वोट जरूर डालें, मगर किसे

punjabkesari.in Tuesday, Feb 08, 2022 - 05:18 AM (IST)

वोट इसलिए डालना है कि इस वोट की खातिर हमारे पुरखों ने अपना खून बहाया था। इसलिए कि भारत का प्रत्येक नागरिक, जिसकी आयु 18 वर्ष हो चुकी है उसे अपना संवैधानिक कत्र्तव्य निभाना है। इसलिए कि मतदाता लोकतंत्र का नायक है, उसे एक सरकार बनानी है। चुनाव द्वारा ही सरकार को वैधता प्राप्त होती है। लोकतंत्र में शासन चलता ही लोगों के वोट डालने से है। इसीलिए संविधान में व्यवस्था दी गई है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हों। संविधान के अनुच्छेद 326 के अंतर्गत प्रत्येक व्यस्क को वोट डालने का अधिकार प्राप्त है। ‘मतदान’ अर्थात अपने ‘विचार का दान’। दान लालच भाव से या किसी आशा से नहीं किया जाता। ‘भारत का लोकतंत्र सुदृढ़ हो’ यह भाव अवश्य ही मतदाता के मन में बना रहना चाहिए। 

अत: उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा या मणिपुर, पांच राज्यों में जो मतदान करने जा रहे हैं अपने पुरखों की उपरोक्त बातों को ध्यान में रख कर करें। ‘दल-बदलू’, जो लोकतंत्र का कलंक है उन्हें मतदाता त्याग दें। भ्रष्ट साधन न अपनाएं। लालच में न आए। निर्भीक और निडर भाव से वोट डालें। वोट देते समय यदि मतदाता ने कुछ ले लिया तो समझो उसने लोकतंत्र का गला दबा दिया। फिर भी मैं वोट डालने वाले लोगों के सामने वे तत्व जरूर रखना चाहता हूं, जिससे वे वोट डालने को मजबूर हो जाते हैं : 

शिक्षा : पढ़ा-लिखा व्यक्ति स्वाभाविक तौर पर ही वोट डालने को प्रेरित हो जाता है। उसे लोकतंत्र का महत्व पता होता है। शिक्षित व्यक्ति वोट डालना अपना राष्ट्रीय कत्र्तव्य समझेगा, अनपढ़ न लोकतंत्र और न संविधान अथवा अपना कत्र्तव्य को ही समझेगा। इसीलिए एक पक्ष कह रहा है कि मताधिकार सिर्फ शिक्षित लोगों का ही अधिकार होना चाहिए।
राजनीतिक जागृति : 1952 से पहले लोकसभा चुनावों में लोगों में राजनीतिक सूझबूझ नहीं आई थी, इसलिए मतदाताओं को देश में विपक्ष के महत्व का ज्ञान ही नहीं था। वोट डालने वालों ने सारे के सारे वोट एक ही पार्टी को दे दिए। ज्यों-ज्यों राजनीतिक जागृति आती गई, लोकसभा में विपक्ष ताकतवर होता गया। राजनीतिक जागृति ने ही पंडित जवाहर लाल नेहरू से नरेंद्र मोदी तक का सफर तय किया है। 

आर्थिक स्थिति : जिन लोगों की आॢथक स्थिति अच्छी है, वे चुनावों में अधिक रुचि लेते हैं। गरीब का वोट देना सिर्फ उसकी रोटी है। अपनी आॢथक स्थिति अच्छी न होने के कारण कुछ लोग अपना मत बेचने भी लगे हैं। 

आयु : नौजवान जयघोषों से ज्यादा प्रभावित हो जाते हैं। प्रौढ़ों पर प्रभाव कम और बूढ़ों को यदि कोई मतदान केंद्र पर ले जाए तो वोट डालते हैं।

जातिवाद : प्राय: देखा गया है कि अपनी जाति के प्रत्याशियों को लोग ढूंढ कर और कतारें बांध कर वोट डालने जाते हैं। चाहे  हमारा लोकतंत्र 75 साल पार कर गया है, फिर भी वोट पर जात-बिरादरी अभी तक हावी है। 

धर्म : यद्यपि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है, तो भी सामान्यत: लोग अपने धर्म के व्यक्ति को ही वोट डालते हैं। राजनीतिक दल भी लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं। चुनावों में धर्म के नाम पर झगड़े होते हैं। धार्मिक असहिष्णुता भारतीय लोकतंत्र में कलंक बन चुकी है। 

घोषणापत्र : मतदाता राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों से भी प्रभावित होकर मतदान करता है। पार्टी को जीताता भी है और वायदे पूरे न होने पर उसे सत्ता से उतार भी देता है। नेता का चमत्कारिक व्यक्तित्व : भारत में वैसे भी ‘हीरो वरशिप’ प्रचलन में है। करिश्माई नेता में वोटों को खींचने का गुण होता है। 

दलीय पहचान : हमारे देश के कुछ मतदाता ऐसे हैं कि उनकी पहचान ही उस विशेष दल से बन गई है। जैसे भारतीय जनता पार्टी को वोट देने वाला व्यक्ति कभी किसी अन्य पार्टी को वोट डालेगा ही नहीं। इसी तरह कांग्रेस का वोटर कांग्रेस को और वाम दलों का मतदाता उनको ही अपना मत देगा। प्रांतीय या क्षेत्रीय पाॢटयों में ऐसा ही व्यवहार मतदाता करता आ रहा है। 

धन का प्रभाव : कुछ प्रत्याशी अपने धन बल का ऐसा प्रदर्शन करते हैं कि मतदाता उसके पैसे के लालच में आ जाता है। प्राय: गरीब, अनपढ़, झुग्गी-झोंपडिय़ों में रहने वाले पैसे के लालच में मतदान करते हैं। यह ट्रैंड लोकतंत्र के लिए घातक है। सामयिक विषय भी मतदाताओं को प्रभावित करते हैं। 1975 के आपातकाल ने इंदिरा गांधी को सत्ता से हराया तो 1980 में जनता पार्टी सरकार की आपसी धड़ेबंदी जनता पार्टी सरकार को ले डूबी। इंदिरा गांधी एक बार पुन: मतदाताओं की पसंद बन गईं। 

इस सब से मतदाता को बचना है। इन 5 राज्यों के चुनाव आगामी लोकसभा चुनाव पर प्रभाव डालेंगे। अत: मतदाता इस देश के उज्जवल भविष्य को ध्यान में रख कर अपने मत का प्रयोग करें। वोट बहुत मूल्यवान वस्तु है। एक-एक वोट से सरकार बनती और गिर जाती है। वोट का महत्व समझ कर ही वोट डालें और अवश्य डालें। स्वतंत्र मन से डालें। देश आपके वोट से बनेगा।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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