कोविड-19 से ‘युद्ध’ तथा उसके आगे

punjabkesari.in Sunday, Mar 22, 2020 - 04:10 AM (IST)

जब आप रविवार को यह लेख पढ़ेंगे, यह स्पष्ट हो जाएगा कि भारत कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध में आगे है या पीछे। केंद्र सरकार वीडियो कान्फ्रैंसिंग करने में व्यस्त थी और प्रभावित देशों से भारतीयों को स्वदेश भेज रही थी। इसके अलावा हाथ धोने, अपना नाक और मुंह ढकने तथा मुखौटा पहनने की एडवाइजरी जारी कर रही थी। 19 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को एक विशेष अपील की। यह आवश्यक भी थी, मगर क्या यह काफी है? 

मैंने ध्यानपूर्वक एक संख्या को देखा है, लोगों की ऐसी गिनती है जो कोविड-19 से पॉजीटिव पाए गए।  यह सरकार द्वारा दर्शाया गया है। 1 मार्च को कोविड-19 से प्रभावित लोगों की संख्या 2 थी, 8 मार्च को यह उछाल लेकर 32 हो गई तथा इसके बाद 111, 15 मार्च को ही। मेरा लेख छपने तक इनकी गिनती सैंकड़ों में हो जाएगी। पॉजीटिव टैस्ट पाए जाने वाले लोगों की गिनती निरंतर बढ़ रही है, जो चिंता का विषय है। 

संकोच क्यों? 
विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा इंडियन कौंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च तथा कई महामारीविदों की ओर से काफी चेतावनी दी जा चुकी है। सभी चेतावनियों का एक ही परिणाम था, वह यह कि संक्रमित लोगों की गिनती नाटकीय ढंग से बढ़ रही है और बढ़ेगी, यदि हमने कड़े, दर्दनाक तथा प्रभावी उपायों को नहीं अपनाया। मेरा यह कत्र्तव्य बनता है कि मैं पी.एम. मोदी का समर्थन करूं और ऐसा मैं करूंगा भी। उन्होंने लोगों को इस दुश्मन बीमारी से लडऩे के लिए कहा है क्योंकि यह सबकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है। मुझे यकीन है कि प्रधानमंत्री एक बार फिर कुछ ही दिनों में और कड़े सामाजिक तथा आर्थिक उपाय लेकर आएंगे। मैं सभी कस्बों तथा शहरों के लिए दो-चार सप्ताह का अस्थायी लॉकडाऊन करने का आग्रह करता हूं। कोविड-19 का अन्य समानांतर तौर पर बेहद चिंताजनक विषय यह है कि इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। प्रधानमंत्री ने सूचित किया कि वर्तमान आर्थिक मंदी पर कोविड-19 की मार पड़ी है मगर यह सत्य नहीं। जी.डी.पी. की वृद्धि दर में गिरावट की शुरूआत कोविड-19 से पूर्व की तिथियों से हुई थी। वृद्धि दर में गिरावट सात निरंतर तिमाहियों के दौरान दिखी। जनवरी-मार्च का डाटा निश्चित तौर पर इजाफे को नहीं बताता। जनवरी-मार्च तिमाही 2020 पूर्व की तिमाहियों की तरह बुरी होगी। 

सिर पर आया संकट
यह मानना सही होगा कि कारोबार इससे प्रभावित होगा। बड़ी फैक्टरियों ने अपने कर्मियों को निकाल दिया और उनसे सप्ताह में तीन या चार दिन ही काम ले रहे हैं। कैजुअल तथा अस्थायी नौकरियां छंट गई हैं। यदि नहीं भी छंटीं तो छंट जाएंगी। बड़े निर्माताओं द्वारा सप्लाई के लिए ऑर्डरों में भी कमी देखी गई है। छोटे निर्माता नकदी प्रवाह की समस्या से जूझ रहे हैं। कच्चे माल की आपूर्ति भी प्रभावित हुई है। उधार तो पूरी तरह सूख चुका है। मैं इसके लिए सरकार को दोष दूंगा क्योंकि वह नीतियों के गठन करने में असफल रही और न ही उसने गिरावट पर पकड़ बनाने के लिए कोई सही उपाय ढूंढा। मैं अपनी आलोचना को वैध ठहराता हूं। हालांकि कोरोना वायरस के फूटने का आरोप सरकार पर नहीं मढ़ा जा सकता। 

