मतदाताओं को ‘खोखली घोषणाओं’ से मूर्ख नहीं बनाया जा सकता

Thursday, Feb 21, 2019 - 05:36 AM (IST)

भारत में किसी भी तरह का चुनाव जीतने के लिए जनता का सहज ज्ञान बहुत मायने रखता है विशेषकर राष्ट्रीय स्तर पर और इस बार चुनावी एजैंडा निर्धारित करने की बारी विपक्ष की है। नरेन्द्र मोदी के सामने 2014 में यू.पी.ए.-2 से संबंधित काफी मुद्दे थे जिनमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, राजनीतिक जड़ता तथा आर्थिक मंदी जैसे मुद्दे शामिल थे। इन मुद्दों ने देश के दूरदराज के गांवों तक भी लोगों का ध्यान खींचा, उसके परिणामस्वरूप भाजपा ने 282 सीटें जीत लीं और कांग्रेस लोकसभा में महज 44 सीटों पर सिमट गई। 

इस तरह से मोदी के पास पूर्ण नियंत्रण था और उनकी वाकपटुता ने मतदाताओं के दिलों को जीत लिया। यह एक ‘वन मैन शो’ था जिसे मोदी लहर में बदल दिया गया तथा कांग्रेस रक्षात्मक बन गई। चूंकि यह बाध्यताओं तथा अस्तित्व की राजनीति है, जिस कारण धुर  विरोधी  भी एक-दूसरे के साथ आ गए हैं। एक साधारण मंत्र यह है कि यदि आप लड़ाई के मैदान में एक और दिन जीवित रहते हैं केवल तभी आप दुश्मन को हराने की आशा कर सकते हैं। इसी तरह से तब क्षेत्रीय नेता मोदी के हमले से बच गए थे और भविष्य में अपने राज्यों पर शासन करने की आशा कर सकते हैं अन्यथा उनका भविष्य खत्म हो जाएगा। 

खतरनाक अवधारणा
भारतीयों की आशाओं से संबंधित जनता की सबसे खतरनाक अवधारणाओं में से एक है जैश-ए-मोहम्मद द्वारा सी.आर.पी.एफ. पर हमले, जिसमें 40 से अधिक जवान शहीद हो गए थे, को लेकर पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए युद्ध का विकल्प। मगर भारत सरकार सहित दुनिया की कोई भी सरकार युद्ध की तैयारी के बिना दुश्मन देश पर हमला नहीं कर सकती और यह इस संबंध में दुनिया की राय को नजरअंदाज नहीं कर सकती, जो हमारे एक अन्य दुश्मन चीन को हमारे खिलाफ खड़ा होने के लिए आकॢषत करती है। इस विकट परिस्थिति में लोग मोदी के खिलाफ हो सकते हैं और विपक्ष पर भी संकट होगा, जिस कारण वह राजग पर दुश्मन के सामने आत्मसमर्पण करने का आरोप लगाएगा। इस तरह की अवधारणा चुनावों में आत्मघाती साबित हो सकती है। 

देश की राजनीति ने पांच वर्षों का चक्र पूरा कर लिया है और अब अच्छे दिन, प्रत्येक के खाते में 15 लाख रुपए डालने, 2जी टैलीकाम घोटाला, आर्थिक मंदी, जी.एस.टी. तथा नोटबंदी जैसे वायदे चुनावों में भाजपा को सता सकते हैं जिससे वह रक्षात्मक मुद्रा में आ जाएगी। हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हारना भी भाजपा के लिए संकट पैदा कर सकता है क्योंकि अतीत में कभी भी दक्षिण भारतीय राज्य इसे बचाने के लिए आगे नहीं आए। 

राफेल बनाम बोफोर्स
राफेल सौदे के बचाव को लेकर राजग सरकार दुविधा में है जिसका दोहन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ऐड़ी-चोटी का जोर लगाकर कर रहे हैं। राफेल सौदे में समानांतर वार्ता के आरोप प्रधानमंत्री कार्यालय पर लगाए जा रहे हैं और अंग्रेजी के एक प्रमुख समाचार पत्र ने दस्तावेजों के साथ लेख छापे हैं जो भ्रष्टाचाररोधी धाराओं को हटाने, बैंक गारंटी न होने तथा एसक्रो खाते पर रोशनी डालते हैं। जिस कारण भारत सरकार ने सीधे डसाल्ट कम्पनी को भुगतान किया। यदि इन पर विश्वास किया जाए और ये अनियमितताओं का प्रभाव डालते हैं तब ये सम्भव: प्रधानमंत्री की छवि को चोट पहुंचा सकते हैं।

