विधानसभा चुनावों में जनता के निर्णय का इंतजार

Friday, Apr 16, 2021 - 04:45 AM (IST)

2 मई आने को है। हमें पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु तथा केंद्र शासित क्षेत्र पुड्डुचेरी में हुए विधानसभा चुनावों में जनता के निर्णय का पता चल जाएगा। विभिन्न दलों के घोषणा पत्रों में बड़ी संख्या में वायदे किए गए हैं। एक-दूसरे पर काफी आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए हैं, विशेषकर 8 चरणों वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान। भाजपा नेतृत्व ने अपनी विजय के लिए बंगाल को अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाया है। इतनी ही रुचि इसे असम में सत्ता में बने रहने में है। अपना उद्देश्य प्राप्त करने के लिए भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है। इसका मुख्य निशाना ममता बनर्जी तथा इसकी पार्टी तृणमूल (टी.एम.सी.) कांग्रेस पर है। 

बंगाल में भाजपा के अचानक उत्थान का श्रेय ‘हिंदुत्व’ के नारे को जाता है। ऐसा नहीं है कि टी.एम.सी. को अपने ङ्क्षहदुत्व के आधार का अभाव है, मगर इसने खुद की एक सर्व-समेकित धर्मनिरपेक्ष छवि पेश की है। ऐसा लगता है कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं को तोडऩे के मद्देनजर भगवा पार्टी मनोवैज्ञानिक खेलों में व्यस्त है। पार्टी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर का ही मामला ले लें। भाजपा यह बताने के लिए कि टी.एम.सी. पश्चिम बंगाल चुनावों में पहले ही ‘अपनी हार स्वीकार कर चुकी है’ आडियो ऐप क्लबहाऊस पर पत्रकारों के साथ उनकी बातचीत के चुनिंदा हिस्सों का  इस्तेमाल कर रही है। भगवा पार्टी उनकी जिस टिप्पणी को दोहराने से बच रही है वह यह है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में 100 सीटों के आंकड़े को पार नहीं करेगी? 

कूच बिहार में मतदान के चौथे चरण के दौरान सी.आर.पी.एफ. द्वारा की गई गोलीबारी में 4 ग्रामीणों की मौत हो गई। ऐसा बताया जाता है कि  सुरक्षाबलों ने तब गोलियां दागीं जब यह अफवाह फैलने के बाद कि सी.आई.एस.एफ. के जवानों ने एक 12 वर्षीय लड़के की पिटाई की है, सुरक्षाबलों को घेर लिया था। बंगाल के पारंपरिक सूती कुर्ताधारी ‘भद्र लोग’ में आते बदलाव के बीच  राज्य में अफवाहें जमीनी हकीकतों के साथ-साथ चलती हैं। वर्षों के दौरान सत्ता के शिखर पर पहुचंने के लिए टी.एम.सी. ने सावधानीपूर्वक सितारों को अपने खेमे में शामिल किया। इस बार भाजपा ने वही रास्ता अपनाया है। इसने टी.एम.सी. के कुछ वरिष्ठ नेताओं को अपने खेमे में शामिल कर लिया है। यह अलग बात है कि इनमें से कुछ टी.एम.सी. नेताओं पर भाजपा ने किसी समय भ्रष्ट होने का आरोप लगाया था। अब वे उन्हें भगवा पार्टी के बैनर तले लाने के लिए गर्व महसूस करते हैं। 

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, ‘यह चुनाव लोगों को बंगाल को गुजरात में बदलने से रोकने के लिए है।’ हमें यह देखने के लिए प्रतीक्षा करनी होगी कि कैसे गुजरात के लोग शक्तिशाली व्यक्ति-प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह बंगाल में धारा बदलने में सफल होते हैं। अपने हाई-प्रोफाइल प्रचार तथा रोड शोज के लिए उनके पास अकूत धन तथा स्रोत हैं। कोई हैरानी नहीं कि ममता बनर्जी अमित शाह से पूछती हैं कि ‘आपके पास कितना धन है...आप करोड़ों खर्च कर  रहे हैं...आपको कहां से इतना अधिक धन प्राप्त हुआ?’ 

ऐसे बड़े प्रश्रों का कोई तैयार उत्तर नहीं है। अमित शाह बस इतना ही कहते हैं कि ‘मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य में अराजकता पैदा करने का प्रयास कर रही हैं।’ पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का कहना है, ‘मतदाताओं को हमारा संदेश विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ वोट डालने का है जो उन मूल्यों के लिए एक खतरा हैं जो पश्चिम बंगाल की संस्कृति का आधार हैं।’ दिलचस्प बात यह है कि 2016 के विधानसभा चुनावों की तुलना में 4 राज्यों असम, तमिलनाडु, केरल तथा केंद्र शासित क्षेत्र पुड्डुचेरी, जहां 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए मतदान अप्रैल के शुरू में हो गया, में 530 सीटों के लिए मतदाताओं की संख्या में 90 प्रतिशत की गिरावट आई है। 

ऐसा ही तमिलनाडु में 86 प्रतिशत, केरल में 95 प्रतिशत, असम में 90 प्रतिशत तथा पुड्डुचेरी में सभी सीटों पर हुआ जहां 2016 के मुकाबले मतदाताओं की संख्या में कमी दर्ज की गई। संख्या में कमी के बावजूद असम तथा पुड्डुचेरी में सभी सीटों पर 60 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ। दूसरी ओर तमिलनाडु तथा केरल में क्रमश: केवल 17 प्रतिशत तथा 6 प्रतिशत सीटों पर 80 प्रतिशत से अधिक मतदान दर्ज किया गया, अधिकांश शहरी क्षेत्रों में। एक प्रमुख अखबार द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण के मुताबिक मतदान 60 प्रतिशत से कम था। 

केरल में मतदान के दिन सबरीमाला मंदिर का मुद्दा प्रमुखता से सामने आया। इस संदर्भ में यह जानना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि देवता ‘सत्ताधारी (माकपा) नीत एल.डी.एफ. के साथ हैं। सबरीमाला स्थित देवता अयप्पा इसलिए एल.डी.एफ. के साथ हैं क्योंकि यह सरकार संकट के समय लोगों के साथ खड़ी रही।’ वह बाढ़ों तथा कोविड लॉकडाऊन के दौरान राज्य सरकार के कल्याणकारी कदमों की बात कर रहे थे। माक्र्सवादियों द्वारा भगवान के नाम पर पत्ते खेलना अवश्य भाजपा तथा कांग्रेस के लिए एक झटके के तौर पर आया होगा। हमें 2 मई को पता चल जाएगा कि देवता केरल, जो देवताओं की ही धरती है, में किस ओर होते हैं। 

जहां तक जमीनी हकीकतों की बात है सभी राज्यों में लोग नौकरियां, अच्छा रहन-सहन, स्वास्थ्य सेवाएं चाहते हैं न कि बड़े-बड़े वायदे। यद्यपि भारत में राजनीति एक सिरे से दूसरे सिरे तक डोलती रहती है। कोई हैरानी नहीं कि हमारी एक बहुआयामी राजनीति है जो सभी राजनीतिक दलों की सत्ता के लिए आशाओं को जीवित रखती है।-हरि जयसिंह
 

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