फिर भी कोरोना वायरस के चलते सरकार आर्थिक ढलान के लिए जिम्मेदार है। सरकार का यह पहला कत्र्तव्य बनता है कि वह रोजगार तथा मजदूरी की रक्षा करे। सरकार को तेजी से ऐसे सैक्टरों को चिन्हित करना चाहिए जिसमें नौकरियां खतरे में हैं। सरकार को इन कदमों के लिए भी यकीनी बनाना चाहिए कि रोजगार तथा मजदूरी का वर्तमान स्तर बना रहे। सभी उपाय पंजीकृत कर्मचारियों पर लागू होने चाहिएं। टैक्स उधार, ब्याज, मोहलत तथा प्रत्यक्ष ग्रांटों के माध्यम से नियोक्ताओं का घाटा पूरा किया जाए। दूसरा स्तर अनौपचारिक सैक्टर का है। लाखों की तादाद में नौकरियां निर्माण तथा सेवाएं जैसे परिवहन, पर्यटन, मुरम्मत, होम डिलीवरी इत्यादि से संबंधित हैं। ब्याज दरों को कम कर, कर उधारी तथा खरीद को बढ़ाकर सरकार का समर्थन प्राप्त किया जा सकता है। 

इसके बाद कृषि क्षेत्र आता है। किसान फसल की बुआई, सिंचाई, खाद्य तथा फसल की कटाई करना जारी रखेंगे। प्रधानमंत्री की किसान योजना का कवरेज जमींदार किसानों तक सीमित है। यहीं से सुधार की जरूरत है। पी.एम. किसान योजना के तहत स्थानांतरित की गई राशि को दोगुना कर 12 हजार किया जाना चाहिए। तत्काल ही जोतदार किसानों को स्कीम के तहत लाना चाहिए और प्रत्येक परिवार को 12 हजार रुपए दिए जाने चाहिएं। एक बार जमींदार किसान तथा जोतदार किसान की भरपाई हो जाए तब रोजाना कृषि कर्मियों को बचाया जा सकता है। यहां पर गैर-कृषि रोजाना कर्मचारी भी हैं जोकि कार्य में जुटी जनसंख्या के बीच ज्यादा चपेट में हैं। प्रत्येक ब्लॉक में एक रजिस्टर खोला जाना चाहिए तथा मासिक अलाऊंस के लिए डेली वर्कर को रजिस्टर से जोड़ा जाना चाहिए। कांग्रेस घोषणापत्र के ‘न्याय’ में यह विचार शामिल है। अलाऊंस को तीन से छह माह के लिए दिए जाने की जरूरत है। मगर इस बोझ को देश को स्वेच्छा से झेलना होगा। 

इन सबके लिए पैसे की जरूरत होगी। यह पैसा तभी खोजा जा सकता है, यदि केंद्र तथा राज्य सरकारें फालतू खर्चों को निर्मम तरीके से बाहर कर डालें। दूसरी बात यह है कि केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा थोड़ा रोजगार उत्पन्न करने वाली लम्बी परियोजनाओं को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया जाएगा। आर.बी.आई. को चाहिए कि वह दरों को तेजी से कम करे। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के साथ-साथ वित्तीय स्थिरता भी आर.बी.आई. का उद्देश्य होना चाहिए। अभी ऐसा कोई अनुमान नहीं कि कितना पैसा अपेक्षित होगा। 2020-21 के बजट के अनुसार केंद्र सरकार का कुल खर्चा 30,42,230 करोड़ होगा। सभी राज्य सरकारें इकट्ठी होकर 40 से 45 लाख करोड़ खर्चेंगी। इस तरह के खर्चे की ओर देखते हुए यह निश्चित तौर पर खोजना होगा कि अगले 6 माह के दौरान कोविड-19 से लडऩे के लिए 5 लाख करोड़ चाहिएं। यह नैतिक तथा आॢथक तौर पर अनिवार्य है कि हमें पैसा चाहिए।-पी. चिदम्बरम


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