जब पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए तो बोफोर्स घोटाले ने एक नई ऊंचाई हासिल कर ली तथा लोगों ने इस पर विश्वास करके कांग्रेस को सत्ता से बाहर फैंक दिया। क्या राफेल भी भाजपा को उसी तरह चोट पहुंचाएगा? क्या कैग की रिपोर्ट ने आग बुझा दी है? क्या मतदाता कथित घोटाले पर विश्वास करेंगे? इन प्रश्रों के उत्तर होने वाले चुनावों के परिणामों में छुपे हैं। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि कृषि ऋण माफी ने कांग्रेस को तीन राज्यों में चुनाव जीतने में मदद की है लेकिन राजग सरकार ऐसे गफ्फों को बेकार कार्रवाई समझती है। जिससे किसानों की समस्या का समाधान नहीं होगा, इसलिए यह किसानों को और परेशानी में डाल सकती है। किसानों को खुश करने के लिए अंतिम समय पर प्रधानमंत्री द्वारा उनके खाते में 6 हजार रुपए डालने का उपक्रम किसानों को सम्भवत: संतुष्ट नहीं कर पाएगा, जिनको फसल खराब होने से नुक्सान उठाना पड़ा है। 

राजग सरकार ने समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की है लेकिन इसके प्रभाव बारे कुछ भी निश्चित नहीं है क्योंकि यह बहुत देरी से लागू की गई है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंद्र सिंह हुड्डा ने 2014 के विधानसभा चुनावों से पहले 20,000 करोड़ रुपए के गफ्फों की घोषणा की थी लेकिन 90 सदस्यीय सदन में मात्र 18 सीटें ही हासिल कर सके क्योंकि मतदाताओं   को ऐसी घोषणाओं से मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। 

मोदी अभी भी लोकप्रिय नेता
इस तथ्य के बावजूद कि 2019 काचुनाव तथा राजनीतिक परिदृश्य 2014 के मुकाबले पूरी तरह से भिन्न होगा, मोदी की लोकप्रियता किसी भी अन्य नेता के मुकाबले कहीं अधिक है इसलिए भाजपा इन चुनावों को राष्ट्रपति चुनावों की तरह बनाना चाहेगी। भविष्य में भारतीय राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए विपक्षी दलों की बाध्यता के मद्देनजर गठबंधन राज्यों के आधार पर तथा गणित पर आधारित होना चाहिए ताकि भाजपा को पराजित किया जा सके। हो सकता है महागठबंधन न बन पाए लेकिन क्षेत्रीय दलों के बीच राज्यों के आधार पर गठबंधन भाजपा के लिए घातक साबित हो सकते हैं।

जिन राज्यों में कांग्रेस के पास मत प्रतिशत नहीं है, वहां इसे क्षेत्रीय दलों के साथ बराबरी के साथ काम करना होगा और विपक्ष का नेतृत्व करने की अपनी महत्वाकांक्षा छोडऩी होगी क्योंकि बहुत से नेता इसे स्वीकार नहीं करेंगे। अत: नेतृत्व का मुद्दा चुनावों के बाद के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। विपक्ष राजग सरकार के प्रति वर्ष 2 करोड़ नौकरियां पैदा करने में असफल रहने के मुद्दे को भुना रहा है, जिसका वायदा मोदी ने पिछले चुनाव में किया था। नीति आयोग द्वारा जारी आंकड़े ने इस मोर्चे पर सरकार का बचाव करने का प्रयास किया है लेकिन बुद्धिजीवी इसकी वैधता पर संदेह जताते हैं। प्रधानमंत्री अपने बचाव में असंगठित क्षेत्रों में बड़ी नौकरियां पैदा होने का हवाला देते हैं।-के.एस. तोमर

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