हम गरीब और अमीर के बीच की खाई पाटने में सक्षम नहीं

Thursday, Sep 08, 2022 - 05:10 AM (IST)

रेवड़ी बांटने की बढ़ती प्रवृत्ति पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा व्यक्त की गई चिंता ने मुफ्त और कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर पर एक बहस छेड़ दी है। सुप्रीमकोर्ट ने भी राजनीतिक दलों पर चुनाव से पहले मुफ्त के वायदे करने और मतदाताओं से कई तरह के वायदों की घोषणा करने पर अपनी चिंता व्यक्त की है। इसने चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों पर जबरन तरीके से लगाम लगाने के तरीके खोजने को कहा है। हालांकि चुनाव आयोग ने इस मुद्दे में शामिल होने से इंकार करते हुए कहा कि यह विधायिका के लिए प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों और नेताओं के प्रतिस्पर्धी वायदों पर फैसला करना है। 

इस सवाल के लिए कि क्या विभिन्न प्रकार की सबसिडी और कल्याणकारी योजनाओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। इसका जवाब जोर से नहीं आता। देश में आॢथक और सामाजिक विकास के मामले में असमानताओं को देखते हुए नागरिकों के भाग्य में एक व्यापक अंतर है। विभिन्न सर्वेक्षणों से यह अच्छी तरह से जाहिर हो चुका है कि देश की एक प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 51.5 प्रतिशत है जबकि निचले 40 प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्र की कुल सम्पत्ति का सिर्फ 5 प्रतिशत है। जहां अमीरों ने महामारी की अवधि के दौरान अपनी सम्पत्ति को लगभग दोगुना कर लिया वहीं इस अवधि के दौरान गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या भी दोगुनी हो गई है। 

इन कारकों को देखते हुए देश सभी सबसिडी और कल्याणकारी योजनाओं को समाप्त करके न्याय नहीं कर सकता। हालांकि वास्तविक कल्याणकारी उपायों के लिए और केवल मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए धन का वितरण करने में अंतर किया जाना चाहिए। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ने हाल ही में पंजाब में सभी महिलाओं को मासिक नकद भुगतान देने का वायदा किया था। जबकि गरीबों या फिर वंचितों के लिए इस तरह की नकदी का आश्वासन देना उचित हो सकता था। 

सभी महिलाओं के लिए नकद का अधिकार निश्चित रूप से उचित नहीं था। इसी तरह सभी को एक निश्चित संख्या में कुछ यूनिट तक मुफ्त बिजली देना उचित नहीं है। जब राज्य को बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए वास्तव में धन की सख्त जरूरत है। फिर भी यह सरकार का कत्र्तव्य है कि वह गरीबों के उत्थान में मदद करे और उन्हें जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने और उन्हें मंच प्रदान करने के लिए सुविधाएं और रियायतें प्रदान करे। भारत एक कल्याणकारी देश है और सफल संस्कारों ने वास्तव में जीवन स्तर में सुधार करने में योगदान दिया है। जबकि भुखमरी या कुपोषण से गरीब लोगों की मौत के बारे में लगातार समाचार आते रहे हैं। 

यह ध्यान देने योग्य है कि लम्बे समय से ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है। अत्यधिक सबसिडी वाले गेहूं और अनाज की आपूर्ति तथा मनरेगा जैसी योजनाओं ने गरीबों और वंचितों की दुर्दशा में सुधार करने के लिए एक लम्बा सफर तय किया है। इसी तरह तमिलनाडु में ‘अम्मा की रसोई’ जैसी अन्य योजनाएं लोगों को अत्यधिक रियायती भोजन उपलब्ध करवा रही है। छात्राओं को सबसिडी वाली स्कूटी या टैबलेट और कम्प्यूटर उपलब्ध करवाने जैसी योजनाओं ने शिक्षा के प्रसार को प्रोत्साहित करने में मदद की है। 

जहां तक कृषि सबसिडी का सवाल है भारत अभी भी कई अन्य देशों में किसानों को प्रदान की जाने वाली सबसिडी की सीमा प्रदान कर रहा है। जबकि गरीबों के लिए दी जाने वाली इस तरह की सबसिडी पर आलोचकों द्वारा हमला किया जाता है। उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता। जब सरकार कार्पोरेट टैक्स की दरों में कटौती या करोड़ों रुपए के ऋण को माफ करने के माध्यम से उद्योग के लिए प्रोत्साहन शब्द का उपयोग करती है।

संक्षेप में कहें तो गरीब और वंचित वर्ग के लोग उत्थान के लिए सबसिडी योजनाओं के पात्र हैं। यह हमारी सामूहिक विफलता रही है कि हम गरीब और अमीर के बीच की खाई को पाटने में सक्षम नहीं। हालांकि निष्फल व्यय या निष्फल व्यय की ओर ले जाने वाले वायदे कम किए जाने चाहिएं। प्रमुख राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर आत्ममंथन करने की आवश्यकता है।-विपिन पब्बी 
 

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