जरूरी हैं जल संरक्षण के प्रयास

punjabkesari.in Sunday, Jul 23, 2023 - 05:09 AM (IST)

इस समय देश के कई हिस्से बारिश और बाढ़ से जूझ रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम मानसून के दौरान बारिश के पानी को बचाने का कोई प्रयास नहीं करते हैं। इसलिए बारिश में बड़ी मात्रा में जल बेकार बह जाता है। इस बारिश में हम जल संरक्षण के माध्यम से बारिश के पानी का सदुपयोग कर सकते हैं। इससे एक तरफ जल संकट कम होगा तो दूसरी तरफ हम जल को बेकार बह देने के पाप से भी बच जाएंगे। 

इस दौर में जबकि जल संकट लगातार गहराता जा रहा है, हम जागरूक रहकर काफी मात्रा में पानी बचा सकते हैं। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी विश्व जल रिपोर्ट में जल संकट को लेकर चिन्ता व्यक्त की गई थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि कृषि की बढ़ती जरूरतों ,खाद्यान्न उत्पादन ,ऊर्जा उपभोग, प्रदूषण और जल प्रबंधन की कमजोरियों की वजह से स्वच्छ जल पर दबाव बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार विश्व के कई देश गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं। ऐसी स्थिति में यदि पानी की बर्बादी नहीं रोकी गई तो यह समस्या विकराल रूप ले सकती है। हमारे देश में भी वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि भू-जल स्तर घटने के कारण जल्दी ही देश को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ेगा। 

बुद्धिजीवियों द्वारा जब भी जल संकट की चर्चा की जाती है तो इस चर्चा में वर्षा जल के संग्रहण की सलाह दी जाती है। सरकार जन-जागरण अभियान के तहत सरकारी औपचारिकताओं को निभाने के लिए पत्र-पत्रिकाओं में भी वर्षा जल संग्रहण के विज्ञापन प्रकाशित कराती है। लेकिन इस मामले में अभी तक नतीजा ढाक के तीन पात ही है। गौरतलब है कि भारत में मात्र 15 प्रतिशत जल का ही उपयोग होता है शेष जल बेकार बहकर समुद्र में चला जाता है। इस मामले में इसराईल जैसे देश ने, जहां वर्षा का औसत 25 सेमी से भी कम है, एक अनोखा उदाहरण पेश किया है। वहां जल की एक बूंद भी खराब नहीं जाती है। 

अतिविकसित जल प्रबंधन तकनीक के कारण वहां जल की कमी नहीं होती है। जल संकट से निपटने के लिए हमें भी अपने देश में ऐसा ही उदाहरण पेश करना होगा। वर्षा के जल को जितना हम जमीन के अंदर जाने देंगे उतना ही हम जल संकट को दूर रखेंगे। इस विधि से मिट्टी का कटाव भी रुकेगा और हमारे देश को सूखे और अकाल का सामना भी नहीं करना पड़ेगा। एक आंकड़े के अनुसार यदि हम देश के जमीनी क्षेत्रफल में से सिर्फ 5 फीसदी क्षेत्र में होने वाली वर्षा के जल का संग्रहण कर सकें तो एक बिलियन लोगों को प्रति व्यक्ति सौ लीटर पानी प्रतिदिन मिल सकता है। 

आज हालात यह हैं कि वर्षा का 85 फीसदी जल बरसाती नदियों के माध्यम से समुद्र में बेकार बह जाता है। फलस्वरूप निचले इलाकों में बाढ़ आ जाती है। यदि इस जल को जमीन के भीतर पहुंचा दिया जाए तो इससे एक ओर बाढ़ की समस्या काफी हद तक समाप्त हो जाएगी वहीं दूसरी ओर भू-जल स्तर भी बढ़ेगा। जनसंख्या में हुई तीव्र वद्धि से हमारे देश में जल की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। हालांकि सतही एवं भूमिगत दोनों ही स्रोतों से जल का उपयोग किया जा रहा है लेकिन भूमिगत जल पर हमारी निर्भरता कुछ अधिक ही है। भूमिगत जल की अत्यधिक निकासी से इसका जल स्तर लगातार नीचे खिसकता जा रहा है। गौरतलब है कि दुनिया के क्षेत्रफल का लगभग 70 फीसदी भाग जल से भरा हुआ है लेकिन पीने लायक मीठा जल सिर्फ 3 फीसदी ही है। शेष खारा जल है। इसमें से भी हम सिर्फ एक फीसदी मीठे जल का ही उपयोग करते हैं। 

धरती पर उपलब्ध सम्पूर्ण जल, जलचक्र में चक्कर लगाता रहता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि औद्योगीकरण एवं जनसंख्या विस्फोट के कारण जहां एक ओर जल प्रदूषण बढ़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर जल चक्र भी बिगड़ता जा रहा है। हालांकि विश्व में उपलब्ध कुल जल की मात्रा आज भी उतनी ही है जितनी कि 2 हजार साल पहले थी। अन्तर है तो बस इतना कि उस समय पृथ्वी की जनसंख्या आज की तुलना में सिर्फ 3 फीसदी ही थी।  हमारे देश में समस्त उपलब्ध जल के 90 प्रतिशत का उपयोग कृषि उत्पादन में किया जाता है, जिसमें खाद्य उत्पादन का अनुपात 35 प्रतिशत है। यदि कृषि उत्पादन में समुचित जल निकासी एवं जल उपयोग के वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाए तो 20 फीसदी तक जल की बचत हो सकती है। इसी प्रकार दुनिया का लगभग 22 फीसदी जल उद्योगों में उपयोग किया जाता है। यदि औद्योगिक क्षेत्र पानी की बचत करना शुरू करें और पानी का दोबारा उपयोग सुनिश्चित करें तो इस संकट से काफी हद तक बचा जा सकता है। 

हालांकि जल संकट से निपटने हेतु जल संग्रहण के प्रति आम जनता जागरूक नहीं है लेकिन कुछ स्थानों पर स्थानीय लोगों ने जल संग्रहण के सराहनीय प्रयास किए हैं जो अनुकरणीय है। जल संरक्षण के क्षेत्र में सुंदर लाल बहुगुणा और जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जैसे व्यक्तित्व भी हमें प्रेरणा दे सकते हैं। आज हमने भले ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो लेकिन मौजूदा जल संकट से निपटने हेतु आज भी हमें अपनी पुरानी तकनीक को ही अपनाना होगा। हम स्वयं भी अपने मकान की छत पर वर्षा जल को एकत्रित करके मकान के नीचे भूमिगत अथवा भूमि के ऊपर टैंक में जमा कर सकते है। 

प्रत्येक बारिश के मौसम में सौ वर्ग मीटर आकार की छत पर 65000 लीटर वर्षा जल एकत्रित किया जा सकता है जिससे 4 सदस्यों वाले एक परिवार की पेयजल और घरेलू जल आवश्यकताएं 160 दिनों तक पूरी हो सकती हैं। भारत जैसे देश में जहां पानी का प्रमुख स्रोत बरसात ही है वहां पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग या पानी को जमा करना बेहतर उपाय है।-रोहित कौशिक
 


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