

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